हमारे एक पड़ोसी की फितरत अजीब है । जिस काम
का विरोध होता है, वही काम करने में उन्हें मजा आता है । लोगों ने उनके मोहल्ला
विकास दल का सदस्य बनने का विरोध किया, वह बन गए । फिर उन्होंने उस दल का मुख्यमंत्री
बनना चाहा । विरोध हुआ । कहा गया कि सबको साथ लेकर चलना उनके वश की बात नहीं । वह
अड़ गए । विरोध उत्पन्न हुआ, तो सहानुभूति भी पैदा हुई । वह अच्छे मतों से मोहल्ला
विकास दल का नेता अर्थात मुख्यमंत्री बन गए । उन्होंने बड़प्पन का परिचय दिया और
सबको साथ लेकर चलने की घोषणा कर दी । अब सबका ध्यान होगा, सभी की इच्छाओं का
सम्मान होगा ।
लोगों ने कहा कि नया पद है, नया काम है, अतः
शुरुआत प्रभु के स्मरण से होनी चाहिए । उनकी इच्छा का मान रखते हुए रामायण-पाठ का
आयोजन कर दिया गया । उन्होंने स्वयं मोर्चा सम्भाला । वह यह काम किसी और पर नहीं
छोड़ना चाहते थे । प्रभु का स्मरण हो और वह भी किसी और से करवाया जाए ! इस काम में
काम का हस्तांतरण अर्थात आउटसोर्सिंग के पक्ष में वह कभी नहीं रहे । खुद ही पाठ
कहना शुरू किया...हर संभव शुद्धि एवं शांति के साथ । दिन बीता, रात बीती ।
पाठ-समापन के साथ प्रसाद के वितरण की बेला, मगर लोगों का नहीं लगा मेला । एकाध को
छोड़ कोई प्रसाद लेने नहीं आया ।
‘काहे भइया, प्रसाद लेने नहीं आए । कुछ गलत-वलत
हो गया क्या?’ कोमल स्वर में पूछा था उन्होंने एक पड़ोसी से ।
‘जंगल में मोर नाचा, किसने देखा । बिना ध्वनि विस्तारक
यंत्र के मंगल-गान हुआ, किसने सुना । जब कोई सुने, तब न आए प्रसाद लेने । किसी को
लगा ही नहीं कि आपके यहाँ कुछ हुआ है ।’ यह सिर्फ पड़ोसी की बात नहीं थी, बल्कि
पूरे मोहल्ले का प्रतिनिधि कथन था । प्रसाद तो पहुँच गया सभी के हाथों में, पर मन
की बात नहीं पहुँची किसी के मन तक ।
दो दिनों के बाद खूब धूम-धड़ाके के साथ फिर
शुरू हुआ रामायण का पाठ । ढेर सारे ध्वनि विस्तारक यंत्रों ने ऐसा समाँ बाँधा कि
कुछ लोग वाह-वाह, तो कुछ लोग आह-आह कर उठे । दिन को मजा, रात को सजा ।
रोगी-बुजुर्ग तो क्या, ढीठ नौजवान तक सो नहीं पाए । उधर रामायण में तीर सनन-सनन चल
रहे थे और वीर कट-कट के गिर रहे थे, इधर अपने घरों में दुबकी ऑडियंस नींद-रक्षा के
लिए त्राहि-त्राहि के विगुल बजाए जा रही थी । उधर कितने वीरों ने क्या किया, पता
नहीं, पर इधर के कई वीर सुबह होने के पहले ही समर्पण कर चुके थे ।
इधर सूरज फूटा, उधर लोगों का गुस्सा । ‘धर्म
हो रहा है या अधर्म । कान में धर्म की बातें डाली जा रही हैं या खौलता शीशा । हद
हो गई । जबर्दस्ती शरबत पिलाए जा रहे है । आपको धर्म-कर्म करना है, कीजिए, पर
दूसरों का श्राद्ध-कर्म क्यों किए जाते हैं ।’ इस आतंक के बीच कुछेक मोहल्ले के
वीर अभी भी डटे हुए थे । रात की गगन-भेदी आवाजें असफल रही थीं उनके मर्म को बेधने
में । मुकाबले में मजा आया था । काश ! ऐसी चिंग्घाड़ू चीजें अक्सर होतीं, पर एक
बात की शिकायत उनके पास भी थी । केवल पीली धोती धारण कर लेने से बंदा धर्मात्मा नहीं
हो जाता । धर्म के लिए दिल खोलना पड़ता है ।
‘मैं समझा नहीं कि दिल को कैसे खोला जाता है
।’ उन्होंने पूछ ही लिया था आखिर एक मोहल्ला-वीर से ।
‘भई, आप जैसे कंजूस-मक्खीचूस यह बात नहीं समझ
सकते ।’ उसने ताना मारते हुए कहा था, ‘धर्म-कर्म क्या अकेले करने की चीज है । पाठ
वाचक दल को बुला लिया होता । शानदार ढंग से धर्म-कर्म होता । उन्हें रोजगार मिलता,
वह भी तो धर्म ही होता । धर्म एक, रास्ते हजार ।’
पड़ोसी ने सोचा कि हमें तो वही करना है, जो
लोगों को अच्छा लगे । चलो, यह भी करके देखते हैं । अगला ही हफ्ता महा-आयोजन का
गवाह बना । झाँझ-मजीरा और ढोलक की थाप पर वाचक दल ने सभी मोर्चे सम्भाल लिए ।
सोमरस और भांग के संयुक्त प्रभाव ने कहर बरपाना शुरु कर दिया । पूरा मोहल्ला
साँसें रोके देख-सुन रहा था और इधर धर्म कुलांचे भरता हुआ आकाश के चरण चूम रहा था
। पड़ोसी को प्रसन्नता थी कि यह आयोजन अवश्य ही सभी लोगों को आह्लादित करेगा ।
पर अफसोस, बोलने वाले फिर निकल आए अगली भोर के
साथ । ‘क्या ऐसे भी होता है प्रभु का स्मरण ...मानो प्रभु पर ही धावा बोल दिया हो
। प्रभु को मंजूर हो तो करो, पर हमें तो जिंदा छोड़ दो ।’
किसी और ने कहा, ‘राम-राम, कितना धिक्पुरुष है
यह । प्रभु को भी पैसे का अहंकार दिखा रहा है । भाड़े की सेना से प्रभु को खरीदने
चला है ।’
पड़ोसी बेचारा मायूस था । लोगों ने जो कहा,
उसने किया । इसके बावजूद आरोप, शिकायत, ताना-तंज...आखिर कैसे खुश किया जाए लोगों
को अचानक उसे ऐसा आभास होने लगा, जैसे वह देश का ‘वर्तमान’ प्रधानमंत्री बन गया हो
।
very difficult to please everyone, or some one all the time. enjoyed reading your story
जवाब देंहटाएंsahi kaha ! :D
जवाब देंहटाएंसही नकशा खींचा !
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