जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

सोमवार, 17 मई 2021

शहर का उनपर ध्यान नहीं है





लाखों ऐसे लोग यहाँ पर, जिनका कहीं मकान नहीं है

कब कोई कारों के नीचे, शहर का उनपर ध्यान नहीं है ।

इस धरा पर मिलता सबको, कष्टों का अंबार यहाँ पर

जहाँ केवल खुशियाँ ही मिलती ऐसी कोई दुकान नहीं है ।


आदमी ही आदमी का दुश्मन, हजारों फंदे-जाल बिछाए

फिर भी अच्छे इंसानों से धरती अभी वीरान नहीं है ।

हर घर में खुशियों का मेला, ना किसी आँख में पानी हो

ख्वाबों की तस्वीर यही है, सच में कोई जहान नहीं है ।


रब है अब मुट्ठी में, कुछ लोग यही तो कहते हैं

रब से बढ़कर रब है केवल, मानव कभी महान नहीं है ।

क्या हक है इनको कुछ भी कहने की, जब हो मर्जी उनकी

सच को सच कहती हो ऐसी ज्यादा अभी जुबान नहीं है ।


शुद्ध मिट्टी, पानी स्वच्छ और खुली हवा में साँसें होंगी

जीना होगा आसान यहाँ पर, सरकारी यह बयान नहीं है ।

एक-एक साँसों को लड़ते जब से देखा उस रईस को

अपने होने का सच में यारों कोई अब गुमान नहीं है ।


कैसा भी कठिन काल है, इसको भी जाना है इक दिन

हम डर जाएं जिसके डर से, ऐसा उठा तूफान नहीं है ।

उधर गाँव की रौनक गायब, इधर थम गया भले शहर हो

कोई रो ना, यूँ ही रह जाए हरदम, ऐसा कोई इमकान नहीं है ।


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