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उधर सत्ताधारी नेता का आरोप है कि सत्ताहारी नेता न खुद काम कर रहा है और न
उसे काम करने दे रहा है । अब सवाल यह है कि सत्ताहारी नेता काम नहीं कर रहा है, तो
उसे रोक कैसे रहा है ? रोकना भी काम ही होता है और बड़ी मेहनत का काम होता है । स्फष्ट है
कि यह पूरी मेहनत से काम कर रहा है । सत्ता के बंजर-भूमि में बैठा नेता अपने बैलों
को उल्टी हांक ही लगाता है । सीधे चलने से फसल नहीं लहलहाने लगती । दूसरा आरोप है
कि इसकी वजह से वह भी काम नहीं कर पा रहा है । खिसियानी बिल्ली खम्भा नोंचे । यह
भी अपने को वोट न देने वालों से खिसियाया हुआ है । वोट न देने वालों को तो नोंच
नहीं सकता, क्योंकि वोट मांगने फिर उन्हीं के पास जाना होगा । अत: उसे ही नोंचकर अपनी संचित ऊर्जा को
सुरक्षित रूप से निर्मुक्त कर रहा है । उसे सेफ्टी वाल्व बनने का निरन्तर अवसर
दिया जा रहा है इस नेता की तरफ से और वह है कि कहे जा रहा है कि उसे देश के लिए
कुछ करने ही नहीं दिया जा रहा ।
दरअसल दोनों ही काम में लगे हुए हैं । सत्ताहारी नेता न केवल उसकी टांग
खींचकर संहार-संहार खेल रहा है, बल्कि सत्ता-सुंदरी से दूरी का निर्मम प्रहार भी
झेल रहा है । सड़क से संसद तक उसकी हताशा झलक रही है । इस हताशा का प्रदर्शन ही
इसकी आशा का दर्शन है । यह संसद के कूँए में कूद रहा है, किसानों से गलबहियाँ कर
रहा है, विभिन्न संस्थानों में छात्रों से मिल रहा है, अच्छी मौतों पर आँसू बहा
रहा है, सुबह से शाम तक उपवास करके जूस पी रहा है । देश के लिए इतना कुछ करने के
बावजूद भी यह थक कर नहीं बैठता । थकता भी है, तो विदेश जाकर थकान उतार लेता है ।
अपने देश को कष्ट नहीं देता ।
उधर वह भी खूब काम कर रहा है । यात्राओं की भरमार है-देश में तो उसकी सरकार
है, पर विदेश में भी उसकी दरकार है । वह अंग्रेजी के अक्षरों को महिमामंडित करके
समाज को खास संदेश व बीज-मंत्र दे रहा है । वह सत्ताधारी नेता न केवल जनता को
विकास-युक्त करना चाहता है, बल्कि देश को इस सत्ताहारी नेता से मुक्त भी करना
चाहता है । ऐसे में काम के अलावा काम ही तो होगा ।
दोनों के पास काम का जंजाल है । काम के कमाल से धमाल मचे, तो आश्चर्य कैसा !
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