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साभार-hindustantimes |
चोरों की महासभा का आयोजन किया गया था । इसमें
हर वो बंदा आमंत्रित था, जो कर्म से चोर हो, लेकिन उसकी आत्मा उसे चोर कतई न मानती
हो । हर तरह के चोर बुलाए गए थे । नामी चोर भी-बेनामी चोर भी, विख्यात चोर
भी-कुख्यात चोर भी, धनी चोर भी-गरीब चोर भी, बड़ा चोर भी-छोटा चोर भी, रसूखदार चोर
भी-आम चोर भी, शहरी चोर भी-देहाती चोर भी, पहलवान चोर भी-निर्बल चोर भी, इंटरनेशनल
चोर भी-नेशनल चोर भी, रोटीखोर चोर भी-चाराखोर चोर भी, नेता भी-पुलिस भी । कोई भी
किस्म निमंत्रण के दायरे से बाहर नहीं थी ।
अनुमान के विपरीत सारी कुर्सियां भर गई थीं ।
इधर-उधर खाली जगहों पर इतने लोग खड़े थे कि तिल रखने की भी जगह नहीं थी । मंच जो
विशेष चोरों के लिए बना था, वह भी आंशिक रूप से अतिक्रमण का शिकार हो चुका था । यह
सभी के लिए आश्चर्य का नहीं, बल्कि संतोष व गौरव का विषय था कि दुनिया में चोर ही
चोर हो गए हैं । संख्या की अधिकता कई अधिकारों की मांग भी करती है ।
तभी मंच पर विशेष चोरों का आगमन हुआ था । सबसे
आगे महासभा का आयोजक चल रहा था । किसी को भी उसकी अगुवाई में चलने पर कोई एतराज
नहीं था, बल्कि फख्र ही हुआ था । आयोजक कई बार जेल की यात्रा करके अपनी प्रतिभा को
बहुत पहले ही साबित कर चुका था । चोर लोहा मानते थे उसकी कलाकारी का । चोरी एक
उच्च कोटि की कला है और विरले चोर ही कला की उस ऊँचाई को छू पाते हैं ।
बिना एक पल की देरी किए आयोजक माइक के सामने आ
खड़ा हुआ था । अपनी तोंद पर हाथ फेरने के बाद उसने कहना शुरु किया, ‘भाइयों और भाइयों ! हम क्षमा माँगता हूँ अपना संबोधन के लिए
। हम बहन नहीं बोल सकता हूँ, काहे से कि हम उन लोगन को न्योतना भूल गया हूँ । खैर,
अगली सभा में हम बुला लूँगा । हाँ तो बात इ है कि एकदम्मे से समय पलटा खा गया है ।
उ हमरी मुट्ठी से रेत का माफिक निकलता जा रहा है । हम लोगन का तुरंत एक्शन में आने
की जरूरत है ।’
‘बात कुछ समझ में नहीं आई ।’ भीड़ में से आवाज
उभरी थी ।
‘चोरी तो पहले भी होता था, पर सरकार भली थी ।
बहुते बवाल होने पर ही वह एक्शन में आती थी । जनता के बहुते दबाव पर दो-चार महीने
की जेल भी हो जाती थी । पर मेहनत का पइसा चोर के पास ही बना रहता था ।’
‘हाँ तो अब क्या समस्या है?’ दूसरे कोने से
किसी ने पूछा था ।
‘बहुते बड़ी समस्या है ।’ आयोजक बोला, ‘नई
सरकार खांटी फासीवादी है । उ तो हमरा ही पइसा छीनने पर तुली हुई है । जमीन-जायदादो
पर उसकी नजर है । कुछ नहीं किया गया, तो बहुते जल्दी हम सब के हाथ में कटोरा होगा
। फिर गाते फिरो फिल्मी गाना-गरीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा, तुम एक पइसा दोगे
वो दस लाख देगा...’
