जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

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मंगलवार, 1 नवंबर 2016

नाटक का छल

                   

                      
   महाराज सियार इस वक्त अपने सिंहासन पर मौजूद हैं । पिछली रातों में बिन बुलाए मेहमान की तरह आ धमके सपनों ने उन्हें परेशान कर रखा है । प्रत्येक सपना चीख-चीख कर यही संदेश दे रहा है कि सिंहासन पर उनके बैठने के दिन अब लद चुके । सिंहासन उन्हें लात मारकर निकालने को संकल्पबद्ध होकर जैसे बैठा हो । ऐसे में महाराज सियार का सिंहासन को मजबूती से पकड़कर बैठना स्वाभाविक ही है । प्राणी जब अंदर से भयभीत होता है, तो वह कुछ ज्यादा ही बढ़-बढ़ के बोलता है । वह ऐसा इसलिए करता है, ताकि उसके भय का आभास किसी को न हो सके । हालांकि उसकी ऐसी स्थिति ही उसकी पोल खोल रही होती है ।
   सार्वजनिक मंचों से महाराज सियार अनगिनत बार यह दावा कर चुके हैं कि अगला महाराज बस वही बनने वाले हैं । सिंहासन के एकमात्र उत्तराधिकारी वही हैं । सत्ता रुपी दुल्हन के लिए उनसे अधिक सुयोग्य दूल्हा कोई और नहीं है । पर पता नहीं क्यों, जितना वह चिल्लाते जाते हैं, अंदर बैठा भय का भूत उतना ही अपना आकार बढ़ाते जाता है । भय के भूत को मार भगाने के लिए अपने लोगों की जरूरत पड़ती है । इस वक्त दरबार-ए-खास में वही लोग मौजूद हैं, जिनका दावा है कि अगर उनकी छाती फाड़ दी जाए, तो वहाँ भगवान श्रीराम नहीं, बल्कि महाराज सियार के दर्शन होंगे । ऐसे सूरमा भी मौजूद हैं, जो महाराज के प्रति भक्ति दिखाने के लिए थप्पड़ चला चुके हैं और जूतम-पैजार कर चुके हैं । ऐसे मौसम-विज्ञानी भी उपस्थित हैं, जो हवा के रुख का सटीक आकलन करते हुए सुरक्षा के लिहाज से महाराज से चिपक गए हैं ।
   दरबार-ए-खास को ठस्सम-ठस्सा देख महाराज सियार का छाती अकड़ाकर बैठना बनता ही बनता है । भीड़ सत्ता को बड़ी राहत देती है । यहाँ तो सब ठीक-ठाक लग रहा है, किन्तु बाहर की खबर जब तक नहीं मिल जाती, तब तक मन के चैन पर बैन लगा रहेगा । मन को इंतजार है, तो सिर्फ खबरी खरगोश का । आने वाले तो सभी आ चुके हैं, किन्तु वह है कि आने का नाम नहीं लेता । महाराज सियार की नजरें बाहर से आने वाली राह पर अटकी हुई हैं ।
   तभी खबरी खरगोश धड़धड़ाता हुआ दरबार में प्रवेश करता है । महाराज के सामने आकर वह घुटनों तक झुकते हुए कहता है, ‘महाराज की जय हो । एक खुशखबरी पकड़ के लाया हूँ महाराज । आदेश हो तो सभी के समक्ष पेश करूँ ।’
   ‘तुझे आदेश की क्या जरूरत है । इधर-उधर न कर और जल्दी से सुना । अब मुझसे रहा नहीं जाता ।’ कहते-कहते महाराज की अधीरता सतह पर आ जाती है ।
   ‘महाराज, पिछला सर्वे जहाँ आपको पिछड़ते हुए दिखा रहा था, वहाँ अब नया सर्वे आपकी बढ़त को बता रहा है । यह तो चमत्कार हो गया महाराज । आपने तो कुछ किया भी नहीं और...’
   ‘सब राजपिता का कमाल है । उनका लिखा नाटक सुपर-डुपर हिट रहा ।’ इतना कहते ही महाराज के चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान लोटम-लोट होने लगती है ।
   ‘पर हुजूर, पिछले साढ़े चार साल से नाटक तो खेला ही जा रहा था ।’ खबरी के चेहरे पर आश्चर्य के भाव हैं । वह अपनी बात आगे बढ़ाता है, ‘एक नाटक के चलते हुए भी दूसरा नाटक !...बात कुछ समझ में नहीं आई ।’
   ‘तेरी जितनी औकात होगी, तू उतना ही सोच पाएगा न । बात सबकी समझ में आ जाए, तो नाटक का मजा ही क्या है ।’
   ‘मैं फिर पूछता हूँ महाराज, एक नए नाटक की जरूरत क्या थी आखिर?’
   ‘चुनाव सिर पर है और हमारा ही गणित हमको पिछड़ते दिखा रहा था । वैसे भी अब जनता से वोट लेना उतना आसान नहीं रहा । आज उसे सबसे बड़ा मूर्ख बनाने वाला ही उसके वोट का हकदार होता है ।’
   ‘मतलब यह नाटक जनता को...?’
   ‘और नहीं तो क्या । तू कुछ और तो नहीं समझ बैठा था?’ महाराज के चेहरे पर एक प्रश्न-सा उभरता है ।
   ‘हाँ महाराज, मुझे लगा था कि सभी आपही को घेरकर...उस अभिमन्यु के जैसा ।’ खबरी खरगोश की आवाज मद्धिम होती जाती है कहते हुए ।
   ‘तू समझदार है । अभिमन्यु वाली सहानुभूति ही नए सर्वे में ललकार रही है । ख्याल रहे, यह बात जनता तक कतई न पहुँचे । चुनाव होने तक तो कतई नहीं । उसके बाद कोई क्या उखाड़ लेगा अपना ।’
   खबरी खरगोश को महसूस होता है कि यह और कुछ नहीं, छल है जनता के साथ । पर इसे जनता समझे, तब न !

