जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 28 जून 2016

एक झुठक्कड़ की तलाश है

                 

   दरबार-ए-खास में विशेष सन्नाटा था । महाराज सियार और उनके दो-चार सेवकों के अलावा वहाँ कोई नहीं था । महाराज ने सभी मंत्रियों को विलंब से आने का आदेश दिया था । इस वक्त उन्हें इंतजार था किसी का । न जाने कितनी बार सिंहासन पर पहलू बदल चुके थे । तभी खबरी खरगोश तेजी से दरबार-ए-खास में प्रवेश करता दिखाई दिया था । महाराज की मुख-मुद्रा पर एक मुस्कान-सी बिखर गई और इंतजार व बेचैनी के भाव तेजी से तिरोहित होते चले गए ।
   सिंहासन के निकट पहुँचकर खबरी खरगोश घुटनों तक झुका और महाराज से मुखातिब होते हुए बोला, ‘महाराज की जय हो, सुना है कि महाराज को इस नाचीज खबरी का इंतजार है ।’
   ‘हम बड़ी देर से प्रतीक्षा कर रहे हैं तुम्हारी । तुम हो कि पता नहीं कहाँ गुम हो गए थे । पर चलो, आ तो गए आखिर ।’ कहते हुए एक लम्बी साँस ली महाराज ने । चेहरे पर प्रसन्नता बरकरार थी ।
   ‘फरमाइए महाराज, क्या सेवा है मेरे लिए?’ सिर फिर झुका था उसका ।
   ‘बहुत ही खास काम है खबरी । मैं तुम्हें एक विशेष मिशन पर भेजना चाहता हूँ । मुझे योग्यतम झुठक्कड़ की तलाश है और इसके लिए तुम पूरे जंगल को छान मारो । जो भी खर्चा-पानी चाहिए, खजाने से ले लो ।’
   इतना सुनते ही खबरी खरगोश को झटका-सा लगा । ‘पर हुजूर, झूठ तो बुरी चीज है । आपने कथाओं में सुना ही होगा कि झूठ की पोल खुलने पर लोग चेहरा छिपा लेते थे, पतली गली से निकल जाते थे या फिर धरती मैया से याचना करते थे कि वह फट जाए और वे उसमें समा जाएं ।’
   ‘तुम सतयुग की बात करते हो खबरी, पर यह मत भूलो कि इस वक्त तुम हमारे दरबार में खड़े हो ।’
   ‘सत्य ही कहा महाराज ने । सतयुग तो बहुत पीछे छूट गया ।’ एक निःश्वास छोड़ते हुए खबरी खरगोश बोला, ‘जान की अमान हो, तो एक बात और कहूँ हुजूर । वो क्या है कि शास्त्र भी इसे अच्छा नहीं मानते । एक संत ने कहा है-साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।’
   यह सुनते ही महाराज सियार को हँसी आ गई । वह ठठाकर हँसते हुए बोले, ‘तुम्हें अपडेट होने की सख्त जरूरत है खबरी । तुम वो पुराना वाला वर्जन लेकर घूम रहे हो । नया वर्जन इस तरह है-झूठ बराबर तप नहीं, साँच बराबर पाप ।’
   ‘क्या सचमुच ऐसा ही है?’ ‘बिल्कुल ऐसा ही है । क्या तुम कह सकते हो कि मैं झूठ बोलता हूँ?’
   खरगोश उछला, ‘नहीं-नहीं महाराज, राजा झूठ कहाँ बोलता है ! फिर भी झुठक्कड़ की तलाश वाली बात समझ में नहीं आई ।’
   ‘तुम बस इतना समझो कि मुख्य रूप से सरकार को अब दो ही काम करना है । नकली काम का रेखाचित्र खींचना और उसका ढिंढोरा पीटना ।’
   ‘पर महाराज, झुठक्कड़ के तलाश की क्या जरूरत है? आप के पास तो एक से बढ़कर एक झूठ बोलने वाले मंत्री-रत्न हैं ।’
   ‘तुम्हारा कहना मुनासिब है खबरी, पर ऐसा झूठ किस काम का, जिसे विपक्षी सूँघ लें...जनता ताड़ ले । जब हम नगाड़ा बजाते हैं, तो नेपथ्य से झूठ-झूठ की आवाजें आने लगती हैं । ऐसा झूठ भी कोई झूठ है लल्लू !’
   कुछ देर रुककर महाराज फिर बोले, ‘नगाड़ा विभाग तो अच्छी तरह नगाड़े बजा रहा है, पर झूठ-विकास विभाग को अभी भी एक योग्य व्यक्ति की तलाश है, जो तकनीक का उस्ताद हो और सदा अपने को अपडेट रखता हो ।’

   अब खबरी खरगोश को समझते देर नहीं लगती कि सरकार को लम्बी अवधि तक चलाने के लिए लाल बुझक्कड़ की तरह लाल झुठक्कड़ की कितनी जरूरत है । झूठ चलेगा, तभी सरकार चलेगी । वह तेजी से सरकारी मिशन पर निकलता है । 

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