जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 9 मई 2017

मौज का कड़वा घूँट

                                                                  

   नीले सियार अपने सिंहासन पर विराजमान हैं ठीक बगल में उनके खास सलाहकार मुस्तैदी से जमे हुए हैं सामने अन्य पदाधिकारी अपनी-अपनी सीटों से इस तरह चिपके हुए हैं कि देखने वाले को लगे कि उन्हें कुर्सी का कतई मोह नहीं है जब मोह नहीं, तो चिंता किस बात की ! पर एक खास किस्म की चिंता पूरे दरबार पर हावी है अन्य तो अन्य, खुद नीले सियार को भी चिंता हो चली है कहीं सिंहासन के नीचे की जमीन तो भुरभुरी नहीं होने जा रही बात ही ऐसी है बगावत की खबरें रही हैं पुष्टि होना अभी बाकी है और इसीलिए खबरी खरगोश का इंतजार है
   ‘महाराज, क्या आपको लगता है कि ऐसा भी हो सकता है हमारे साथ, कोई बगावत भी कर सकता है?’ सलाहकार ने दरबार की चुप्पी को तोड़ने की गरज से पूछा
   ‘क्यों नहीं, हम आम सियार हैं और कोई नहीं चाहता कि आम का राज हो हर तरफ हमारे खिलाफ साजिश-दर-साजिश है ।’ कहते-कहते नीले सियार के चेहरे पर क्रोध की लाली-सी बिखर गई
   ‘मगर हुजूर, विपक्षियों ने तो एक अलग ही राग को छेड़ रखा है ।’ इस बार आम कल्याण मंत्री अपनी बात को आगे रखते हुए बोले, ‘वे तो खुले-आम आरोप लगा रहे हैं कि हम अब आम कहाँ रहे महंगी गाड़ियों, खूब बढ़ी तनख्वाह और शानदार बंगलों के साथ हम खास वाले मुगल गार्डेन में तो कब के चुके हैं ।’
   ‘यह केवल आरोप नहीं, बल्कि साजिश है हमारे खिलाफ ।’ सिंहासन को हाथों से कसते हुए तेज आवाज में नीले सियार ने कहा, ‘वे नहीं चाहते कि एक आम सियार खास बन जाए उन्हें क्या पता कि खास बनते हुए हमें कितना दुख हुआ था, पर खुशी भी कुछ कम थी आम सियारों में स्पष्ट संदेश जा रहा था कि अब आम रहने के दिन लद गए ।’
   तभी खबरी खरगोश दरबार में प्रवेश करता है हड़बड़ी में नीले सियार की जय बोलते हुए खबरों को उगलना शुरू करता है, ‘खबर सौ फीसदी सच है महाराज जो आपका लंगोटिया यार था, वही अब मैदान में है अविश्वास की आड़ी-तिरछी रेखा खिंच चुकी है विश्वास की भीत दरक गई है बगावत का विगुल बज उठा है ।’
   ‘हम समझे नहीं खबरी, विस्तार से बताओ जरा ।’ कहते-कहते नीले सियार की व्यग्रता चरम पर जा पहुँची थी
   ‘महाराज, उनका कहना है कि हमारा दल जिस मिशन को लेकर चला था, उससे वह भटक चुका है हम अब सत्तालोलुप हो चुके हैं सत्ता ही अब हमारा मिशन है हम आम-आम कहते जरूर हैं, पर काम कुछ नहीं करते सत्ता हमारे लिए मौज-मस्ती का अड्डा बन गई है मौज-मस्ती में और इजाफा हो, इसके लिए हम एक राज्य से दूसरे राज्य को लपक रहे हैं क्या आम अब लपकने की चीज बन गया है?’
   ‘लगता है कोई पद पाकर वह खिसियानी बिल्ली हो गया है और हमारी सत्ता के खम्भे नोंच रहा है हम उसकी हताशा को समझते हैं, पर उसे एक सबक भी देना चाहते हैं सत्ता में आने पर पता चलता है कि मौज क्यों जरूरी है ! आप मौज भी करना चाहें, तो भी मजबूरी में मौज आपको करनी पड़ती है जनता को तब कितना कष्ट होगा, जब उसे पता चलेगा कि सत्ता में बैठकर भी उसके आम सियार को मौज मयस्सर नहीं मौज देखकर ही तो उसे सांत्वना मिलती है कि एक दिन वह भी मौज को प्राप्त होगा ।’
   ‘बेशक महाराज ।’ इस बार सलाहकार ने मुँह खोला, ‘चूँकि हम आम सियार हैं, इसलिए हमारा यह खास कर्तव्य बनता है कि हम ज्यादा से ज्यादा मौज-मस्ती करें, ताकि पीछे की कमियों की भरपाई हो सके ।’
   पूरा दरबार प्रसन्न हो उठता है बगावत और बगावती को दबाने के लिए खास मंत्रियों की एक आत्मतुष्ट टीम छोड़ी जाती है खबरी खरगोश एक टीवी चैनल की ओर भागता है     


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