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‘प्रधानमंत्री
जी, क्या इन बादलों के लिए भी हमें कोई योजना बनानी पड़ेगी,’ अचानक बोल फूटने लगते हैं महाराज के
मुख-कमल से, ‘आखिर
योजनाएं बनानी ही क्यों पड़ती हैं ?’
‘क्योंकि
योजनाएं बनाना सरकार का धर्म होता है महाराज,’ प्रधानमंत्री नम्रतापूर्वक जवाब देते
हैं, ‘सरकार
योजनाएं न बनाए, तो वह काम करती हुई नहीं दिखती और काम करते हुए दिखना उसके लिए अनिवार्य होता है ।’
‘अच्छा...मगर
यह विकास का क्या लफड़ा है ?’
‘कोई
नहीं महाराज, योजना ही असली चीज होती है । इसका महत्व इसी से लगाया जा सकता है कि
योजना के लिए भी योजना की दरकार होती है ।’
तभी खबरी खरगोश दरबार-ए-खास में प्रवेश करता है । घुटनों तक
सिर झुकाते हुए जय बोलता है महाराज की और खामोश खड़ा हो जाता है ।
महाराज सियार से रहा नहीं जाता ।
बेचैनी मुँह से फूट पड़ती है,‘खबरी, तुम्हारी चुप्पी अच्छी
नहीं लगती हमें । तत्काल राज्य का हाल सुनाओ । क्या बूँदा-बाँदी शुरू हो गई है
?’
‘हाँ हुजूर, लगभग
पूरे जंगल में ऐसा होने लगा है । जनता विकास की राह तकते-तकते थक गई है । उसे
चिंता है कि विकास कहीं इस पानी से भीग न जाए ।’
‘फिर विकास
?’ महाराज झुँझला उठते हैं । प्रधानमंत्री की ओर मुखातिब होते
हुए,‘जल्दी से हमें सारी बात बताइए ।’
‘आप तो जानते ही हैं कि सारी
योजनाएं बैलगाड़ी पर लादकर तत्काल रवाना कर दी गई थीं । विकास भी दूसरी बैलगाड़ी
पर था ।’ फिर कुछ सोचते हुए,‘कहीं विरोधी
दलों ने गाड़ी को हाइजैक तो नहीं कर लिया ?’
खबरी खरगोश बीच में आते हुए कहता है,‘जान की अमान हो, तो कुछ कहूँ हुजूर ? विकास को हमने मंत्रियों और नेताओं के घरों की
ओर जाते देखा था ।’
महाराज खबरी को झिड़कते हैं,‘चुप रह । नेता जनता का प्रतिनिधि है । तुझे उसी के विकास पर आपत्ति है
?’ फिर प्रधानमंत्री की ओर मुड़कर,‘कोई तो
रास्ता होगा, जिससे सरकारी योजनाओं को आम जन तक पहुँचा दिया जाए ?’
‘है महाराज,
अखबारों में सरकारी विज्ञापन पर हमने चार साल तक अथक परिश्रम किया है । वहाँ
योजनाएं भी हैं और विकास भी कितना खूबसूरत दिखता है ।’
‘बहुत खूब ! अब जनता तक विकास पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता । महाराज सियार हर आम जन
तक एक-एक अखबार पहुँचाने का हुक्म जारी करते हैं ।
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