जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 5 जनवरी 2016

बाबा का महल

                                           

   साधो, रेत का महल बनाना कोई आसान काम नहीं है । इसके बावजूद रेत का महल बनाने वाले को लोग विवेकहीन मानते हैं । उनकी नजर में यह काम वही कर सकता है, जिसके दिमाग में रेत ही रेत हो...एक पूरा विस्तार हो वहाँ समंदर के किनारे का । मगर कोई यह क्यों नहीं सोचता कि इस वंडर को सृजित करने वाला व्यक्ति पक्का वंडरफुल होगा । अपने देश के बाबा एक रेत का महल बनाना चाहते हैं । उनके विवेक पर उंगली उठाने से पहले किसी को अपने विवेक की एक्स-रे करानी होगी । मैं ऐसा खतरा मोल नहीं ले सकता था । उनसे मुलाकात होते ही पूछा-क्या बहुत जरूरी हो गया था रेत का महल बनाना ? छूटते ही जवाब मिला-जरूरी !...अजी, बहुत जरूरी हो गया था । पूर्वजों का बनाया महल अब ध्वस्त हो चुका है । एकाध खंभे ही बचे हैं गिरने को ।
   परंतु रेत का महल ही क्यों ?-मैंने पूछा । उन्होंने फिर तत्परता से जनाब दिया-ईंट और पत्थर का महल तो कोई भी बना सकता है । मैं कुछ हटके काम करना चाहता हूँ । अत: रेत का महल ही मुझे सबसे मुफीद लगा ।
   रेत का महल बनाने के लिए सबसे पहले क्या करना चाहिए ?-मैंने आगे पूछा । इसके लिए एक ऐसी योजना बनानी चाहिए, जिसमें मूर्खता के लिए कहीं-कोई जगह न हो ।
   एक मूर्खतापूर्ण काम के लिए फूल-प्रूफ योजना ! मैं पूछना चाहता था, मगर बाबा से पूछने की हिम्मत न हुई । मैं पहले ही कह चुका हूँ कि उनके विवेक पर शक नहीं किया जा सकता । उन्होंने खुद ही बात आगे बढाई-आपको याद होगा, चुनाव बाद अचानक मेरे विदेश-भ्रमण पर खूब हो-हल्ला मचा था । उसके बाद भी मैं कई बार विदेश गया । काफी परिश्रम के बाद इस योजना की आइडिया मेरे दिमाग में कौंधी...ठीक आसमानी बिजली की तरह ।
   महल के निर्माण के लिए तकनीक का जुगाड़ कहाँ से किया है आपने...क्या कोई देशी तकनीक... ?-मैंने पूछा । अभी हमारे इतने बुरे दिन भी नहीं आए कि देशी जुगाड़ पर चलना पड़े । गारंटीड विदेशी तकनीक है हमारे साथ-वे तनिक आहत होकर बोले ।
   निर्माण-सामग्री के बारे में कुछ बताइए । मेरे यह पूछने पर वे मुस्कराए । थोड़ी देर बाद एक निपुण वास्तुकार की तरह बोले-रेत का महल बनाने के लिए कल्पनाशीलता का सीमेंट जरूरी है । कल्पना की उड़ान जितनी ऊँची होगी, यह सीमेंट उतना ही उम्दा किस्म का होगा । दूसरी आवश्यक सामग्री झूठ है । कुछ सच्चे टाइप के झूठ और उनकी धुँआधार आवृत्ति इस महल के लिए ईंट के समान हैं ।

   और लोहा... ?-मेरा आखिरी प्रश्न था । उन्होंने मुझे अजीब नजरों से निहारा और गम्भीर स्वर में प्रतिप्रश्न किया-रेत के महल को लोहे की क्या दरकार...?

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