मेरे एक पुराने मित्र बहुत समय पहले
अमेरिका जाकर बस गये । अब वे अपने देश आना चाहते हैं । अगर कोई यह कहे कि उनका
देश-प्रेम जाग उठा है, तो यह उनके साथ ज्यादती होगी । दरअसल जब उनका जमाना था, तो
यहाँ उन्हें काम नहीं मिला । वे काफी पढ़े-लिखे और वास्तव में योग्य व्यक्ति थे ।
काम की तलाश में जहाँ कहीं भी जाते, उन्हें या तो काम के अनुरूप अयोग्य माना जाता
या उनकी योग्यता का मजाक उड़ाया जाता । थक-हार कर वे अमेरिका चले गये । वहाँ
उन्हें हाथों-हाथ लिया गया । अपनी योग्यता के दम पर फर्श से अर्श की दूरी नापने
में उन्हें देर न लगी ।
समय निकलता गया और अब आज का समय है । उनके बाद की दूसरी पीढ़ी योग्यता के
मामले में पिछड़ गई । अत: घर, समाज और देश के लिए बे-काम साबित हुई । इसी पीढ़ी के लिए वे
अपने देश आना चाहते हैं । जब वे अमेरिका चले गये, तो उनका ब्रेन यहाँ के लिए ड्रेन
साबित हुआ । अब वे अपने घर के एक ड्रेन को यहाँ डम्प करना चाहते हैं ।
मैंने फोन पर आपत्ति दर्ज की—क्या आप इस देश को कचरा घर समझते हैं, सारे
कूड़ा-कबाड़ उठाकर यहीं पर...
मैंने ऐसा तो नहीं कहा, पर मैं अपने देश को अच्छी तरह समझता हूँ । जवानी
में सड़कों की खाक छानकर ही यह अनुभव-पुराण रचा है मैंने ।
पर मुझे ऐसा क्यों नहीं लगता—मैंने प्रतिवाद किया ।
जिसे नहीं लगता, उसके लिए मैं क्या कर सकता हूँ...सिवाय अफसोस के । हर जगह
मंत्री से लेकर संतरी तक बिखरे पड़े हैं । ईमानदारी से बताओ, उनमें से कितने
प्रतिशत योग्य हैं ?
मित्र का तर्क तो अकाट्य था, फिर भी मैंने काटने की कोशिश की—कुछ भी हो,
देश तो चल रहा है न !
आश्चर्य ! उसे
तुम चलना कहते हो । फिर उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा—तुम्हारा भी क्या दोष, उस
देश में घिसटना ही चलना है !
देश घिसट रहा है, तो फिर नई पीढ़ी को क्या घिसटाने के लिेए...
मेरा पोता चलने के योग्य तो है नहीं । वह घिसट ही सकता है और इस काम के लिए
वही जगह मुफीद है । वहाँ कई ऐसे राज्य हैं, जिनके कंगूरों में अयोग्यता का सीमेंट
भरा है और हर तरफ उसी सीमेंट के लिए विज्ञापन है ।
मित्र से डिस्कनेक्ट होकर मैं आँखें बंद कर लेता हूँ और देश पर नजर डालता
हूँ । उत्तम प्रदेश का जिसका जितना अधिक दावा है, अयोग्यता का सम्मान वहाँ उतना ही
अधिक है । बे-काम वही है, जिसके पास जुगाड़ और दाम नहीं है । मेरे मित्र अमेरिका
गये थे, काम की तलाश में और यहाँ आ रहे हैं, काम ही की तलाश में...
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