जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 16 मई 2017

मन पीछे छूट रहा है ( भाग-3 )

 पीछे मुड़कर देख रहे तुम


दो कदम आगे बढ़ने पर,


कौन राह चला  आता है


जीवन तज  मरने  पर


                  कदम बढ़ाए  जाते  हो तुम


                  मन तो  पीछे  छूट रहा है,


                  किसकी आह सताती तुमको


                  कौन  लगन को लूट रहा है


एक  कदम  है  रैन  तुम्हारा


एक  कदम दिवस-सा  लगता,


व्यथा  इतनी क्या  सह पाओगे


मन तुम्हारा अमावस सा लगता


                   इन कदमों पर धरा सिसकती


                   जीवन क्या इतना बेजार है?


                   सांझ भी  पागल  हुई जाती


                   यह कैसी  चली  बयार  है

                                     जारी...

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