पत्रकार-वार्ता में इस वक्त जबर्दस्त भीड़ है
। पत्रकारों की संख्या तो उंगलियों पर गिनने लायक है, किन्तु मंत्रियों-सभासदों की
ढेर लगी हुई है । वही पत्रकार बुलाए गए हैं, जो प्रश्न पूछते समय दिमाग का
इस्तेमाल ज्यादा न करते हों । गड़े मुर्दे उखाड़ने वाले पत्रकार तो कतई नहीं बुलाए
गए हैं । वास्तव में महाराज और उनकी पार्टी का प्रचार-प्रसार करने वाले फ्रैंडली
पत्रकारों को ही निमंत्रण दिया गया है । इसके बावजूद पत्रकारों का क्या भरोसा ! अगर वे मौखिक रूप से उखड़ या बिदक गए, तो उन्हें, जरूरत
पड़ने पर, शारीरिक रूप से मर्यादा की परिभाषा को समझाने के लिए पर्याप्त लोगों का
होना तो सदैव ही नियम के अनुकूल रहा है । ऐसे में लोग अगर अपने हों, तो भरोसे का
बैरोमीटर ऊँचा से ऊँचा बना रहता है ।
पत्रकारों का संयम अभी जवाब देने को तैयार
नहीं हुआ है, इसलिए भी नीले सियार का आगमन अभी नहीं हो सका है । मंत्री इंतजार में
हैं कि कब खदबदाहट शुरु हो । चावल जब पकता है, तभी इसमें मिठास आती है । वरना तो
कच्चा-ही-कच्चा । स्वाद व सेहत को गच्चा नहीं दे सकता, कोई भी यूँ ।
पानी पी-पीकर पत्रकार अब थकने लगे हैं ।
उबासियों के दौर चलना शुरु होते ही मंत्री सजग हो जाते हैं । एक मिस कॉल की देरी
और नीले सियार मंच पर । उनके साथ उप महाराज भी हैं, किसी साए की तरह उनके
पीछे-पीछे । माइक पहले उप महाराज ही सम्भालते हैं । उनकी आवाज गूँजती है । वह कहते
हैं, ‘देखिए, महाराज की तबियत थोड़ी नासाज है । खाँसी को लगता है अब काशी भेजना ही
पड़ेगा । अक्सर आ जाती है किसी पाकिस्तानी आतंकवादी की तरह । पत्रकार वार्ता के ऐन
पहले ही उसने हमला बोल दिया । उसके हमले से निपटने में थोड़ा वक्त लग गया । क्षमा
चाहेंगे, इसीलिए थोड़ा विलम्ब हो गया ।’
कानाफूसी शुरु हो जाती है पत्रकारों के बीच ।
मन में शिकायत व कटुता की जगह प्रशंसा के भाव उभर आते हैं । नीले सियार के माइक
पकड़ते ही खबरी खरगोश हाथ उठाता है, किन्तु उन्हें बोलता देख बैठ जाता है । वह
कहते हैं, ‘आज इस पत्रकार वार्ता में हम चाहते हैं कि उन सभी आरोपों को उठाया जाए,
जो लोगों के बीच कानाफूसियों की शक्ल में अक्सर दिखाई दे रही हैं । हमारे ऊपर लग
रहे सभी आरोप मूर्खतापूर्ण हैं और आज हम इसे साबित कर देंगे । कृपया पूछने की
शुरुआत की जाए ।’
इशारा पाते ही खबरी खरगोश फिर खड़ा हो जाता है
और पूछता है, ‘महाराज, आपके ऊपर लगा यह आरोप कितना सही है कि आप नंबर एक नौटंकीबाज
हैं?’
प्रश्न सुनकर नीले सियार के चेहरे पर हँसी-सी
आती है । वह उसी तरह जवाब देते हैं,’ देखिए, जनता ने हमें जिताया है । हम महाराज
उन्हीं की बदौलत हैं । कर्ज है उनका हमारे ऊपर...वोटों का कर्ज । इस कर्ज के बोझ
को हम जनता को खुशहाल बनाकर ही उतार सकते हैं । नौटंकी देखने-दिखाने से उसे
प्रसन्नता प्राप्त होती है, तनाव दूर होता है जीवन का । अतः नौटंकी दिखा-दिखाकर हम
लगातार उसका मनोरंजन करते रहेंगे । जनता के हित के लिए हमें अपने ऊपर लगाया जा रहा
यह आरोप स्वीकार है ।’
दूसरा प्रश्न एक और पत्रकार खरगोश की तरफ से
उछलता है, ‘आप लोगों के ऊपर यह भी आरोप है कि आप लोग कभी भी, कहीं भी, किसी पर भी
थूक देते हैं और थूककर आगे निकल लेते हैं ।’
‘थूकना कोई शौक नहीं है हमारा ।’ नीले सियार
गम्भीर स्वर में बोलते हैं, ‘हम थूककर लोगों को उनकी औकात दिखाना चाहते हैं । लोग
हम पर थूकें, इससे पहले ही हम उन पर थूक देते हैं । अटैक इज द फर्स्ट डिफेंस...यू
नो । किसी को भी थूकने का हम मौका देना नहीं चाहते । इसीलिए थूकने को हमने अपनी
स्टेट पॉलिसी का हिस्सा बना रखा है ।’
‘आप लोगों के ऊपर यह भी आरोप है कि आप लोग भ्रष्टाचार
में लिप्त हैं, जबकि ईमानदारी का नगाड़ा बजाकर ही आप लोग सत्ता में आए थे ।’ इस
बार एक और कोने से प्रश्न उछला ।
‘समाज की धारणा है कि आम जन ही घूस देता है ।
खुशी से दे या नाखुशी से, पर देना उसे ही है । यही उसकी नियति है । हम इस नियति को
बदलना चाहते हैं । हम आम जन के प्रतिनिधि हैं, इसलिए घूस लेने और भ्रष्ट आचरण करने
की जिम्मेदारी हमारे कंधों पर ही आती है । जिसे आप भ्रष्ट आचरण कहते हैं, असल में
वह हमारा सत्य आचरण है । हमारे भ्रष्टाचार के पीछे हमारी नेक भावना है और लोगों को
इसे इसी रूप में देखने की आदत डालनी होगी । दरअसल हम कोई भी काम इस नेक भावना से
परे जाकर नहीं करते ।’
नीले सियार को इत्मीनान है कि अब सभी तक उनकी
बात पहुँच जाएगी...वह भी सही अर्थ और कलेवर के साथ । कई चैनलों ने तो अब तक
ब्रेकिंग न्यूज झोंकना भी शुरु कर दिया होगा ।
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