मैं शर्मा जी के घर के सामने पहुँचा ही था कि वे मुझे दूर से घर की तरफ आते
दिखाई दिए । उनके फर्राटा भरते हुए आ रहे स्कूटर से सावधान होने का सवाल ही नहीं
था, क्योंकि वे मेरे अच्छे मित्रों में से हैं । उन्हें भी पता था कि मुझे सावधान
नहीं करना है, पर स्कूटर नहीं माना और उसने मेरी साइकिल को ठोंक दिया । इसके बाद
वह इस तरह खड़ा हो गया, मानो बिना किसी मर्यादा के अपने चलते रहने की आजादी का
जश्न मना रहा हो । इधर मेरी साइकिल आँसू के घूँट पी रही थी...उसके जीवन की आजादी
का क्या ?
अब शर्मा जी की तरफ मैंने ध्यान से देखा । उनके होंठ फड़फड़ा रहे थे ।
दोनों नथुनों से तूफान निकल रहा था । लाल-लाल आँखों से ज्वालामुखी का लावा फूटकर
बह निकलने को बेताब था । क्या हुआ शर्मा जी-मेरे इतना पूछने भर की देर थी । वे फट
पड़े, ‘हद
हो गई । इस देश में अब आदमी अपने मन की बोल भी नहीं सकता । अभिव्यक्ति की आजादी भी
कोई चीज है कि नहीं ?’
‘पर
हुआ क्या, साफ-साफ तो बताइए ।’
‘हम
वहाँ बोलने गए थे ‘उनके’ समर्थन में, पर लोगों ने हमें बोलने ही नहीं दिया । आप जब बोलेंगे,
देश के पक्ष में ही बोलेंगे...यह कैसी आजादी हुई ? कभी भी, कुछ भी बोलने की आजादी है
हमें । देश में संविधान है...कोई मजाक नहीं है । हमारे इतना कहते ही वे लोग हम पर
भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़े और लात-घूँसों से ऐसी धुलाई की...’
आपने अपने विचारों को वाणी से अभिव्यक्त किया, उन्होंने लात-घूँसों से ।
आजादी दोनों तरफ थी । यह बात कहना चाहता था मैं उनसे, पर अपनी अभिव्यक्ति की आजादी
को रोकना ही मुनासिब लगा । मुझे उस भैंसे की कहानी याद आई, जो रोज खेतों में
हरी-हरी फसलों को खाया करता था । वह दो बार मुँह मारकर एक खेत से दूसरे खेत में
निकल जाता था । इस मर्यादा में रहने पर किसान भी उससे खुश रहा करते थे । चलो उसका
भी हक बनता है ।
एक दिन भैंसे ने सोचा कि चरना उसका अधिकार है । अत: क्यों नहीं जैसे चाहे वैसे, वह उसका
उपभोग करे । एक ही खेत में जमकर चराई के बाद वह उसे उजाड़ने लगा और कुछ ही पलों
में उस खेत को तहस-नहस कर डाला । अपनी आजादी का पूरा मजा उसने आज ही लूटा था । उधर
पता चलते ही किसान आ धमका । खेत की दुर्दशा देखकर वह आपे से बाहर हो गया और अपनी
अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग करते हुए उसे तब तक पीटता रहा, जब तक वह अधमरा न हो
गया ।
‘तुम्हारी
बकर-बकर बंद भी होगी कि नहीं ?’ अचानक उनकी पत्नी की आवाज गूँजी, जो दरवाजे पर
आ खड़ी हुई थीं । ‘पर शर्मा जी आपकी अभिव्यक्ति की आजादी...?’ मेरे मुँह से निकल गया । ‘हद करते हैं आप भी । क्या आप नहीं
जानते कि उसकी भी एक सीमा-रेखा होती है ।’ उन्होंने अपनी पत्नी की ओर देखते हुए
कहा ।
कोई भी आजादी सीमा-विहीन नहीं होती । मैंने उनसे कहना चाहा, किन्तु वे
पत्नी संग अंदर जा चुके थे ।
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