जंतर-मंतर आश्चर्य से मुँह फाड़े खड़ा था ।
आँखें बेहिसाब चौड़ी होती गई थीं । जिधर से देखो, उधर से सियार चले आ रहे थे ।
धरती के अंदर और आसमान को छोड़कर दिशाओं का कोई कोना बाकी नहीं था । खेलम-खेल थी,
मेलम-मेल थी, रेलम-पेल थी, जेलम-जेल थी, ठेलम-ठेल थी । हर कोई एक जगह पकड़ने को
आतुर । जिन्हें जगह मिल गई, वे बैठ गए थे । जिन्हें नहीं मिली, वे खड़े-खड़े ही
धरती को पैरों तले रौंद रहे थे ।
सामने मंच पर बैठे आठ-दस नेता टाइप सियार
अचानक खड़े हो गए थे । वे जोर-जोर से हाथ हिलाकर सबको शांत करने की कोशिश करने लगे
। सबके शांत होते ही मुख्य नेता सियार उठ खड़ा हुआ । गले में अच्छी तरह मफलर
लपेटने के बाद वह चार-पाँच बार खाँसा । गला साफ होने के बाद उसने सभी से
सियार-वंदना की अपील की । पूरा जंतर-मंतर हुआँ-हुआँ की मधुर ध्वनि से गूँज उठा ।
‘भाइयों,’ वंदना खत्म होते ही नेता सियार
बोला, ‘जीवन के हर क्षेत्र में, हर कार्य-व्यापार में, रोजमर्रा के हर व्यवहार में
हमें दिक्कतों का सामना है । हर जगह वह कौन है, जिसके कारण हमें बार-बार दौड़ना
पड़ता है, चप्पलों को घसीटना पड़ता है, फिर भी हाथ खाली-के-खाली रह जाते हैं ।’
‘कौन है वह?’ भीड़ में से आवाज आई ।
‘अच्छा प्रश्न किया किसी सियार दोस्त ने ।’
नेता सियार चहक उठा था । वह बोला, ‘भ्रष्टाचार है वह, जिससे हर सियार त्रस्त है ।’
‘उसे मार डालो...मार डालो ।’ भीड़ ऐसे हिलने
लगी, जैसे कई शांत लहरें अचानक विक्षुब्ध हो उठी हों ।
‘मार तो डाला जाए, पर यह तो पता चले कि वह
रहता कहाँ है ।’ एक दूसरा नेता उठकर बोला और भीड़ को शांत करने लगा । जैसे ट्यूब
से हवा निकल गई हो, भीड़ फिर चिपक कर बैठ गई ।
तभी मुख्य नेता सियार ऐलान करते हुए बोला, ‘ठीक
एक पखवाड़े बाद अगली शाम को हम फिर यहीं मिलेंगे । निश्चय ही इस अवधि में
भ्रष्टाचार का पता हमारी मुट्ठी में होगा ।’
एक पखवाड़े बाद वाली शाम थी आज । सियारों की
संख्या भी दोगुनी थी और उत्साह भी दोगुना । ‘क्या मिला ठिकाना? हमें भी तो पता चले
कौन-सी है उसकी गुफा ।’ भीड़ से आवाज आई, शायद वह तनिक भी ताकने के मूड में नहीं
थी ।
‘हाँ-हाँ, पता चल गया है ।’ मुख्य नेता सियार
उठते हुए बोला, ‘वह सत्ता के गलियारे में रहता है । लकड़बग्घों और भेड़ियों के
बंगले उसके आश्रय-स्थल हैं । उसे अक्सर खिड़कियों से झाँकते देखा जा सकता है ।’
‘तो देर किस बात की, उसे मार डालो...मार डालो
।’ एक हल्ला-सा उठा और भीड़ बेकाबू होने लगी ।
‘भाइयों-भाइयों,’ हाथ के इशारे से बैठने को
कहता हुआ नेता बोला, ‘इतना आसान नहीं है उसे मारना । वह बड़े-बड़े लोगों के शरणागत
है । उसे मारने के लिए घमासान करना होगा
और इस काम के लिए हमें चुनावी रण-क्षेत्र में उतरना होगा । सत्ता के गलियारों तक
पहुँचना होगा । क्या आप सब चुनावी रण-क्षेत्र के लिए हमें योद्धा चुनने को तैयार
हैं?’
‘हाँ-हाँ, आप लोग ही योद्धा होंगे ।’ भीड़ ने
एक स्वर से हामी भरी थी ।
मंच पर बैठे सारे नेता सियार चुनावी
रण-क्षेत्र से होते हुए सत्ता के गलियारे में पहुँच गए । भ्रष्टाचार से लड़ने के
लिए ताकत की जरूरत होती है और ताकत इकट्ठा करने के लिए उन्होंने अपना-अपना वेतन
कई-कई गुना बढ़ा लिया । अब टक्कर की लड़ाई थी । भ्रष्टाचार मजबूत था, तो ये भी कम
मजबूत नहीं थे । ये रोज-रोज उसे आँखें दिखाने लगे । वह भी इन्हें घूरता रहा और इसी
आँख-मिलाई में दो साल गुजर गए ।
जंतर-मंतर एक बार फिर गुलजार हुआ । ‘भ्रष्टाचार
का क्या हुआ’ जैसे प्रश्नों पर मुख्य नेता सियार गरजते हुए बोला, ‘भ्रष्टाचार बहुत
ढीठ है दोस्तों, वह कई रूपों में मौजूद है, पर हम उसे छोड़ेंगे नहीं । हमने
अंग्रेजों के डिवाइड एण्ड रूल की तरह एक पॉलिसी बनाई है-डिवाइड एण्ड किल । हम
भ्रष्टाचार के कुछ रूपों को अपनी तरफ मिला लेंगे और उन्हें कमजोर करके मार डालेंगे
। क्या इस पॉलिसी से सभी सियार सहमत हैं?’
भीड़ ने सिर हिलाया । सहमति पाकर एक नेता
सियार हाथ लहराते हुए बोला, ‘हम आम सियार थे, आम सियार हैं और सदा आम सियार बने
रहेंगे ।’ नेताओं की ऐसी भावना सुनकर भीड़ गद्गद हो तालियाँ पीटने लगी ।
जल्दी ही कुछ नेता सियारों के बंग्लों में
भ्रष्टाचार दिखाई देने लगता है । आम सियार खुश हैं कि नेता सियारों के सिर पर अभी
भी ‘मैं हूँ आम सियार’
की टोपी सजी हुई है ।
अच्छा व्यंग.
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