जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

याद रखियो...कर्ज का फर्ज भी होता है

             
   दरबार-ए-खास में आज काफी गहमागहमी है । महाराज सियार के अलावा सारे मातहत मंत्री उपस्थित हैं । इस बात का खास ख्याल रखा गया है कि उन्हीं को इस खास मौके पर बुलाया जाए, जो हर हाल में समाजवाद का झंडा बुलंद रखते आए हैं । किसी की जमीन पर कब्जा करना हो, दुर्बलों पर दबंगई दिखानी हो, पुलिस वालों की हर आम-ओ-खास मौकों पर कुटाई करनी हो, हर किस्म के ठेके हड़पने हों, गुंडई के नित नये गिनीज रिकॉर्ड बनाने हों, माफियाओं-अपराधियों का कर्ण-छेदन करके चेले-चपाटी बनाना हो-क्षेत्र कोई भी हो, जो मैदान से नहीं डिगा, वही सच्चा समाजवादी है । समाज से जबर्दस्त अपनापन रखते हुए उसके हर चीज को अपना बनाने की प्रत्येक काग-चेष्टा को आधुनिक समाजवाद कहते हैं ।
   तो इस वक्त बिना किसी शक-ओ-शुबहा के सारे आधुनिक समाजवादी मौजूद हैं । खुसपुसाहटें हो रही हैं, पर महाराज सियार की चुप्पी की वजह से मंत्रियों की बेचैनियाँ बढ़ती जा रही हैं । महाराज के प्रति सम्मान के कारण कोई उनकी चुप्पी को भंग करना नहीं चाहता । निकट भविष्य में मंत्रिमंडल में फेरबदल संभावित है, अतः सम्मान के समंदर में ज्वार का उठना निहायत ही स्वाभाविक कर्म है । उधर महाराज की निगाहें बार-बार दरवाजे पर जाती हैं और मायूस होकर लौट आती हैं । उन्हें मायूस देखकर मंत्री भी वैसी ही भाव-मुद्रा बनाने की कोशिश करने लगते हैं । अभी मुँह लटकाने का समाजवादी रिहर्सल चल ही रहा है कि तभी खबरी खरगोश धड़धड़ाते हुए दरबार में प्रवेश करता है । उसे देखते ही महाराज के चेहरे पर प्रसन्नता की कली खिल उठती है । वह चहकते हुए पूछते हैं, ‘कहो खबरी, हमारे रिकॉर्ड-तोड़ समाजवादी कामों के प्रति आम सियारों में कैसी धारणा है...उन लोगों ने कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त की हमारे लिए?’
   ‘महाराज सियार की जय हो ।’ वह घुटनों तक झुकता है और खबर को उड़ेलता है, ‘हुजूर, कोई कुछ बोलने को तैयार ही नहीं है...बस मुस्कुराते हैं और चुप्पी साधे रहते हैं । हमें तो यही लगा कि गूँगे हो गए हैं सब-के-सब ।’
   इस पर महाराज कुछ कहना ही चाहते हैं कि प्रधानमंत्री लकड़बग्घा बोल उठते हैं, ‘यह तो अच्छी खबर है महाराज, उस गूँगे की कहानी तो अवश्य ही आपने सुनी होगी । गुड़ खाकर उसके आनंद में इतना मगन हुआ कि गूँगा हो गया । वह वास्तव में गूँगा नहीं था महाराज । उसी तरह आपके समाजवादी कामों का जनता इतना आनंद ले रही है कि गूँगी हो गई है ।’
   पूरा दरबार-ए-खास तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठता है । महाराज अभिभूत होकर बोल उठते हैं, ‘क्या सत्य और सटीक व्याख्या की है आपने प्रधानमंत्री जी । वास्तव में हमने काम ही इतना किया है कि जनता की बोलती बंद हो गई है । पहले के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए हैं और रोज रिकॉर्ड के नए प्रतिमान स्थापित हो रहे हैं । हमने तो वादा पूरा कर दिया, अब जनता की बारी है । हमें दुबारा सत्ता सौंपकर वह भी रिकॉर्ड बनाए ।’
   ‘जनता को चुनौती देकर आपने अपने सच्चे राजत्व का परिचय दिया है महाराज,’ नगाड़ा मंत्री की आवाज गूँजती है इस बार, ‘वह यूँ ही झाँसे में नहीं आती । ललकारना अक्सर काम कर जाता है ।’
   ‘वह तो ठीक है मंत्री महोदय, पर जनता अब भी इशारों-इशारों में काम की ही पड़ताल कर रही है ।’ खबरी खरगोश अपनी आँखों देखी चीजों को सामने रखता है ।
   ‘हम किसी भी काम में पीछे नहीं हैं ।’ महाराज सियार के चेहरे पर आवेश का झीना परदा-सा झलकता है । वह सिंहासन की मूँठ को कसते हुए बोलते हैं, ‘सारे काहिल-जाहिल हमारी बदौलत नौकरी पाकर मौज उड़ा रहे हैं । पूरे इतिहास में शायद ही कोई ऐसा होगा, जो ऐसी समाजसेवा में हमारी बराबरी कर सके ।’
   ‘सचमुच, आप कहीं पीछे नहीं हैं महाराज ।’ प्रधानमंत्री गर्व से फूलते हुए कहते हैं, ‘आपका काम बोल रहा है । बड़ों को तो छोड़िए, हमारा अदना-सा कार्यकर्त्ता तक विकास के समंदर में गोते लगा-लगाकर बरसाती मेढक की तरह फूलकर विकास को प्राप्त हो गया है । इस तरह हाशिए के व्यक्ति तक विकास सिर्फ आप ही के राज में संभव है महाराज ।’ फिर एक बार तालियों की गड़गड़ाहट...
   ‘और एक बात,’ महाराज के बोलते ही सन्नाटा छा जाता है । एक हाथ को ऊपर उठाते हुए वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हैं, ‘खबरी, जाकर पता लगाओ कि विकास का कर्ज चुकाने को आम सियार तैयार हैं कि नहीं । वसूली का समय आ चुका है ।’

   इशारा पाते ही खबरी खरगोश बाहर निकलता है । इधर प्रधानमंत्री के निर्देश पर प्रशिक्षित लकड़बग्घे समाजवादी तरीके से कर्ज का फर्ज समझाने के लिए कूच की तैयारी शुरू करते हैं ।

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