चित्र साभार- Cosmo Times |
आज रोज जैसा नजारा नहीं है किले के बाहर ।
हमेशा मंथर गति से चलने वाला निकटतम आस-पास का परिवेश आज कुछ गतिमान है । न केवल
कुछ ज्यादा लोग चले आए हैं, बल्कि अभी भी चले आ रहे हैं । दोपहर होते-होते
अर्द्ध-निद्रा को प्राप्त हो जाने वाले टिकट-क्लर्क अभी भी मुस्तैदी से डटे हुए
हैं और टिकट-वितरण कर रहे हैं । उधर गाइड अपनी-अपनी जानकारियों को सिरे से सँजो
रहे हैं, ताकि बेहतर प्रस्तुति की जा सके । किला तो आँखों में है, लेकिन उसके
इतिहास को कुछ ऐसे बताया जाए कि वह भी आँखों के प्रत्यक्ष सामने दिखाई दे । किले
के अहाते से सटे दुकानदार अपनी पुरानी चीजों को नया बनाने के लिए उन्हें चमकाने की
जुगत में लगे हुए हैं ।
अचानक किले के बाहर कुछ झंडे दिखाई देने लगे
थे । सच्चा, अच्छा और चमचा कार्यकर्ता वही होता है, जो अपने नेता की आहट को दूर से
पहचान ले । नेता गुपचुप आए, पर ऐसे कार्यकर्ताओं के लिए तो सारे सूचना-उपग्रह एक
साथ जाग उठते हैं । वातावरण में गर्मी पहले से विद्यमान थी और इनकी उपस्थिति ने
उसे और बढ़ाना शुरु कर दिया था । पर्यटकों को अब भरोसा होने लगा था कि मजमा अच्छा
जमेगा आज । तभी तीन-चार चमचमाती गाड़ियों की एक कतार किले के निकट सरकती दिखाई दी ।
अरे यह क्या, कभी खुद को अभूतपूर्व मानने वाले पप्पू भइया हैं यह तो ! चेहरे का नूर हो चुका है काफूर । रुतबा और शानो-शौकत भी
उनके भूतपूर्व हो चुके हैं, ठीक उन्हीं की तरह । दो-चार सुरक्षा-गार्ड हैं साथ में
। इसके अलावा पत्नी और बच्चे ।
दो-चार खास आदमियों को अपने लेकर पप्पू भइया तेजी
से किले के अंदर चले गए । उनके आने की सूचना पर किले का प्रशासन तो अलर्ट था ही,
अब कुछ और अलर्ट हो गया । मैं भी चौकन्ना हो गया था । आखिर तो भइया अपनी पर आ ही
गए । कभी जनता की नजरों से छिपाकर मौज करने वाले आज यूँ मस्ती के मूड में हैं ।
कुछ काम-धन्धा तो अब रहा नहीं, ऐसे में मौज-मस्ती ही बड़ा सहारा होती है । मैं
लपका उनके पीछे । कैमरामैन मेरे पीछे । कुछ-एक फोटो उनके मिल जाए, तो मजा आ जाए ।
लोगों को चैनलों पर दिखाए जा रहे ऐसे फोटो बहुत पसंद आते हैं । एक गाइड के सपोर्ट
से मैं सीधे पप्पू भइया तक जा पहुँचा । वह उस बड़े कमरे के एक कोने में कुछ ढूँढ
रहे थे । जरूर किसी मस्ती की तलाश कर रहे होंगे-मैंने सोचा । फिर आगे बढ़कर पूछा, ‘कुछ
खो गया लगता है आपका । मस्ती या किसी सुकून की तलाश तो...’
