तीसरी बार उन फटेहाल, अधनंगों को आधा दर्जन
पुरानी साड़ी-धोती खैरात-स्वरूप बाँटते ही मुझे आत्म-ज्ञान की प्राप्ति हो गई ।
मुझे लगा कि मैं भी खैरात बाँटकर लोगों का विकास कर सकता हूँ । कर क्या सकता हूँ,
बल्कि मैंने तो कर दिया है । यह कमाल मैंने पूरी तरह स्वतंत्र रहकर किया है । आज न
तो बापू की छत्रछाया थी मेरे पीछे और न ही उनका कोई मुलायम निर्देश । घर पहुँचते
ही मैंने ऐलान कर दिया कि अब घर के सत्ता-सिंहासन पर केवल मेरा ही जूता आसीन होगा
।
‘किसी को कोई आपत्ति?’ मैंने अपनी निगाह घर
के सदस्यों पर दौड़ाते हुए पूछा ।
‘मुझे आपत्ति है ।’ बापू की आवाज उभरी । वह
सामने आते हुए बोले, ‘सत्ता पर मेरा अधिकार है । मैं उसका हस्तांतरण ही नहीं
करूँगा ।’
‘मुझे उसकी परवाह नहीं है ।’ इस वक्त मेरा
मजबूत आत्म-विश्वास बोल रहा था । उनकी आँखों में आँखें डालते हुए मैंने कहा, ‘इस
काम के लिए मैं दंगल भी कर सकता हूँ आपसे ।’
बापू का मुँह खुला तो खुला रह गया । वह उसी
अवस्था में रहते हुए बोले, ‘तू मुझसे दंगल करेगा? अरे कपूत ! तू तो इतना भी नहीं
समझता । कहीं दंगल से मंगल की कामना की जा सकती है भला !’
‘कलयुग का यही तो करिश्मा है बापू ।’ मैं
पूरी तरह संयत रहते हुए बोला, ‘अब दंगल से ही मंगल होता है । आपने देखा नहीं, उधर
राजधानी में क्या हुआ? मंगल के लिए ही तो सारा दंगल मचाया गया । बाप के खिलाफ खड़ा
होना...मतलब मजबूत होकर उभरना । बाप के खिलाफ मुलायम होकर खड़ा होने से नहीं,
बल्कि अखिल मजबूती से खड़ा होने पर ही इमेज-बिल्डिंग होती है ।’
‘पर वह राजनीति का अखाड़ा है । परिवार में उन
राजनीतिक बातों का कोई औचित्य नहीं ।’ बापू ने अगला दांव चलते हुए कहा ।
मैं भी उसी बापू का बेटा था । दांव की काट
करते हुए बोला, ‘जब राजनीति में परिवार हो सकता है, तो परिवार में राजनीति क्यों
नहीं?’
‘पर परिवार में सबकी राय ली जाती है, सबके
हित के लिए समान भाव से काम किया जाता है । इसी को परिवारवाद कहते हैं । समाजवाद
का मूल भी यही है ।’
‘मैं
भी उसी समाजवाद को मजबूत करना चाहता हूँ...आपके मार्गदर्शन में । मैं चाहता हूँ कि
प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आप अपनी सत्ता का हरण करने में मेरा मार्ग-दर्शन करें ।’
और अगले ही पल दंगल की प्रभावी स्क्रिप्ट-राइटिंग
के लिए मैं परिवार के सदस्यों की एक आपात बैठक आहूत करता हूँ ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें