पिछले दिनों एक बकरे के गिरफ्तार होने की जबर्दस्त खबर आई । हुआ ये था कि
बकरा अपनी बदकिस्मती की उंगलियों के इशारे पर नाचता हुआ एक जज की बगिया में घुस
गया और चराई-कांड को अंजाम दे डाला । कोई भी कहीं हाथ डालने से पहले एक बार अवश्य
सोचता है, खासकर साहब लोगों के यहाँ ऐसा करते वक्त एक बार तो सोचता ही है । सोचना
भी चाहिए, पर बकरा मूर्ख टाइप का था । सीधे नाक घुसेड़ दिया बगिया में । उसका चरना
जज साहब को बर्दाश्त नहीं हुआ । उन्होंने थाने में शिकायत की । पुलिस तुरंत हरकत
में आ गई और अपनी इमेज के अनुरूप काम करते हुए बकरे को धर दबोचा ।
वैसे गाँव-देहातों में, किसानों के खेतों में बकरे के घुसने से इतनी खलबली
नहीं मचती । बकरे के घुसने को घुसना नहीं माना जाता । छोटा जीव है, दस-बीस गाल मार
ही लिया, तो कौन सा अपना करम धुल गया । वहाँ तो अक्सर छुट्टे सांड घुसते रहते हैं
खेतों में, बगीचों में । सांड खेतों में घुसने के बाद अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन न
करे, यह कैसे हो सकता है । खेतों में उतरने के बाद वह सम्पूर्ण सांडगीरी ही दिखाता
है । उसकी तरफ से गाँधीगारी दिखाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता । इतना सब कुछ
होने पर भी किसान पुलिस के पास शिकायत करने नहीं जाता । उसे लगता है कि
पशु-पक्षियों का भी उसके खेतों, फसलों और अनाजों पर हक है । जो उनके हक का है, वे
ले जाएंगे और जो उसके हक का होगा, उसे मिलेगा ।
अगर वह पुलिस से शिकायत करने की सोच भी ले, तो सबसे पहले उसे गौतम बुद्ध
बनना होगा । अपनी माँ-बहनों के लिए पुलिस की तरफ से आते मंत्रों को अस्वीकार करने
की क्षमता पैदा करनी होगी । बार-बार आग्रह करने पर भी पुलिस उसे यह गलत काम करने
से रोकेगी । भला कोई जानवर भी अपराध कर सकता है । उसके दो-चार मुँह मार लेने से
कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ा । पुलिस क्या यही सब करने-धरने के लिए है ।
उधर किसानों के खेतों की तरह देश की बगिया में भी न जाने कितने सांड और
बकरे छुट्टे चर रहे हैं, मगर उनकी शिकायत करने के लिए कोई साहब सामने नहीं आता,
क्योंकि अपनी बगिया और देश की बगिया में फर्क होता है न ! किसान बेचारा किस मुँह से इस बगिया
की शिकायत करे । उसके लिए अपने खेत और इस बगिया में अंतर ही कितना है ।
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