देश के बाबा का गौरव उन्हें यूँ ही नहीं हासिल है । कुछ तो बात होगी, जिससे
लोग उन्हें ऐसा कहने को विवश हुए । बाबा एक बार आगे बढ़ लेते हैं, तो फिर पीछे
मुड़कर नहीं देखते । वे आमजन के जीवन में बदलाव लाना चाहते हैं और इसके लिए सतत
प्रयत्नशील भी हैं । बदलाव की इस कोशिश का उनका अपना स्टाईल है । वे जब जी में आए,
कहीं भी जा धमकते हैं और बदलाव को पीछे से भेज देते हैं ।
किसान उनका प्रिय पात्र है । उसके कंधे पर उनके हाथ रखते ही बहुत कुछ बदल
जाता है । उस किसान का भी बदल गया । कंधे पर हाथ रखकर बाबा तो चले गए, किन्तु
बदलाव की बैलगाड़ी राजधानी से उस गाँव की तरफ बढ़ने लगी । विभिन्न सरकारी स्टेशनों
से होते हुए वह बैंक जा पहुँची । छ: महीने बाद बैंक के अधिकारी क्रेडिट
कार्ड को उस गाड़ी पर लादकर किसान के घर जा पहुँचे । साक्षात बदलाव दरवाजे पर आकर
दस्तक देने लगा । वह अगवानी न करता, तो सीधे बाबा का अपमान होता । वर्ष-दर-वर्ष
निकल गए । हजार लेने वाले को अब लाख लौटाना है । लेने के लिए बैंक-अधिकारी अब जेट
विमान से आ रहे हैं । कितना बड़ा बदलाव आ गया है, सचमुच !
बदलाव का धुन एक गरीब को चुन उन्हें ले जाता है उसके घर । बेचारा अपनी
सीमाएं लांघता है, किन्तु प्रसन्न है । भोजन बढ़िया-से-बढ़िया होना चाहिए । एक
अमीर गरीब के घर जाए या एक गरीब अमीर के घर जाए-दोनों ही आने वाले को वह नहीं
खिलाते, जो वे खुद खाते हैं । गरीब बढ़कर व्यवस्था करता है और अमीर सिकुड़कर । यही
गरीब अमीर का फर्क होता है । बाबा तृप्त होकर चले गए और बदलाव आ गया । घर का एक
सदस्य सब-कुछ छोड़कर साहूकार की चाकरी कर रहा है ।
एक दिन बदलाव बाबा को लेकर अचानक
किसी मजदूर के घर जा पहुँचता है । वे उसके कंधे पर हाथ क्या रखते हैं, फोटुओं की
झड़ी लग जाती है । वह अगले ही दिन देश के कोने-कोने तक जा पहुँचता है । उसे काम
देने वाले इलाके के लोग हाथ खड़े कर देते हैं यह कहते हुए कि उससे मजदूरी करवाकर
वे बाबा को बदनाम नहीं कर सकते ।
वास्तव में बाबा सफल हो रहे हैं । बदलाव जमीन पर दिखाई दे रहा है ।
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