शनिवार, 24 सितंबर 2016

समाजवाद का प्रहसन

                    
                          दृश्य-एक
   ( स्थान- दरबार-ए-खास । महाराज सियार सिंहासन पर चिपके हुए हैं । मुट्ठियां हत्थों पर कसी हुई हैं । सामने आसनों पर महाराज के अपने लोग विराजमान हैं । सभी की आँखें बाहर की ओर लगी हुई हैं । तभी खबरी खरगोश दरबार में प्रवेश करता है, बहैसियत सरकारी अखबार के प्रतिनिधि के रूप में ।)
खबरी खरगोश- महाराज की जय हो । खबर उड़ी है महाराज कि आपने दो मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है । चुनाव के ठीक पहले क्या इसे उचित कदम माना जा सकता है?
महाराज- बेशक, इसे उचित कदम न मानना मूर्खता होगी । उचित कदम के लिए हर समय उचित होता है । भ्रष्टाचार को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता । जो भ्रष्ट हैं, उन्हें जाना होगा बाहर ।
खबरी- पर वे मंत्री तो पिछले चार साल से भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए थे, कार्रवाई अब जाके क्यों?
महाराज- कार्रवाई समाजवाद का तकाजा थी । समाजवाद बेसब्र नहीं है । उसमें धीरज धारण किए रखने की अपूर्व क्षमता है । उसने धैर्यपूर्वक भ्रष्टाचार को देखा और अंततः कार्रवाई कर दी ।
खबरी- ( कैमरा की ओर मुखातिब होकर ) तो देखा आपने समाजवाद और महाराज की सक्रियता ! महाराज न्यायप्रिय व्यक्ति हैं । उन्होंने भ्रष्टाचार को भी भरपूर मौका दिया फलने-फूलने और अपनी सफाई देने का । इतने दयालु और न्यायप्रिय व्यक्ति पर क्या निष्क्रियता का आरोप उचित है?
    (इस कथन के साथ ही पर्दा गिरता है ।)
                         दृश्य- दो
   ( स्थान- राजपिता सियार का महल । राजपिता अपने आसन पर चिंता-भाव के साथ बैठे हुए हैं । चचा सियार खड़े-खड़े फुफकारते साँप हो रहे हैं । अपने और पराए-दोनों बेचैनी के आलम में जमीन पकड़े हुए हैं, ताकि वे समाजवाद को किसी भी सूरत में उसमें समाने से रोक सकें ।)
खबरी खरगोश- चचा सियार, आपके दो आदमी बाहर हो गए हैं । बाहर वे बालू को हथेलियों में बाँधे जा रहे हैं और इधर आपका भी बोरिया-बिस्तर बँध गया । आपके विभाग छीनकर आपको भी बेरोजगार कर दिया गया है । क्या आप अब भी...?
चचा सियार- देखिए, हम समाजवादी लोग विभाग के चक्कर में नहीं पड़ते । चूँकि समाजवाद पर खतरा आन पड़ा है, इसलिए हमें बाकी पदों से इस्तीफा देना ही होगा । राजपिता के सामने हमने इस्तीफे का प्रस्ताव कर दिया है ।
खबरी- ( राजपिता की ओर मुड़कर ) क्या आप इस्तीफे को स्वीकार करने जा रहे हैं? इसके बाद समाजवाद का क्या होगा? क्या आप मानेंगे कि एक बार फिर समाजवाद खतरे में है?
राजपिता- समाजवाद पर कोई खतरा नहीं है । जहाँ तक इस्तीफे की बात है, उसे हम कतई स्वीकार नहीं करेंगे । इसी में समाजवाद की भलाई है ।
   ( राजपिता और चचा सियार के बीच कुछ देर खुसर-पुसर होती है । तनाव दोनों के चेहरों से अचानक गायब हो जाता है । खुसर-पुसर के प्रतिफल के रूप में जो फॉर्मूला निकलकर आता है, उसे खबरी खरगोश को थमा दिया जाता है । इसी के साथ पर्दा गिरता है ।)
                      दृश्य- तीन
   स्थान- महाराज सियार का दरबार-ए-खास । महाराज के चेहरे पर हल्के मुस्कान के छींटे दिखाई दे रहे हैं । मंत्रीगण भी कुछ राहत की अवस्था में हैं ।)
