जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

वह हम पर भारी, हम उसके आभारी

             

   साधो, यह हमारे लिए अति सौभाग्य की बात है कि पाकिस्तान जैसा मुल्क हमारा पड़ोसी है । यह किसी के भाग्य पर निर्भर करता है कि उसका पड़ोसी कैसा होगा । पर हमारे इस पड़ोसी को बनाने में हमारे कर्म ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं । उदारता, आजादी पाने की उत्कंठा, सत्ता-भोग की अदम्य लालसा जैसे तत्वों ने इस पड़ोसी के अस्तित्व को सम्भव बनाया है । हमारे भाग्य प्रबल थे, तभी तो पाक रूप में यह पड़ोसी नसीब हुआ ।
   यह हमारा पड़ोसी ही है, जिसने हमारे लिए क्या नहीं किया । हमें ढेरों अवसर उपलब्ध कराए—सामान्य से लेकर असामान्य तक, अजब से लेकर गजब तक, गर्व से लेकर शर्म तक, आह से लेकर वाह तक । उसी की उदारता है कि हमारे नेताओं को कुछ करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । पड़ोसी को सबक वाला अध्याय पढ़ाने की जरूरत है । कितने फख्र की बात है कि इसके लिए स्थान का निर्धारण हमारे नेता करेंगे । कब पाठ पढ़ाया जाए...मतलब समय की सेटिंग भी इनके कामों की वेटिंग लिस्ट में है । अब स्थान भी हमारा होगा, वक्त भी हमारा होगा । जरूरत है कि पड़ोसी पाक साजिश करता रहे, निरंतर करता रहे, ताकि हमें उन्हें पाठ पढ़ाने का यूँ ही मौका मिलता रहे ।
   पड़ोसी अपना पाक हमला करता है, तो बहुत से विद्वान मानने लगते हैं कि वह हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहा है । मगर ऐसा सोचना भी हमारी क्षुद्रता का परिचायक है । वह तो हमें पुण्य लूटने का सुख देना चाहता है । वह अपने आतंकवादी रुपी असुरों को भेजता है, ताकि उनका वध कर हम सुरों की जमात में शामिल हो सकें । उन आतंकवादियों के हाथों हमारे सैनिक वीर-गति को प्राप्त होते हैं । अगर पड़ोसी अपने आतंकवादियों को नहीं भेजता, तो हमारे सैनिक शहीद कैसे होते ? शहीद होने की हमारी कामना किसी अन्य ना-पाक पड़ोसी के कारण धरी-की-धरी रह जाती ।
   विरोधी दल वाले आरोप लगाते रहे हैं कि अपने देश की विदेश नीति में परिवर्तन हो गया है, जब से कमल वाली पार्टी सत्ता में आई है । मगर देश की जनता जानती है कि ऐसा-वैसा कुछ नहीं हुआ है । पड़ोसी की हरकतों पर पहले वाली सरकारें भी मुँह-तोड़ जवाब देने की मौखिक कसरत किया करती थीं, यह वाली भी ठीक वही करती है ।

   अत: पड़ोसी हम पर कितना भी भारी पड़े, इन अवसरों के लिए हमें उसका आभार मानना चाहिए ।

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