पीछे मुड़कर देख रहे तुम
दो कदम आगे बढ़ने पर,
कौन राह चला आता है
जीवन तज मरने पर ।
कदम बढ़ाए जाते हो तुम
मन तो पीछे छूट रहा है,
किसकी आह सताती तुमको
कौन लगन को लूट रहा है ।
एक कदम है रैन तुम्हारा
एक कदम
दिवस-सा लगता,
व्यथा इतनी
क्या सह पाओगे
मन तुम्हारा अमावस सा लगता ।
इन कदमों पर धरा सिसकती
जीवन क्या इतना बेजार है?
सांझ भी पागल हुई जाती
यह कैसी चली बयार है ।
जारी...
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