एक मुख्यमंत्री की इच्छा है कि किसान
और कुछ पहनें या न पहनें, पर सूट-बूट जरूर पहनें । किसानों के सूट-बूट पहनने से
सबसे पहला संदेश दुनिया भर में यह जाएगा कि यहाँ के किसान रातों-रात विकसित हो गए
। दूसरा लाभ होगा यह कि सरकार को इनके लिए कुछ करना नहीं पड़ेगा । तीसरा फायदा यह
होगा कि इनको दी जाने वाली सब्सिडी की धनराशि जी-खोलकर अपने पारिवारिक महोत्सवों
में खर्च की जा सकेगी । ऊपर से बोनस का मजा यह होगा कि नैतिकता के गिरेबान में हाथ
डालने की कोशिश कोई भी विरोधी नहीं कर सकेगा । एक फायदा और होगा कि किसानों की
मृत्यु के लिए अब सीधे भगवान जिम्मेदार होंगे, सरकार नहीं ।
अब सवाल है कि किसान सूट-बूट कैसे पहनेंगे । पहला विकल्प है कि जिस तरह
सरकार बहुत कुछ यूँ ही हुआ मान लेती है, उसी तरह यह भी मान ले कि किसान अब फटेहाल
नहीं रहे, बल्कि सूट-बूट धारी हो गए हैं । न्यायपालिका भी इस पर मुहर लगा देगी,
क्योंकि वह अक्सर सरकार की आँखों से ही देखती है । वह पूछती है कि सरकार बताए कि
अमुक चीज हुई है या नहीं । सरकार बोल देती है । उसने कब अपने खिलाफ बोला है ?
दूसरा विकल्प यह है कि किसान जिस तरह खाद-बीज-पानी के लिए कर्ज लेता है,
उसी तरह सूट-बूट के लिए भी कर्ज ले । कर्ज का भुगतान न करने की स्थिति में उसे
मरने का विकल्प अनिवार्य रूप से चुनना ही है । ऐसे में अगर वह सूट-बूट के लिए कर्ज
ले ले, तो कौन सी आफत आ जाएगी । कर्ज में डूबकर तो वह मरता ही है, थोड़ा और डूबकर
मरेगा । पर इस बार उसका मरना अधिक गौरवपूर्ण और सुकून देने वाली होगी । सूट-बूट
में मरकर वह न केवल स्वयं के जीवन को राहत प्रदान करेगा, बल्कि सरकार की साख के
सेंसेक्स को जबर्दस्त उछाल भी इनायत करेगा ।
हमारे जैसे लोकतंत्र में एक विकल्प और मौजूद है । हमारा मतदाता इतना जागरूक
है कि किसी भी नेता के बहकावे में आकर मुफ्त में वोट नहीं देता । वह साड़ी, धोती,
पैसा और न जाने क्या-क्या उपहार लेता है । मुख्यमंत्री को चाहिए कि वह अगले चुनाव
के मुहूर्त्त पर किसानों को सूट-बूट का उपहार दें, ताकि चुनाव बाद नई सरकार का
तोहफा वे नेताजी को उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में दे सकें ।
लगता है कि किसानों के अच्छे दिन अब आने ही वाले हैं ।
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