जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

गुरुवार, 31 मार्च 2016

सेल्फी का सेल्फ-कॉन्फिडेंस

                     
  यह अब ताज्जुब की बात नहीं रही । अपना फोटो अपना हाथ...अपना हाथ ही जगन्नाथ । जब जी में आया, खींच ली फोटो । न कहीं जाने की जरुरत, न किसी की मिन्नत । हर स्थिति का फोटो, हर परिस्थिति का फोटो । रोता हुआ-हँसता हुआ...उल्लास को समेटता फोटो । इसे हिन्दी में बोले तो...स्वयं का फोटो, स्वयं से लिया फोटो । अंग्रेजी में और इज्जत से बोले तो...सेल्फी !
   जो चीज स्मार्टफोन से पैदा होती है, वह क्या कम स्मार्ट होगी ! और उसके जलवे...माशा अल्लाह ! समाज के लिए इसकी अहमियत की बात करना इसकी शान में गुस्ताखी करना है । फिर भी गुस्ताखी करनी पड़ेगी...बस आपके लिए ।
   सेल्फी का कमाल देखिए । संसद में असहिष्णुता पर धुआँधार वाद-विवाद होता है । पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे को गरियाने-लतियाने से बाज नहीं आते । सबकी असहिष्णुता चरम पर होती है । असहिष्णुता की कार्यवाही...मतलब संसद की कार्यवाही खत्म कर वे बाहर निकलते हैं । आज की याद को सँजोने के लिए वे एक-दूसरे से चिपकते हैं और सेल्फी लेते हैं । सेल्फी उनमें सहिष्णुता भर देती है ।
   मीडिया किसी बात पर सरकार की ऐसी की तैसी कर रही होती है । वैसे बिना बात के भी ऐसा करना वह अपना हक मानती है । बात की खाल तो सामान्य है, पर बिना बात की खाल ! उधर सरकार उसे आत्मसंयम का परिचय देने को कहती है । जितना यह सब होता है, दोनों के बीच दूरी बढ़ती जाती है । संयोगवश सरकार और मीडिया की आँखें चार होती हैं और दोनों का सेल्फी प्रेम जाग उठता है । सेल्फी उनके बीच की दूरी को निकटता में बदल देती है । मीडिया इसे आम आदमी तक पहुँचाती है और इस तरह आम आदमी सरकार से निकटता महसूस करता है ।
   उधर एक बच्चे को अपने पिता से चेतावनी मिलती है । अमुक लड़के से अपनी तबला-भिड़ंत तत्काल बंद करो और प्रमाणस्वरूप उसके साथ की सेल्फी मेरे नंबर पर पोस्ट करो । यह अलग बात है कि कटुता को खत्म कर मित्रता के सबूत के रूप में उस बच्चे ने अपनी सेल्फी भेज दी, किन्तु तत्काल बाद तबला-वादन में संलग्न हो गया । खैर, अगली सेल्फी उसका दिमाग ठिकाने लगा देगी ।
   अभी कल सेल्फी ने कमाल कर दिया । एक चोर बड़ा हाथ मारने के बाद ऑन द स्पाट सारे सामानों के साथ अपनी सेल्फी लेकर पोस्ट करने लगा, ताकि अन्य चोरों के बीच अपना सिक्का जमा सके । देर होने के कारण वह धर लिया गया । आज सारे शहर में उसी स्मार्ट चोर की चर्चा है ।

   सेल्फी हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है । इससे उसके आत्मविश्वास की झलक मिलती है ।    