खबरी खरगोश- महाराज, सुना है कि आप बर्खास्त मंत्रियों को जल्द ही बहाल करने वाले हैं?
महाराज- हमने तो बहाल कर भी दिया । मीडिया ही खबर चलाने में पीछे रह गई । (यह कहते हुए महाराज ठठाकर हँसते हैं ।)
खबरी- पर इससे तो समाजवाद को बहुत नुकसान होगा । एक तरह से आपने भ्रष्ट आचरण को गोद में लाकर बिठा दिया ।
महाराज- समाजवाद कोई फूस की झोपड़ी नहीं है, जिसे कोई भी गिरा दे । यह तो सोने का मजबूत महल है, जिसे हमने मेहनत से बनाया है ।
खबरी- उस वक्त भ्रष्ट मंत्रियों को बाहर करना समाजवाद के हित में था, तो आज उन्हें अंदर लेना किसके हित में है?
महाराज- समाजवाद के हित में । इसका हित तो हम समाजवादी ही बेहतर समझ सकते हैं । कोई भी वाद समाज-निरपेक्ष नहीं होता । बर्खास्त करना भी समाजवाद के हित में था और बहाल करना भी उसी के हित में है ।
   ( खबरी खरगोश समाजवाद की इस नई व्याख्या को दर्शकों तक पहुँचाने के लिए कैमरे की ओर मुँह करता है । उधर पर्दा भी गिरना शुरु हो जाता है ।)
                       दृश्य- चार
   (स्थान- राजपिता सियार का महल । राजपिता महाराज सियार से पार्टी के अध्यक्ष की माला छीनकर चचा सियार को पहना रहे हैं । चचा और उनके चेले-चपाटी गद्गद् अवस्था में खड़े हैं ।)
खबरी खरगोश- आखिर इस माला का हस्तांतरण क्यों?
राजपिता सियार- दरअसल महाराज सियार के गले में कई मालाएँ हो गई थीं, जिनके बोझ से वह असंतुलित हो रहे थे । उनके संतुलन को बहाल करने के लिए एक-आध मालाएँ इधर करना अनिवार्य हो गया था । अब उनके कदम भी नहीं लड़खड़ाएंगे और इधर बोझ के कारण चचा सियार भी ज्यादा नहीं उछलेंगे ।
खबरी- (चचा सियार की ओर मुड़कर) माला की जिम्मेदारी निभाने के लिए आप क्या करने वाले हैं?
चचा सियार- हमने तो कर भी दिया । महाराज के करीबी भ्रष्ट लोगों को उनके पदों से हटाने का हुक्म अभी-अभी ही भेजा है । वे लोग जमीनों पर कब्जा किए बैठे थे । इस कारण समाजवाद का बहुत नुकसान हो रहा था ।
खबरी- अब चुनाव में किसकी चलेगी?
चचा- देखिए, परीक्षा महाराज की है, तो हमारी भी है, बल्कि पार्टी के अध्यक्ष की वजह से बड़ी परीक्षा हमारी है । अतः हमारी ही ज्यादा चलेगी ।
   (चचा सियार मजबूत कदमों से मंच के दाहिनी ओर रुख करते हैं । उनके साथ समर्थक नारे लगाते हुए आगे बढ़ते हैं । पर्दा गिरता है ।)
                    दृश्य- पाँच
   (स्थान- दरबार-ए-खास । एक-दूसरे से नजरें चुराने वाले महाराज और चचा एक-दूसरे को मुस्कुराकर देखते हुए खड़े हैं । दोनों की सेनाएँ होली-मिलन के माफिक सट कर खड़ी हैं ।)
खबरी खरगोश- कल तक आप लोग एक साथ होने पर भी अलग-अलग उत्तर-दक्षिण दिशाओं को देखा करते थे । आज दोनों एक-दूसरे को...!
महाराज- उसके लिए भी समाजवाद ही मुख्य कारण था । हम उसे हर दिशा में फैलाना चाहते थे, इसीलिए हमारी नजरें अलग-अलग दिशाओं में जमी हुई थीं । समाजवाद की खातिर हमें बहुत कुछ करना होता है ।
चचा सियार- अब हमारे रास्ते एक हैं । लक्ष्य एक है । चुनाव को बेधना जरूरी है । हमारे बीच जो कुछ भी हुआ, उसके मूल में समाजवाद की ही चिंता थी । आज यहाँ खड़े हैं, तो केवल उसी की खातिर ।
खबरी- पर वे पिछले दिनों के प्रहसन...?
महाराज- मीडिया गम्भीर होती, तो उसे सब कुछ प्रहसन नहीं दिखाई देता । मीडिया की इस बात के लिए हम भला क्या कर सकते हैं !

