जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

सबको लॉलीपाप ही चाहिए

                 

   साधो, लगता है कि इंतजार करने का धीरज आज किसी के पास नहीं है । चार-पाँच साल बिजली-संयन्त्र लगाने में निकल जाएँ, उसके बाद बिजली का उत्पादन शुरू हो और तब वह घरों में पहुँचे, यह अधिकांश लोगों को मंजूर नहीं । कल-कारखाने स्थापित करने में बरसों लग जाएँ, तब जाकर जरूरतमंदों को रोजगार मिले, यह भी बहुत कम लोगों को स्वीकार है । विकास के ढाँचे पर वास्तव में काम हो और परिणाम के लिए बरसों टकटकी लगानी हो, तो यह स्थिति सम्भवत: किसी  को स्वीकार नहीं ।
   यह अतीत के कटु अनुभवों का नतीजा भी हो सकता है । राजनीतिक दलों द्वारा अतीत में एक से बढ़कर एक शानदार वादे किए गए और उसी शानदार तरीके से उन्हें भुला भी दिया गया । इन सब चीजों से आमजन ने यह निष्कर्ष निकाला कि भविष्य की काल्पनिक रेवड़ियां खाने से पेट नहीं भरता । भविष्य पर नजर रखने से वर्तमान को भी नजर लग जाती है । कल के लिए आज को कष्ट देना अब लोगों को मूर्खतापूर्ण लगता है ।
   अब लोगों का ध्यान इस बात पर फोकस हो गया है कि सरकार क्या करती है, इस बात से उसका कोई सरोकार नहीं । सरोकार है, तो केवल इस बात से कि हाथों-हाथ परिणाम की प्राप्ति हो जाए । इसके लिए वह किसी को समय देने के लिए तैयार नहीं । तत्काल लाभ जो दे, केवल उसी का भला । राजनीतिक दल और नेता भागते भूत की तरह हैं, जिनसे लंगोटी लेने या छीन लेने में कोई बुराई नहीं । यही वजह है कि वोट के लिए पैसा देने वाले सभी लोगों का स्वागत हो रहा है ।
   जो आज के लाभ की बात कर रहा है, वही सिर-आँखों पर...बस वही जीत भी रहा है । साड़ी, धोती, टीवी, मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप, गेहूँ, चावल, रसोई-गैस, बिजली, पानी-सब कुछ हाथों-हाथ चाहिए । काम भले मत दो, सब्सिडी दो, निठल्ला-भत्ता दो, बहुरंगी पेंशन दो । कर्ज दो, देश का हर्ज करो, पर लौटने-लौटाने का फर्ज भूल जाओ । अम्मा कैंटीन दो, बाबूजी लैट्रिन दो । जनता-रथ दो, हवाई पथ दो, वोट के लिए सब कुछ सामने रख दो ।

   नेता भी समझदार है । वह हनुमान जी की तरह अपना नहीं, बल्कि आमजन की छाती फाड़कर सब कुछ देख-समझ रहा है । उसे भी क्या पड़ी है विकास की । अपना उल्लू सीधा होते रहना चाहिए । अत: वह भी लॉलीपाप ही बाँट रहा है । 

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