जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

शुक्रवार, 13 मार्च 2020

अंग्रेजी बोलने वाली बहू

   ‘मम्मी जी, मैं जानती हूँ कि यह पत्र यानि लेटर आपको पसन्द नहीं आएगा । अंग्रेजी में यह आपके हेड पर एटम बम की तरह एक्सप्लोड होगा । रियली आई डोंन्ट नो, आपका हेड हिरोशिमा या नागासाकी बनेगा कि नहीं । बट लेटर का अटैक होते ही आपके फेस पर सुनामी नॉक करने लगेगा । ब्रेस्ट फुटबॉल की तरह किक-किक करेगा और आईज से फ्लड व मड गारन्टीड फ्लो करेगा । दिस पार्टीकुलर टाइम पेन और इमोशन का स्टॉर्म आपके बॉडी को हिट करेगा ।

   बहुत हो गई आपकी मनमानी । अब मैं अपने पर आती हूँ । आज मुझे बहुत कुछ कहना है आपसे । जो कुछ हुआ, आपकी वजह से हुआ । मैं क्या थी और क्या हो गई । आपकी जिद ने मुझे कठपुतली बना दिया । एक ऐसी कठपुतली, जिसकी अपनी जबान नहीं होती । एक ऐसी काठ की गुड़िया, जिसकी अपनी पहचान उसे बनाने वाले पर निर्भर करती है ।
   बात जब समझ में आए, तो उसे करना ही उचित है । हालांकि मुझे शुरु से ही एहसास था कि मैं कुछ ठीक नहीं कर रही । इसके बावजूद मैंने वह सब किया, जो आपकी जिद की वजह से उत्पन्न हुआ था । जिद से ही जबर्दस्ती होती है, पर आप काफी चालाक थीं । अपनी मूर्खतापूर्ण जिद के ऊपर मक्खन लगा दिया...वर्षों से पैदा हुई मन की इच्छा और शौक के नाम पर । घर वाले कुर्बान हो गए । आप ने एक ही तो इच्छा की थी बहू को लेकर । न पैसा चाहिए, न गाड़ी, न फ्लैट । बस बहू पढ़ी-लिखी होनी चाहिए । इतनी पढ़ी-लिखी कि फर्राटेदार अंग्रेजी झाड़ सके । घर के लोगों से भी और हर आते-जाते मेहमान से भी ।
   शुरु में ही यह बात मुझे अजीब लगी थी । जब हर कोई हिन्दी में बोल रहा हो, तो किसी एक का अंग्रेजी झाड़ना कितना बेवकूफी भरा है । विदेशी भाषा का ज्ञान होना अच्छी बात है, लेकिन अपने घर में, अपने लोगों के बीच अपनी ही भाषा अच्छी लगती है । मुझे तब बहुत अजीब लगता था, जब सभी हिन्दी में बात करते थे और मैं अंग्रेजी बोलती थी । मुझे इसके नुकसानों से भी गुजरना पड़ा । न और लोगों का मेरे लिए एकात्म-भाव बढ़ा, न मेरा और लोगों के लिए । एक भाषा सचमुच एक कर देती है ।
   इसी बीच कब मेरे मन में अलग होने की भावना जाग गई, मैं नहीं जान पाई । वैसे कुछ ही दिनों के बाद मैं पराई महसूस करने लगी थी । घर के लोग भी मुझे पराए लगने लगे । अब पराए लोगों के साथ रिश्ता ही कितने दिनों का होता है । पर रिश्ता तोड़ा नहीं जाता । मैंने भी रिश्ता नहीं तोड़ा है । हम कभी-कभार मिल सकते हैं, पराए लोगों की तरह...झूठी शान व नकली इज्जत को बघारते हुए ।
   आप ने अपनी झूठी शान के लिए मुझे मोहरा बनाया था, पर मैंने किसी को अपनी इज्जत का मोहरा नहीं बनाया । रितेश पूरे होशो-हवास में अपनी इच्छा से आए हैं । उन्हें भी घर में नकली-नकली सा दिखाई देने लगा था । अब हम यहीं रहेंगे...उस घर से दूर, उस घर से अलग । यह अलगाव भी कितना सुकून भरा है, क्योंकि अब मैं अपने स्वाभाविक रूप में हूँ । सरलता और गंभीरता भी कोई चीज होती है मम्मी जी । शेष फिर कभी । आपकी अंग्रेजी बोलने वाली बहू...’