खबरी- (कैमरे की तरफ मुड़कर) तो देखा आपने । जिसे आप नाटक समझ रहे थे, वह दरअसल समाजवाद की जोर-आजमाइश थी...अपने अस्तित्व के विस्तार के लिए  कैमरा-पर्सन छछूँदर के साथ मैं खबरी खरगोश...(और पर्दा गिरता चला जाता है ।)

शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

सोने-सा दिल है आपका

               
   दरबार-ए-आम आज बतकहियों, कहकहों, हँसी-ठहाकों से गुंजायमान है । हर वर्ग की जनता उपस्थित है । जिसे होना चाहिए, वह तो है ही; जिसका होना जरूरी नहीं, वह भी मौजूद है । सभी के दिलों में जोश व उत्साह की लहरें हिलोरें मार रही हैं, वहीं दरबार-ए-आम की हवा में गर्व की खुश्बू फैली हुई है । सभी को फख्र है अपने खिलाड़ियों पर...उन खिलाड़ियों पर, जो अभी ताजा-ताजा गोलंपिक से लौटे हैं । वे खिलाड़ी ही इस वक्त दरबार-ए-आम के मंच पर अपने लिए निर्धारित सीटों पर बैठे हुए हैं । कोई फर्जीवाड़ा न हो, इसके लिए उन्हीं खिलाड़ियों को मंच पर चढ़ने दिया गया है, जिनके हाथ में सबूत के तौर पर गोलंपिक के टिकट मौजूद हैं । मंच पर इन खिलाड़ियों के अलावा मंत्रीगण, नेता, अधिकारी, खेल-संघों के पदाधिकारी, प्रशिक्षक और वे सभी लोग उपस्थित हैं, जिनकी बदौलत खिलाड़ियों ने हार को चूमा और उनकी इस उपलब्धि पर पूरा वन-राज्य झूमा । गौरव के उन क्षणों को पुनः जीना किसी भी जीवंत राज्य के लिए एक अनिवार्य तत्व होता है । उस क्षण को पुनः महसूस करने तथा हारे हुए खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए ही यह आयोजन किया गया है ।
   सभी आने के इच्छुक आ चुके हैं तथा आवश्यक तैयारिय़ां भी मुकम्मल हो चुकी हैं । अब बस महाराज सियार की कमी है । अनगिनत निगाहें उन्हीं की राह पर लगी हुई हैं । तभी खबरी खरगोश दौड़ते हुए दरबार-ए-आम में प्रवेश करता है और महाराज के आने की इत्तला देता है । तत्काल सभी सावधान की मुद्रा में आ जाते हैं । उधर प्रधानमंत्री व अन्य मंत्रीगण अगवानी के लिए विशाल दरवाजे की तरफ बढ़ते हैं ।
   उपस्थित वन समुदाय पर सरसरी निगाह डालकर महाराज सियार मंच की ओर प्रस्थान करते हैं । बीच-बीच में हाथ हिला-हिलाकर वह अभिवादन का जवाब भी देते जाते हैं । उपस्थित लोग महाराज की इस अदा पर झूम-झूम उठते हैं । अगले कुछ सेकेंडों के बाद महाराज मंच पर दिखाई देते हैं । परिचय प्राप्त करने और हाथ मिलाने के बाद वह अपने सिंहासन पर आसीन हो जाते हैं ।
   इधर नगाड़ा मंत्री तुरंत माइक को सम्भालते हुए कहना शुरु करते हैं, ‘महाराज की आज्ञा हो, तो खेल के लिए आयोजित इस जश्न का आगाज किया जाए । दीप के प्रज्ज्वलन के लिए हम हुजूर की कृपा के आकांक्षी हैं ।’
