जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

धुँआ छोड़ने वाली किस्म

                                                                                                                                                                     
   पड़ोसी ने आते ही मुझे कुरेदा, जैसे ऊपर से ठंडी पड़ चुकी राख को कुरेद रहा हो । वैसे भी यह पड़ोसी का धर्म होता है कि वह इधर-उधर सतत चिंगारी की तलाश में मशगूल रहे । मुँह मेरे कान के पास लाकर फुसफुसाया-अमां यार, जीवन में मर्दों वाली कुछ बात भी रही या फिर यूँ ही जिन्दगी तमाम होती रही ? मैंने भी उसे निराश नहीं किया । तपाक से बोला-शादी कर चुका हूँ और अभी तक उसी से निभा रहा हूँ । यह क्या मर्दों वाली बात नहीं है ?
   शादी करके गधा बन जाना भी कोई मर्दों वाली बात है ! मेरा मतलब था...कभी किसी साँड से सींगजोरी किया है  ? घोड़े की दुलत्ती खाकर भी कभी ठहाका लगाया है या फिर किसी को छेड़ा हो और पिटते-पिटते रह गए हो ?
   मैंने ऐसा कुछ नहीं किया-मेरे मुँह से यह बात निकलने की देर थी कि वह झपट पड़ा । जोश में आते हुए बोला-तो फिर किया क्या ? मर्द होकर भी जीवन की दीवार को सादा पन्ना बना दिया । कोई इबारत तो लिखते उसपर ।
   मैं कुछ समझा नहीं-कहने की कोशिश करनी चाही मैंने, किन्तु वह पहले ही बोल पड़ा-पर मैं समझ गया । तुम जैसे लोगों से प्रेरणा लेकर ही हमने वह कर दिया, जो कोई नहीं कर सका आजतक । एकदम मौलिक शोध...मर्द के किस्म पर अनुसंधान !
   चार किस्म के मर्द होते हैं आजकल । पहले किस्म के मर्द में नारी-ही-नारी होती है । उसे अपना अस्तित्व माँ का वरदान प्रतीत होता है । वह किसी को छेड़कर इस वरदान का अपमान नहीं कर सकता, क्योंकि...उठी थी नजर उसकी जानिब मगर, अपनी बेटी की याद आ गई
   दूसरे किस्म के मर्द में नारी का अंश अति सीमित होता है । वीर-भोग्या-वसुंधरा उसका आदर्श-सूत्र होता है । वह नारी सहित हर चीज को इसी नजरिए से देखता है ।
   तो क्या उसका वीरत्व-बोध उसे गुंडत्व-प्रदर्शन के लिए ललकारता है ? मैंने उसे रोकने की कोशिश की । वीरत्व-बोध में ऐसे प्रदर्शन स्वत: हो जाते हैं, ऐसा कहते हुए उसने बात आगे बढ़ाई-तीसरे किस्म के मर्द में नारी का अंश सीमित होता है । वैसे तो ये सामान्य होते हैं, किन्तु मौका मिलते ही असामान्य हो उठते हैं । वीरत्व पर पड़ी राख हट जाती है और नंगत्व मैदान में आ जाता है ।
   चौथे किस्म के लोग खतरनाक तो नहीं होते, किन्तु जबर्दस्त प्रदूषणकारक होते हैं । मर्द होकर भी इन्हें अपने मर्द होने पर शक रहता है । ये बरसाती कंडे की तरह सदैव धुंआ फेकते रहते हैं । पराई नारी के गुडबुक में बने रहने की लालसा इनमें प्रबल होती है ।

   मर्द तो वही होता है, जो खुद पर वीरत्व का प्रदर्शन करता है-ऐसा मैंने कहना चाहा, पर पड़ोसी जा चुका था ।

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