चित्र साभार- patrika.com |
मुझ पर नजर पड़ते ही पप्पू भइया ने अपने
पलक-पाँवड़े बिछा दिए मेरी राहों में । कभी एक इंटरव्यू के लिए भाव खाने वाले आज
मुझे टनों भाव दे रहे थे । समय सचमुच बहुत बलवान होता है । वह मेरे हाथ को अपने
हाथों में लेते हुए बोले, ‘ठीक फरमाया आपने । परिवार के साथ मौज-मस्ती ट्रिप पर ही
निकला हूँ, पर दिल में एक काँटा चुभा हुआ है । हम पहलवानों को शत्रुओं ने धूल चटा
दी । इस दिल में उसी हार का काँटा है । आखिर वे जीत कैसे सकते हैं । हमारी जीत को
उन लोगों ने छीन लिया है । हमें उसी जीत की तलाश है । जहाँ देखता हूँ, बस
हार-ही-हार दिखती है । जीत कहीं दिखाई नहीं देती । जरूर शत्रुओं ने कहीं छिपा दिया
है उसे ।’
अब मुझे चौंकना और सतर्क होना ही चाहिए था ।
किले में तो लोग इतिहास को ढूँढने आते हैं । जीत भी तो इतिहास बन चुकी है पप्पू
भइया के लिए ।...तो वे किसी सीक्रेट मिशन पर हैं । खुला खेल इलाहाबादी वाली बात
नहीं है यहाँ पर । ‘क्या आप मेरी जीत को ढूँढने में मेरी मदद करेंगे?’ उनके स्वर
में याचना का भाव था ।
याचक को यूँ ही छोड़ देना शोभा नहीं देता । ‘क्यों
नहीं, मगर उस जीत की कोई फोटो...’ मैंने उन्हें अपनी तरफ से राहत दान करते हुए कहा
।
‘अफसोस, वही नहीं है । वह मेरे सपने में कई
बार आई थी, लेकिन तकनीकी गड़बड़ी के कारण उसका स्नैप-शॉट नहीं ले सका ।’ कहते-कहते
उनका चेहरा मुरझा उठा था ।
‘तो अब आप उसे कहाँ खोजेंगे?’ मैंने उनकी
भविष्य की योजनाओं में झाँकने की कोशिश करते हुए पूछा ।
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‘किलों के बाद राजमहलों और आलीशान बंगलों की
बारी है । उसके बाद सभी गुप्त तहखानों-तिजोरियों को खंगालूँगा । हर बड़ी जगह पर
मुझे दस्तक देना है ।’ उनके चेहरे से संकल्प के भाव बाहर आने को आतुर दिखे ।
‘पर श्रीमान, आप किसान के खेत-खलिहान, गरीब की
झोपड़ी या किसी मेहनतकश मजदूर की रोटी-प्याज के बीच में उसे क्यों नहीं ढूँढते?’
‘हद करते हैं आप भी ।’ वह तनिक गुस्से में आते
हुए बोले, ‘हमारी जीत की चोरी एक हाई-प्रोफाइल घटना है और आप उसे इन लो-प्रोफाइल
जगहों पर...शत्रु इतना नासमझ भी नहीं है कि जीत को बिना सुरक्षा के छोड़ दे ।’
‘तो फिर एक जगह है मेरी निगाह में ।’ मैंने
अपने दिमाग की नसों को संकुचित करते हुए कहा ।
‘हाँ, बताइए तो, इतनी देरी किस बात के लिए ।’
वह अधीरज हो उठे थे हमारी बात सुनते ही । वरना अभी पल भी कितना बीता था ।
‘स्विस बैंक या उसके जैसे दूसरे बैंक । उन
सुरक्षित जगहों पर भी तलाश करनी चाहिए, जहाँ विजय माल्या या ललित मोदी जैसे लोग
छिपे हुए हैं । वैसे अपने शत्रु देशों को भी निगाह में रखना चाहिए । आतंकवादियों
के ठिकानों में भी ताक-झाँक उचित होगा ।’
‘ठीक कहा आपने । अब मुझे अपने परिवार के साथ
विदेशी ट्रिप पर निकल जाना चाहिए । वहाँ के किलों को भी तो देखना है हमें ।’ और
इतना कहते-कहते वे किसी जासूस की तरह अपने काम में लग गए थे । चलो अच्छा ही है ।
पाँच वर्ष का लम्बा वक्त काटने के लिए यह बहाना भी क्या बुरा है गालिब !
बहुत खूब......
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंमस्त व्यंग है ... रोचक ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर...
हटाएंBahut manoranjak hasya vyang
जवाब देंहटाएंniralasahitya.wordpress.com
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