   पत्र पढ़ते ही वह सन्न रह गई थीं । ऐसा कुछ होगा, इसका अंदेशा उन्हें नहीं था । घर में इस वक्त कोई नहीं था । धम्म से कुर्सी पर बैठते ही उनकी नजर आकाश पर जा टँगी थी । ध्यान सहेली के घर में जाकर रुका था । अच्छे-खासे लोग जुटे हुए थे बहू-भोज के अवसर पर । महिलाएं एक बड़े कमरे में मोर्चा संभाले बैठी हुई थीं । बहू अंदर आने वाली थी । जैसे ही वह शर्बत का ट्रे लेकर अंदर दाखिल हुई, सभी ने अपनी नजरों की मिसाइलों को उसकी ओर मोड़ दिया । बहू एक-एक कर सबके पाँव छूने लगी थी ।
‘बहू तो बहुत संस्कारी है ।’ किसी एक महिला की आवाज आई थी ।
‘पैर छूना तो अब ओल्ड फैशन...यू नो ! दूसरी महिला ने हस्तक्षेप किया था । वह मुँह बनाते हुए बोली, ‘पिछड़ी सोच वाले इसके पीछे मतवाले हैं । उन्हें क्या पता मॉडर्न क्या होता है । नया टाइम है, तो काम भी कुछ नया होना चाहिए । ये क्या बात हुई कि वही घिसी-पिटी चीजें, वही पुराने संस्कार...।’ इसके साथ ही कानाफूसियों का सिलसिला शुरु हो गया था ।
   पर सहेली ने इन सब बातों पर ध्यान नहीं दिया था । वह मुस्कुराते हुए बोली थी, ‘बहू, तुम बैठो इन लोगों के पास । इनके लिए नाश्ता लेकर मैं अभी आती हूँ ।’
‘नहीं माँ जी । यह शोभा नहीं देता ।’ बहू ने उसे बैठाते हुए कहा था और वह कमरे से बाहर निकल गई थी । उन दोनों को भले ही बुरा नहीं लगा था, पर मंगला को अच्छा नहीं लगा था। एक भय भी घुस आया था मन में । कहीं ऐसी ही अपनी भी बहू मिल गई तो?
   कुछ ही दिनों के बाद उस दूसरी महिला के घर जाना हुआ था । बहू के आगमन पर पार्टी दी गई थी सबको । आज देखती हूँ इसकी बहू को । उस दिन तो बड़ी झाड़ रही थी । मंगला ने सोचा था ।
   तभी बहू हाथ लहराते हुए अंदर आई थी । ‘हाय, कैसी हैं आप सब?’ और यह कहकर वह सबसे हाथ मिलाने लगी थी ।
‘आँखें खोल-खोल के देखिए आप लोग ।’ उस महिला ने छाती अकड़ाते हुए कहा था, ‘हमारी बहू साक्षात वाई-फाई है ।’
‘हाई-फाई होता है चाची ।’ किसी ने संशोधन करते हुए कहा था । कुछ महिलाएं हँस पड़ी थीं । ‘हाँ-हाँ हाई-फाई ।’ हँसते हुए उस महिला ने कहा था । फिर वह बहू की ओर मुड़ते हुए बोली थी, ‘बहू, तुम बैठो इन लोगों के पास । मैं इन सब के लिए नाश्ता ले आती हूँ ।’
‘मेरे लिए भी लाइएगा मॉम, बहुत जोरों की भूख लगी है ।’ और वह आराम से ईजी चेयर पर पसर गई थी ।
   मंगला को उस महिला का इतराते हुए कमरे से बाहर जाना अच्छा नहीं लगा था । एक भय और आ समाया था मन में । कहीं ऐसी मेरी बहू न हुई तो? वह मन ही मन किसी निश्चय की ओर बढ़ने लगी थी ।
   उस दिन मंगला का अहंकार सातवें आसमान पर था । अंग्रेजी ही अंग्रेजी में बोलने वाली बहू के सामने सभी महिलाओं के छक्के छूट गए थे ।वे सब पस्त मुद्रा में बैठी हुई थीं ।
   दरवाजे पर दस्तक के साथ ही वह वर्तमान में लौट आई थी । उठने की हिम्मत नहीं हुई थी कुर्सी से । वह उसी तरह पस्त मुद्रा में बैठी रही ।

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