   महाराज धीरे-धीरे मंच के एक कोने की तरफ बढ़ते हैं । दीप-प्रज्ज्वलन में विशिष्ट लोग उनका साथ देते हैं । इसके बाद उन्हें दो शब्द कहने के लिए माइक पर आने की प्रार्थना की जाती है । वह हुंआ-हुंआ के दो शब्द निकालकर कहना शुरु करते हैं, ‘खुशी का मौका है और हमारे लिए तो यही बड़ी बात है कि हमारे खिलाड़ी बहादुरीपूर्वक हार गए । जीतो तो ऐसा न लगे कि जीत में कुछ कमी रह गई । हारो तो ऐसे हारो कि जीतने वाले को यह न लगे कि हराया, लेकिन मजा नहीं आया । जीतने वाला चैम्पियन होता है और हमारे लिए फख्र की बात है कि हमारे खिलाड़ी चैम्पियनों से हारे । आप लोगों की हार ही हमारे लिए जीत है । भगवान करे कि आप लोग यूँ ही हारते रहें और वन-राज्य का सिर ऊँचा बनाए रखें ।’
   महाराज के इतना कहते ही तालियों की गड़गड़ाहट से दरबार-ए-आम हिलने लगता है । तालियां इस बात पर और ज्यादा बजती हैं कि महाराज की महानता देखिए कि उन्होंने हार को भी किस खूबसूरती से जीत करार दे दिया । उनकी खिंची लाइन सभी के लिए एक गाइड लाइन सी बन जाती है । अगले ही क्षण राजपुरोहित को दो शब्द कहने का मौका मिलता है । राजपुरोहित लंगूर अपनी माला को फेरते हुए खिखियाते हैं और फिर गम्भीर स्वर में अपनी बात को आगे रखते हैं, ‘हमें खुशी है कि हमारे खिलाड़ी संतोष के साथ लौटे हैं । पदक-वदक, सोना-चाँदी-सब फीके हैं संतोष के सामने । सोना-चाँदी तो कभी भी आ जावे है, लेकिन संतोष बड़ी मुश्किल से आवे है । आपने सोना-चाँदी के पदक जीतने वालों को छोटा साबित कर दिया है, क्योंकि आप लोगों के पास सबसे बड़ा पदक है-संतोष का पदक ।’
   एक बार फिर दरबार-ए-आम तालियों की गड़गड़ाहट का गवाह बनता है । अगले ही क्षण खेल मंत्री माइक को पकड़ बोलना शुरु करते हैं, ‘खिलाड़ियों, आपकी हार से सारा राज्य गौरवान्वित है । हारना और उसे बर्दाश्त करना सबके वश की बात नहीं होती । यह आपका संयम और संस्कार है । वास्तव में हारने वाला ही सच्चा चैम्पियन है । जब कोई हारने को तैयार होता है, तभी किसी की जीत पक्की होती है । हारना त्याग है । जीत में यह बात कहाँ !’
   अब गृहमंत्री की बारी आती है । वह खिलाड़ियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए कहते हैं, ‘आप लोगों ने हारकर अच्छा ही किया । अगर जीत जाते, तो खेल-संघ बेवा हो जाते । सभी पदाधिकारी इसी बात के लिए लड़ मरते कि यह जो पदक आए हैं, यह केवल उन्हीं के परिश्रम के फल हैं ।’
   समापन के लिए खेल-संघ के एक पदाधिकारी माइक को लपकते हैं, ‘सज्जनों, खेल में हार-जीत महत्व नहीं रखता । महत्व रखता है केवल भाग लेना, इसीलिए हम अनासक्त भाव से भाग लेते हैं । हम भाग लेने के लिए ही वर्षों से जा रहे हैं । आगे भी पूरे गर्व तथा बहादुरी के साथ जाते रहेंगे ।’

