साधो, लगता है कि इंतजार करने का धीरज आज किसी के पास नहीं है । चार-पाँच
साल बिजली-संयन्त्र लगाने में निकल जाएँ, उसके बाद बिजली का उत्पादन शुरू हो और तब
वह घरों में पहुँचे, यह अधिकांश लोगों को मंजूर नहीं । कल-कारखाने स्थापित करने
में बरसों लग जाएँ, तब जाकर जरूरतमंदों को रोजगार मिले, यह भी बहुत कम लोगों को
स्वीकार है । विकास के ढाँचे पर वास्तव में काम हो और परिणाम के लिए बरसों टकटकी
लगानी हो, तो यह स्थिति सम्भवत: किसी को स्वीकार नहीं ।
यह अतीत के कटु अनुभवों का नतीजा भी हो सकता है । राजनीतिक दलों द्वारा
अतीत में एक से बढ़कर एक शानदार वादे किए गए और उसी शानदार तरीके से उन्हें भुला
भी दिया गया । इन सब चीजों से आमजन ने यह निष्कर्ष निकाला कि भविष्य की काल्पनिक
रेवड़ियां खाने से पेट नहीं भरता । भविष्य पर नजर रखने से वर्तमान को भी नजर लग
जाती है । कल के लिए आज को कष्ट देना अब लोगों को मूर्खतापूर्ण लगता है ।
अब लोगों का ध्यान इस बात पर फोकस हो गया है कि सरकार क्या करती है, इस बात
से उसका कोई सरोकार नहीं । सरोकार है, तो केवल इस बात से कि हाथों-हाथ परिणाम की
प्राप्ति हो जाए । इसके लिए वह किसी को समय देने के लिए तैयार नहीं । तत्काल लाभ
जो दे, केवल उसी का भला । राजनीतिक दल और नेता भागते भूत की तरह हैं, जिनसे लंगोटी
लेने या छीन लेने में कोई बुराई नहीं । यही वजह है कि वोट के लिए पैसा देने वाले
सभी लोगों का स्वागत हो रहा है ।
जो आज के लाभ की बात कर रहा है, वही सिर-आँखों पर...बस वही जीत भी रहा है ।
साड़ी, धोती, टीवी, मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप, गेहूँ, चावल, रसोई-गैस, बिजली,
पानी-सब कुछ हाथों-हाथ चाहिए । काम भले मत दो, सब्सिडी दो, निठल्ला-भत्ता दो,
बहुरंगी पेंशन दो । कर्ज दो, देश का हर्ज करो, पर लौटने-लौटाने का फर्ज भूल जाओ ।
अम्मा कैंटीन दो, बाबूजी लैट्रिन दो । जनता-रथ दो, हवाई पथ दो, वोट के लिए सब कुछ
सामने रख दो ।
नेता भी समझदार है । वह हनुमान जी की तरह अपना नहीं, बल्कि आमजन की छाती
फाड़कर सब कुछ देख-समझ रहा है । उसे भी क्या पड़ी है विकास की । अपना उल्लू सीधा
होते रहना चाहिए । अत: वह भी लॉलीपाप ही बाँट रहा है ।