बुधवार, 23 मार्च 2016

राहत का जाम पिला गया वह

                      
   किसी ने विजय माल्या को एक फूल देने तक की जहमत नहीं उठाई, पर वे खुद ही माला पहनकर विदा हो गये । बेचारा हमारे बीच से उठ गया और हम सोते रह गये...मतलब पंछी-पखेरू उड़ गया । हम कुछ कर न सके । नहीं जनाब, वो पूरी तरह खर्च नहीं हो गये, वरन इंग्लैण्ड जाकर खर्च कर रहे हैं । जाहिर सी बात है कि वो करेंगे, तो शाहखर्ची ही करेंगे । सरकारों के लिए राहत वाली बात है । पूर्व सरकार को सुकून है कि उसका बोया बिरवा अब दैत्याकार दरख्त बन गया है । लगातार कर्ज लेकर उन्होंने सरकार की नाक तो नहीं कटवाई न ! कर्ज लिया, तो किसी करोड़ीमल की तरह नदी-जल का सेवन नहीं किया, बल्कि हमेशा घृत ही पिया । अब वो चले गये, तो उस सरकार का विलाप बनता है भाई ।
   वर्तमान सरकार भी खुश है । एक महान कर्जयोगी, जो निरन्तर कर्ज से योग की साधना करता रहा और इस देश को लाभान्वित करता रहा, अब इंग्लैण्ड वासियों से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाएगा । ऐसे साधक को अगर सरकार गिरफ्तार कर लेती, तो पूरब से पश्चिम तक उसकी थू-थू न हो जाती ?
   उधर बैंक और बैंक वाले भी गद्गद् हैं । भूत तो चला गया, पर वह अपनी लंगोटी नहीं समेट पाया । भागते भूत की लंगोटी सचमुच भली लगती है । सभी बैंक उस लंगोटी को लूटने के लिए मैदान में हैं । उनके कुछेक पैसों पर उन्होंने दावा ठोंक दिया है । लोग कहते हैं कि बैंक कर्जदारों के प्रति कठोरता का परिचय नहीं देते । किसी जाते हुए इंसान या भूत की लंगोटी लूटने में आपको कठोरता दिखाई नहीं देती ? बेचारा, जो जा रहा है, वह तो नंगा हो गया न ! उसके मानवाधिकार या भूताधिकार की रक्षा क्या आपकी जिम्मेदारी नहीं है ?
   जिम्मेदारी सभी की है । इसी क्रम में गाँव का घुरहू किसान भी प्रसन्न है । वह खुश है कि उन्होंने घृत तो अपने मुख पर लपेटा, पर चूना बैंकवालों के मुँह पर मल दिया । दो हजार के कर्ज के लिए यही बैंकवाले उसके मुख पर भरे समाज में कालिख पोत आए थे । इधर हमारे घर में भी जबर्दस्त उत्साह है । पत्नी कर्ज लेकर ठाठ करने की योजना पर मुस्तैदी से विचार कर रही है । माल्या साहब के खोज किए गये सुरक्षित रास्ते का अनुकरण हमें करना ही चाहिए ।

मंगलवार, 15 मार्च 2016

सम्मान का हकदार भ्रष्टाचार

                    
   भ्रष्टाचार पर न्यायपालिका की भृकुटि टेढ़ी हो गई है । वह इसके साम्राज्य को नेस्तो-नाबूत कर देना चाहती है । वह चाहती है कि इसकी जड़ों में मट्ठा डाल दिया जाए, ताकि यह हमेशा-हमेशा के लिए अपनी जड़ों से हाथ धो बैठे । नंद वंश के साम्राज्य को ध्वस्त एवं नष्ट करने के लिए चाणक्य ने इसी प्रक्रिया व तकनीक का सहारा लिया था । वे इसकी जड़ों में निरन्तर अपने संकल्पों का मट्ठा डालते रहे ।
   न्यायपालिका का कहना है कि भ्रष्टाचार एक प्रकार का आतंकवाद है । इसे पहचानने हेतु आप इसे आर्थिक आतंकवाद कह सकते हैं । फैलाव के नजरिए से देखा जाए, तो यह बंदूक वाले आतंकवाद से कहीं अधिक व्यापक है । सम्मान के नजरिए से भी देखा जाए, तो इसे बंदूक वाले जनाब से अधिक सम्मान हासिल है । पाकिस्तान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर जैसी कुछेक कंपनियां हैं, जो बंदूक वाले आतंकवाद के सम्मान को बढ़ाने के लिए न केवल पूंजीगत निवेश कर रही हैं, बल्कि जबर्दस्त श्रम-शक्ति भी झोंक रही हैं । पर वह सम्मान हासिल नहीं कर सकी हैं, जो भ्रष्टाचार को हासिल है ।
   बंदूक वाले आतंकवाद में एक पक्ष पीड़ित होता है, तो एक पक्ष पीड़ा देने वाला । पीड़ित के मन में आक्रोश की ज्वालाएं दहकती हैं, क्रोध का ज्वालामुखी धधकता है, दुख का समंदर हिलोरें मारता है; तो दूसरी तरफ पीड़ा-प्रदाता तत्काल-सुख के नाले में डूबता-उतराता है । आतंक रूपी अपनी उपलब्धि पर उसे गर्व तो होता है, किन्तु संतोष की प्राप्ति नहीं होती । संतोष हो जाता, तो आगे वह आतंक का मुरब्बा ही क्यों डालता...मतलब वह असंतोष की कड़ाही में फ्राई होता रहता है ।
   यह वाला आतंकवाद थोड़ा हटकर है । वैसे तो भ्रष्टाचार में भी दो पक्ष होते हैं—पीड़ित और पीड़क, किन्तु यहाँ पीड़ित पक्ष की मन की स्थिति भिन्न होती है । काम के लिए वह दर-दर भटकता है, पेट काटकर रिश्वत देने को विवश होता है, किन्तु तमाम जद्दोजहद के बाद काम हो जाने पर वह सुकून की साँस लेता है । रिश्वत लेकर काम करने वाले के लिए उसके मन में दुआ-ही-दुआ होती है । कितना भला आदमी था । पैसा तो लिया, किन्तु काम कर दिया । उधर पीड़क असंतोष की और अधिक गहराई में उतर जाता है । संतोष हो जाता, तो आगे रिश्वत ही क्यों मांगता !