   इसके बाद खिलाड़ियों को अपने-अपने हारने की उच्चता के अनुसार हार-रत्न, हार-भूषण एवं हार-श्री से सम्मानित किया जाता है । सम्मानित करने के बाद महाराज के आदेश पर दरबार-ए-आम में जश्न के जाम छलकने लगते हैं ।

शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

याद रखियो...कर्ज का फर्ज भी होता है

             
   दरबार-ए-खास में आज काफी गहमागहमी है । महाराज सियार के अलावा सारे मातहत मंत्री उपस्थित हैं । इस बात का खास ख्याल रखा गया है कि उन्हीं को इस खास मौके पर बुलाया जाए, जो हर हाल में समाजवाद का झंडा बुलंद रखते आए हैं । किसी की जमीन पर कब्जा करना हो, दुर्बलों पर दबंगई दिखानी हो, पुलिस वालों की हर आम-ओ-खास मौकों पर कुटाई करनी हो, हर किस्म के ठेके हड़पने हों, गुंडई के नित नये गिनीज रिकॉर्ड बनाने हों, माफियाओं-अपराधियों का कर्ण-छेदन करके चेले-चपाटी बनाना हो-क्षेत्र कोई भी हो, जो मैदान से नहीं डिगा, वही सच्चा समाजवादी है । समाज से जबर्दस्त अपनापन रखते हुए उसके हर चीज को अपना बनाने की प्रत्येक काग-चेष्टा को आधुनिक समाजवाद कहते हैं ।
   तो इस वक्त बिना किसी शक-ओ-शुबहा के सारे आधुनिक समाजवादी मौजूद हैं । खुसपुसाहटें हो रही हैं, पर महाराज सियार की चुप्पी की वजह से मंत्रियों की बेचैनियाँ बढ़ती जा रही हैं । महाराज के प्रति सम्मान के कारण कोई उनकी चुप्पी को भंग करना नहीं चाहता । निकट भविष्य में मंत्रिमंडल में फेरबदल संभावित है, अतः सम्मान के समंदर में ज्वार का उठना निहायत ही स्वाभाविक कर्म है । उधर महाराज की निगाहें बार-बार दरवाजे पर जाती हैं और मायूस होकर लौट आती हैं । उन्हें मायूस देखकर मंत्री भी वैसी ही भाव-मुद्रा बनाने की कोशिश करने लगते हैं । अभी मुँह लटकाने का समाजवादी रिहर्सल चल ही रहा है कि तभी खबरी खरगोश धड़धड़ाते हुए दरबार में प्रवेश करता है । उसे देखते ही महाराज के चेहरे पर प्रसन्नता की कली खिल उठती है । वह चहकते हुए पूछते हैं, ‘कहो खबरी, हमारे रिकॉर्ड-तोड़ समाजवादी कामों के प्रति आम सियारों में कैसी धारणा है...उन लोगों ने कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त की हमारे लिए?’
   ‘महाराज सियार की जय हो ।’ वह घुटनों तक झुकता है और खबर को उड़ेलता है, ‘हुजूर, कोई कुछ बोलने को तैयार ही नहीं है...बस मुस्कुराते हैं और चुप्पी साधे रहते हैं । हमें तो यही लगा कि गूँगे हो गए हैं सब-के-सब ।’