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साभार-TeluguOne.com |
‘तो हमें करना क्या है?’ इस बार मंच से ही एक
चोर उठा था ।
‘अपना मुल्क बनाना है...चोरलैंड ! अऊर कउनो
चारा नहीं है ।’
‘यह तो बहुत ही बढ़िया बात है । वहाँ सब चोर
ही चोर होंगे ।’ मंच पर एक नेता खुशी से उछल पड़ा था ।
‘बुड़बक कहीं का ।’ आयोजक झिड़कते हुए बोला, ‘अइसा
भी कहीं होता है का? बेईमान डॉक्टर होगा, तो तुम्हरे ही पेट में छूरा छोड़ देगा । इंजीनियर
बेईमान हुआ, तो हम लोगन के सिर पर ही बिल्डिंग भरभरा जाएगी ।’
‘हाँ, यह बात तो हमने सोचा ही नहीं था ।
चोरलैंड को भी ईमानदार लोगों की जरूरत होगी ।’
‘बेशक, पर उनको हमरी शर्तों पर रहना होगा ।
सत्ता के क्षेत्र में उनका प्रवेश निषेध होगा । प्रवेश करने की कउनो कोशिश पर भी
उनको मृत्यु-दंड देय होगा ।’
‘बहुत खूब-बहुत
खूब’ और तालियाँ बज उठी थीं चारों तरफ । शांत होते ही एक मंचासीन चोर ने अपनी
जिज्ञासा प्रगट करते हुए पूछा, ‘मुल्क के लिए जमीन क्या प्राप्त हो गई है?’
‘हम जमीन काहे खोजें? यह हमरा मुल्क है । जाना
तो सरकार को पड़ेगा । सत्ता बहुते दिन तक उन लोगन के हाथ में नहीं रहने वाली ।’
फिर एक बार तालियों की गड़गड़ाहट से महासभा
गूँज उठी थी । आयोजक भी प्रसन्नता से भर उठा । रुकने का इशारा करते हुए उसने अपनी
बात को आगे बढ़ाया । वह बोला, ‘पर इसके लिए हम लोगन को बलिदान के लिए तैयार रहना
पड़ेगा । हमका अपने-अपने स्वार्थों का बलिदान करना होगा । अपनी-अपनी
महत्वाकांक्षाओं को हिंद महासागर की अतल गहराइयों में डुबाना होगा । किसी एक को
अपना नेता चुनकर उसके अधीन काम करना होगा । एकता बहुते जरूरी है इस काम के लिए ।’
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साभार-india today |
इतना सुनते ही चोर खदबदाने लगे थे । चोरों की
फितरत एक साथ काम करने की होती, तो वे एक महा-कम्पनी में काम कर रहे होते । पर
यहाँ अपने अस्तित्व का सवाल था । ना-नुकुर की गुंजाइश नहीं थी ।
‘एकता के बाद हमका
संसाधन की जरूरत पड़ेगी । वित्तीय संसाधन तो हम लोगन के पास अकूत है । मानव संसाधन
को देखें, तो हमरी संख्या के आगे बहुते देश फेल हो जाएंगे । कहने का मतलब है कि
हमरा चोरलैंड अब बहुते दूर नहीं है ।’ कुछ देर रुककर, ‘अब हम लोगन को एक नेता का
चुनाव करना है । फिर चोरलैंड का महा-प्रस्ताव लाया जाएगा ।... तो हम खुद को नेता
के रूप में प्रस्तावित करता हूँ ।’
‘हम क्या प्याज छीलने आए हैं यहाँ पर?’ अचानक मंच पर बैठे दो चोर एक साथ बोल उठे थे, ‘हम
क्यों नहीं बन सकते नेता?’
‘ठीक है । भीड़ हाथ उठाए कि कउन केकरा पक्ष
में है । फैसला उसी का मान्य होगा ।’ एक चोर ने बात को संभाला था ।
भीड़ का बहुमत आयोजक के पक्ष में खड़ा हो गया
था । मन से या बे-मन से उसे नेता मान लिया गया । अगले कुछ पलों में चोरलैंड का
महा-प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित भी हो गया । इसी के साथ महासभा के खत्म होने की
घोषणा कर दी गई थी । अब सिर्फ सरकार को उखाड़ फेंकना ही शेष रह गया था । सभी सरकार
को उखाड़ फेंकने के लिए अपने-अपने रास्तों पर बढ़ गए थे ।