जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

बाढ़...फिर आना इस देश

                   
   साधो, वर्षा ऋतु आते ही हमारे यहाँ धर्म-कर्म कुछ ज्यादा ही बढ़ जाते हैं । आम जन-किसान पूजा-पाठ-हवन और यज्ञादि करने लगते हैं । प्रयोजन ऊपर वाले को रुष्ट होने से रोकना होता है, ताकि वह नीचे वालों की इच्छाओं को पुष्ट एवं संतुष्ट करता रहे । वर्षा की इतनी आपूर्ति वह अवश्य कर दे कि ‘भूखे भजन न होंहि गोपाला’ कहने की नौबत न आए । पेट भी भर जाए और भजन भी चलता रहे । उधर बड़े-बड़े अफसर और नेतागण बड़े-बड़े पंडितों के माध्यम से बड़े-बड़े यज्ञों के आयोजन करवाते हैं । उनका प्रयोजन कुछ हटके होता है । वर्षा हो तो इतनी हो कि चारों तरफ बाढ़ आ जाए और नहीं तो एकदम सूखा पड़ जाए । सूखे का सुख तो सूखा आने पर ही मिलता है । बाढ़ में जैसे पानी का बढ़ाव होता है, वैसे ही खुशनसीबों के घर में लक्ष्मी का पड़ाव होता है ।
   खुशनसीबी देखिए कि वर्षा ऋतु इस तरह आई है कि आमजन बाढ़ से बेहाल हैं और बहुत से जिम्मेदार लोग उनका हाल लेने के लिए बेहाल हैं । जहाँ दादुर मेघ-मल्हार की टर्र-पों में उलझे हुए हैं, वहाँ खुशनसीब मानव मन बाथ-रूम में सुलझे रूप में गा उठा है-आया सावन झूम के...भादो भी आना चूम के ।
   वैसे धुँआधार बारिश और बाढ़ के अनेकों फायदे हैं । बाढ़ जीव-जन्तुओं को यह सुनहरा मौका देती है कि वे अपने जीवन की एकरसता को छोड़कर कुछ दिन बहुरसता में व्यतीत कर सकें । कहाँ वे टेढ़े-मेढ़े बिल और घुटती साँसें और कहाँ पेड़ों-झाड़ियों का विराट विस्तार ! कुछ नसीब वाले जीव-जंतुओं को तो मानव घरों में भी प्रवेश करने का मौका मिल जाता है । पिकनिक का ऐसा महा-आयोजन वे भला किस हस्ती के बल पर कर सकते थे ! यह बाढ़ ही है, जो पेड़ों-झाड़ियों पर लटकाती, सावन-भादो के झूले झुलाती तथा मानव-घरों को बारीकी से निरखने का सुख प्रदान करती है ।
   आम जन बाढ़ के बड़प्पन को देख अपनी क्षुद्रता का अहसास नहीं करता । चारों तरफ जल प्रलय उसे उसकी निःसारता का बोध कराता है । भूख-प्यास की अनुभूति उसकी सहनशीलता को चट्टानी रूप प्रदान करती है । वह खुद को उन ऋषि-महर्षियों के समकक्ष पाता है, जो भूख-प्यास की पीड़ा को तज तपस्या में तल्लीन रहते हैं । आसमान से संभावित टपकने वाले खाने के पैकेटों के लिए टकटकी क्या किसी साधना से कम है? राहत के लिए जिम्मेदार लोगों के कोरे आश्वासन यही बयाँ करते हैं कि पूरा यह संसार असत्य है, तथा सत्य केवल ऊपर जाना है ।
   बाढ़ सबसे ज्यादा लाभ अपने को इज्जत से बुलाने वालों को देती है । निरीह आम जनों के हाथों में खाने के पैकेट के साथ सेल्फी का मौका खुशनसीब बन्दे को ही मिलता है । पूरा सोशल मीडिया उनकी महानता और उपकार के चर्चों से ऐंठने लगता है । कागजों पर राहत के घोड़े रेस लगाते हैं और धरातल पर आम जन भूख को फेस करते हैं । यह सत्य जितना बड़ा होता है, खुशनसीबों के मन की राहत भी उतनी ही बड़ी होती है । दीपावली के बहुत पहले ही लक्ष्मी घर में आ बिराजती हैं । वैसे भी लक्ष्मी पहले ही घर में चली आएं, तभी दिवाली की पूजा सार्थक बनती है । बाढ़ में दिवाली...यह चमत्कार हमारे यहाँ ही सम्भव है । इस चमत्कार को प्रणाम करते हुए किसी भी अन्य का यह अधिकार नहीं बनता कि वह बाढ़ या खुशनसीब लोगों को गालियाँ दे, चोर और भ्रष्ट कहे ।

   ढेर सारे लाभों को देखते हुए देश-हित में हमें बाढ़ की भयावहता को बढ़ाने के प्रयास में जुट जाना चाहिए, क्योंकि बाढ़ जितनी विकराल होगी, उससे मिलने वाले सुख उतने ही कमाल के होंगे । आइए, देश के सिर पर सवार बाढ़ से हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "शब्दों का हेर फेर “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. बाढ़ एक फायदा अनेक ...
    ..कई राहत पहुचाने वाले लोगों की तो जैसे लाटरी निकल पड़ती है

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