   इस पर महाराज कुछ कहना ही चाहते हैं कि प्रधानमंत्री लकड़बग्घा बोल उठते हैं, ‘यह तो अच्छी खबर है महाराज, उस गूँगे की कहानी तो अवश्य ही आपने सुनी होगी । गुड़ खाकर उसके आनंद में इतना मगन हुआ कि गूँगा हो गया । वह वास्तव में गूँगा नहीं था महाराज । उसी तरह आपके समाजवादी कामों का जनता इतना आनंद ले रही है कि गूँगी हो गई है ।’
   पूरा दरबार-ए-खास तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठता है । महाराज अभिभूत होकर बोल उठते हैं, ‘क्या सत्य और सटीक व्याख्या की है आपने प्रधानमंत्री जी । वास्तव में हमने काम ही इतना किया है कि जनता की बोलती बंद हो गई है । पहले के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए हैं और रोज रिकॉर्ड के नए प्रतिमान स्थापित हो रहे हैं । हमने तो वादा पूरा कर दिया, अब जनता की बारी है । हमें दुबारा सत्ता सौंपकर वह भी रिकॉर्ड बनाए ।’
   ‘जनता को चुनौती देकर आपने अपने सच्चे राजत्व का परिचय दिया है महाराज,’ नगाड़ा मंत्री की आवाज गूँजती है इस बार, ‘वह यूँ ही झाँसे में नहीं आती । ललकारना अक्सर काम कर जाता है ।’
   ‘वह तो ठीक है मंत्री महोदय, पर जनता अब भी इशारों-इशारों में काम की ही पड़ताल कर रही है ।’ खबरी खरगोश अपनी आँखों देखी चीजों को सामने रखता है ।
   ‘हम किसी भी काम में पीछे नहीं हैं ।’ महाराज सियार के चेहरे पर आवेश का झीना परदा-सा झलकता है । वह सिंहासन की मूँठ को कसते हुए बोलते हैं, ‘सारे काहिल-जाहिल हमारी बदौलत नौकरी पाकर मौज उड़ा रहे हैं । पूरे इतिहास में शायद ही कोई ऐसा होगा, जो ऐसी समाजसेवा में हमारी बराबरी कर सके ।’
   ‘सचमुच, आप कहीं पीछे नहीं हैं महाराज ।’ प्रधानमंत्री गर्व से फूलते हुए कहते हैं, ‘आपका काम बोल रहा है । बड़ों को तो छोड़िए, हमारा अदना-सा कार्यकर्त्ता तक विकास के समंदर में गोते लगा-लगाकर बरसाती मेढक की तरह फूलकर विकास को प्राप्त हो गया है । इस तरह हाशिए के व्यक्ति तक विकास सिर्फ आप ही के राज में संभव है महाराज ।’ फिर एक बार तालियों की गड़गड़ाहट...
   ‘और एक बात,’ महाराज के बोलते ही सन्नाटा छा जाता है । एक हाथ को ऊपर उठाते हुए वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हैं, ‘खबरी, जाकर पता लगाओ कि विकास का कर्ज चुकाने को आम सियार तैयार हैं कि नहीं । वसूली का समय आ चुका है ।’

   इशारा पाते ही खबरी खरगोश बाहर निकलता है । इधर प्रधानमंत्री के निर्देश पर प्रशिक्षित लकड़बग्घे समाजवादी तरीके से कर्ज का फर्ज समझाने के लिए कूच की तैयारी शुरू करते हैं ।

मंगलवार, 28 जून 2016

एक झुठक्कड़ की तलाश है

                 

