पुराने साल की बैलगाड़ी अतीत की पगडंडियों पर बढ़ चली है । नया साल बुलेट
ट्रेन पर सवार होकर राजपथ की तलाश करता चला आ रहा है । लोगों ने आशाओं और इच्छाओं
की गठरियाँ बैलगाड़ी से उतारकर बुलेट ट्रेन पर लाद दिया है । निराशाओं-हताशाओं-नाउम्मीदियों
की गठरियाँ बैलगाड़ी पर ही छूट गई हैं । कुछ ने ऐसा अपने अन्तर की आवाज सुनकर किया
है, तो कुछ ने देखा-देखी । बहुत से लोग दूसरों को देखकर ही काम करने के अभ्यस्त
होते हैं । अन्य लोगों से पीछे न रहने का सवाल जो ठहरा !
हमारे देश में मान्यताओं की कमी नहीं है । एक मान्यता है कि साल की
अगवानी-बेला में जो हासिल, उपलब्ध या प्राप्त होता है, वह साल भर अपने उपलब्ध और
सुलभ रहने की गारंटी देता है । योगी भले आज कुछ निष्क्रिय हो जाएं, पर भोगी भोग के
सारे संसाधन अवश्य जुटाता है और उनका भोग करने के लिए मानवीय मर्यादाओं को तोड़ता
तथा दानवीयता के किसी भी हद तक जाता है । सुरा सुर लगाती है, तो मुर्गों की शामत
आती है । बाबू आज अपने बाप से भी रिश्वत के रूप में पैसे ऐंठता है, ताकि पूरा साल
रिश्वतमय बना रहे । लड़की छेड़ने के फील्ड में आने के नव-इच्छुक इस पावन बेला में
छेड़ने की शुरुआत करते हैं, ताकि आगामी समय पुलिस के डंडों से निरापद व महफूज रहे
। शिव सैनिक प्रेमियों को सूँघते फिरते हैं-उनकी कुटाई के लिए, ताकि साल भर में
कूटने के अच्छे रिकॉर्ड बन सकें ।
आज सभी अपनी इच्छाओं और आशाओं का मानसिक संकीर्तन करते हैं । इच्छाएं दो
श्रेणियों में आती हैं । एक उचित, दूसरी अनुचित । अनुचित किस्म की इच्छा कभी पूरी
न हो, इसके लिए लोगों को मिलकर नए साल पर दबाव बनाना होगा । आईएस इच्छा करे कि नए
साल में पूरी दुनिया उसके अधीन आ जाए । साल और समय का क्या है ! वे किसी के सगे नहीं होते । हमें ही
देखना होगा कि साल वैसा न कर पाए । दुनिया हर तरह की गंदगी और प्रदूषणों से मुक्त
हो, ऐसी उचित इच्छा केवल गठरी बनकर न रह जाए साल की पीठ पर । गधा ढोता जरूर है, पर
साफ नहीं करता ।
योग्य बेरोजगार लोग नौकरियों की तलाश अंध गुफाओं में करते हैं । नया साल एक
बार फिर अंगूठा दिखाएगा । अक्षम और अयोग्य सरकारें अयोग्य लोगों को ही काम देती
हैं । सरकार की कृपा-प्राप्त अयोग्य आदमी
कुत्तों से भी बढ़कर स्वामिभक्त होते हैं । वे सरकार के समक्ष न केवल पूँछ हिलाते
हैं, वरन वक्त आने पर आक्रामकता भी दिखाते हैं । अत: नए साल पर अयोग्य लोगों की इच्छाओं की
गठरियाँ खुलेंगी । यकीन न हो, तो उत्तर प्रदेश सरकार का तमाशा कब काम आएगा !
कुछ भी हो, मगर आशा तो आशा ही है, जो मृतप्राय होकर भी नए साल पर जीवित
खड़ी हो जाती है । यह तो आम आदमी है, जो बेचारा बना रहता है । नया साल भी उसका हर
क्षण मरना नहीं रोक पाता ।
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