   भ्रष्टाचार पर अंकुश लगने से पीड़ित पक्ष और अधिक पीड़ित हो उठेगा । वह रिश्वत किसे देगा और काम करवा पाने का सुख कैसे समेट पाएगा ! उधर रिश्वतखोर भी...नो खनकता पैसा, तो समय से काम कैसा ! आतंक की अच्छी-खासी स्थिति तो अब बनने वाली है । अत: भ्रष्टाचार को मात्र आतंकवाद कहकर न्यायपालिका इसे अपेक्षित सम्मान नहीं दे रही है ।

मंगलवार, 8 मार्च 2016

सीमाएं भी होती हैं

                 

   मैं शर्मा जी के घर के सामने पहुँचा ही था कि वे मुझे दूर से घर की तरफ आते दिखाई दिए । उनके फर्राटा भरते हुए आ रहे स्कूटर से सावधान होने का सवाल ही नहीं था, क्योंकि वे मेरे अच्छे मित्रों में से हैं । उन्हें भी पता था कि मुझे सावधान नहीं करना है, पर स्कूटर नहीं माना और उसने मेरी साइकिल को ठोंक दिया । इसके बाद वह इस तरह खड़ा हो गया, मानो बिना किसी मर्यादा के अपने चलते रहने की आजादी का जश्न मना रहा हो । इधर मेरी साइकिल आँसू के घूँट पी रही थी...उसके जीवन की आजादी का क्या ?
   अब शर्मा जी की तरफ मैंने ध्यान से देखा । उनके होंठ फड़फड़ा रहे थे । दोनों नथुनों से तूफान निकल रहा था । लाल-लाल आँखों से ज्वालामुखी का लावा फूटकर बह निकलने को बेताब था । क्या हुआ शर्मा जी-मेरे इतना पूछने भर की देर थी । वे फट पड़े, हद हो गई । इस देश में अब आदमी अपने मन की बोल भी नहीं सकता । अभिव्यक्ति की आजादी भी कोई चीज है कि नहीं ?’
   पर हुआ क्या, साफ-साफ तो बताइए ।
   हम वहाँ बोलने गए थे उनके समर्थन में, पर लोगों ने हमें बोलने ही नहीं दिया । आप जब बोलेंगे, देश के पक्ष में ही बोलेंगे...यह कैसी आजादी हुई ? कभी भी, कुछ भी बोलने की आजादी है हमें । देश में संविधान है...कोई मजाक नहीं है । हमारे इतना कहते ही वे लोग हम पर भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़े और लात-घूँसों से ऐसी धुलाई की...
   आपने अपने विचारों को वाणी से अभिव्यक्त किया, उन्होंने लात-घूँसों से । आजादी दोनों तरफ थी । यह बात कहना चाहता था मैं उनसे, पर अपनी अभिव्यक्ति की आजादी को रोकना ही मुनासिब लगा । मुझे उस भैंसे की कहानी याद आई, जो रोज खेतों में हरी-हरी फसलों को खाया करता था । वह दो बार मुँह मारकर एक खेत से दूसरे खेत में निकल जाता था । इस मर्यादा में रहने पर किसान भी उससे खुश रहा करते थे । चलो उसका भी हक बनता है ।
   एक दिन भैंसे ने सोचा कि चरना उसका अधिकार है । अत: क्यों नहीं जैसे चाहे वैसे, वह उसका उपभोग करे । एक ही खेत में जमकर चराई के बाद वह उसे उजाड़ने लगा और कुछ ही पलों में उस खेत को तहस-नहस कर डाला । अपनी आजादी का पूरा मजा उसने आज ही लूटा था । उधर पता चलते ही किसान आ धमका । खेत की दुर्दशा देखकर वह आपे से बाहर हो गया और अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग करते हुए उसे तब तक पीटता रहा, जब तक वह अधमरा न हो गया ।
   तुम्हारी बकर-बकर बंद भी होगी कि नहीं ?’ अचानक उनकी पत्नी की आवाज गूँजी, जो दरवाजे पर आ खड़ी हुई थीं । पर शर्मा जी आपकी अभिव्यक्ति की आजादी...?’ मेरे मुँह से निकल गया । हद करते हैं आप भी । क्या आप नहीं जानते कि उसकी भी एक सीमा-रेखा होती है । उन्होंने अपनी पत्नी की ओर देखते हुए कहा ।

   कोई भी आजादी सीमा-विहीन नहीं होती । मैंने उनसे कहना चाहा, किन्तु वे पत्नी संग अंदर जा चुके थे । 
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