   दरबार-ए-खास में विशेष सन्नाटा था । महाराज सियार और उनके दो-चार सेवकों के अलावा वहाँ कोई नहीं था । महाराज ने सभी मंत्रियों को विलंब से आने का आदेश दिया था । इस वक्त उन्हें इंतजार था किसी का । न जाने कितनी बार सिंहासन पर पहलू बदल चुके थे । तभी खबरी खरगोश तेजी से दरबार-ए-खास में प्रवेश करता दिखाई दिया था । महाराज की मुख-मुद्रा पर एक मुस्कान-सी बिखर गई और इंतजार व बेचैनी के भाव तेजी से तिरोहित होते चले गए ।
   सिंहासन के निकट पहुँचकर खबरी खरगोश घुटनों तक झुका और महाराज से मुखातिब होते हुए बोला, ‘महाराज की जय हो, सुना है कि महाराज को इस नाचीज खबरी का इंतजार है ।’
   ‘हम बड़ी देर से प्रतीक्षा कर रहे हैं तुम्हारी । तुम हो कि पता नहीं कहाँ गुम हो गए थे । पर चलो, आ तो गए आखिर ।’ कहते हुए एक लम्बी साँस ली महाराज ने । चेहरे पर प्रसन्नता बरकरार थी ।
   ‘फरमाइए महाराज, क्या सेवा है मेरे लिए?’ सिर फिर झुका था उसका ।
   ‘बहुत ही खास काम है खबरी । मैं तुम्हें एक विशेष मिशन पर भेजना चाहता हूँ । मुझे योग्यतम झुठक्कड़ की तलाश है और इसके लिए तुम पूरे जंगल को छान मारो । जो भी खर्चा-पानी चाहिए, खजाने से ले लो ।’
   इतना सुनते ही खबरी खरगोश को झटका-सा लगा । ‘पर हुजूर, झूठ तो बुरी चीज है । आपने कथाओं में सुना ही होगा कि झूठ की पोल खुलने पर लोग चेहरा छिपा लेते थे, पतली गली से निकल जाते थे या फिर धरती मैया से याचना करते थे कि वह फट जाए और वे उसमें समा जाएं ।’
   ‘तुम सतयुग की बात करते हो खबरी, पर यह मत भूलो कि इस वक्त तुम हमारे दरबार में खड़े हो ।’
   ‘सत्य ही कहा महाराज ने । सतयुग तो बहुत पीछे छूट गया ।’ एक निःश्वास छोड़ते हुए खबरी खरगोश बोला, ‘जान की अमान हो, तो एक बात और कहूँ हुजूर । वो क्या है कि शास्त्र भी इसे अच्छा नहीं मानते । एक संत ने कहा है-साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।’
   यह सुनते ही महाराज सियार को हँसी आ गई । वह ठठाकर हँसते हुए बोले, ‘तुम्हें अपडेट होने की सख्त जरूरत है खबरी । तुम वो पुराना वाला वर्जन लेकर घूम रहे हो । नया वर्जन इस तरह है-झूठ बराबर तप नहीं, साँच बराबर पाप ।’
   ‘क्या सचमुच ऐसा ही है?’ ‘बिल्कुल ऐसा ही है । क्या तुम कह सकते हो कि मैं झूठ बोलता हूँ?’
   खरगोश उछला, ‘नहीं-नहीं महाराज, राजा झूठ कहाँ बोलता है ! फिर भी झुठक्कड़ की तलाश वाली बात समझ में नहीं आई ।’
   ‘तुम बस इतना समझो कि मुख्य रूप से सरकार को अब दो ही काम करना है । नकली काम का रेखाचित्र खींचना और उसका ढिंढोरा पीटना ।’
   ‘पर महाराज, झुठक्कड़ के तलाश की क्या जरूरत है? आप के पास तो एक से बढ़कर एक झूठ बोलने वाले मंत्री-रत्न हैं ।’
   ‘तुम्हारा कहना मुनासिब है खबरी, पर ऐसा झूठ किस काम का, जिसे विपक्षी सूँघ लें...जनता ताड़ ले । जब हम नगाड़ा बजाते हैं, तो नेपथ्य से झूठ-झूठ की आवाजें आने लगती हैं । ऐसा झूठ भी कोई झूठ है लल्लू !’
   कुछ देर रुककर महाराज फिर बोले, ‘नगाड़ा विभाग तो अच्छी तरह नगाड़े बजा रहा है, पर झूठ-विकास विभाग को अभी भी एक योग्य व्यक्ति की तलाश है, जो तकनीक का उस्ताद हो और सदा अपने को अपडेट रखता हो ।’

   अब खबरी खरगोश को समझते देर नहीं लगती कि सरकार को लम्बी अवधि तक चलाने के लिए लाल बुझक्कड़ की तरह लाल झुठक्कड़ की कितनी जरूरत है । झूठ चलेगा, तभी सरकार चलेगी । वह तेजी से सरकारी मिशन पर निकलता है । 
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