जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

खटमल धीरे से जाना खटियन में

               
   जब से राजमाता लोमड़ी ने वानप्रस्थ आश्रम में जाने की तैयारी शुरु की है, तभी से अखिल जंगल दल का समूचा बल युवराज के सिर पर टूट पड़ा है । सत्ता का सुख ही ऐसा होता है कि त्याग की मूर्ति देवी को भी राजमाता लोमड़ी बना देता है । वहीं सत्ता का दुख भी इतना दबंग होता है कि राजमाता लोमड़ी को भी वानप्रस्थ आश्रम में जाने को विवश कर देता है । सत्ता छिनने के बाद से ही ‘सब सूना-सूना सा लागे है जग’ में राजमाता को, वरना ‘उंगली अपनी उठ रही और नाच रहा संसार’ वाली सुखदायक स्थिति थी । उधर राजमाता की सक्रियता कम हुई और इधर युवराज की सक्रियता बढ़ गई । सत्ता के सिंहासन पर अपना जन्मजात अधिकार समझने वाला प्राणी बहुत दिनों तक विदेशी प्रवास में रहने का खतरा नहीं मोल ले सकता । युवराज  विदेशी प्रवास और पिज्जा-बर्गर उड़ाने के बजाय अब देश की सड़कों की खाक और दुर्बलों-वंचितों के घर की दाल-रोटी उड़ाना चाहते हैं ।
   गरीब तब अपनी गरीबी भूल जाता है, जब युवराज जैसा कोई उसके घर उसकी थाली को खाली करने पहुँच जाता है । गरीबी-उन्मूलन के लिए सत्ताधीसों की हवा-हवाई हरकतों से उत्पन्न उसकी शाश्वत शिकायतों पर विराम लग जाता है, जब यही सत्ता के नायक अपना सिंहासन छोड़ उसकी खटिया पर पधारते हैं । उसे यही बात आनन्द देती है कि चलो, यह भी अपने स्तर पर आ गया । अपने जात वाले से कैसी शिकायत !
   शिकायत दूर करने के लिए युवराज जनता सियारों से ऐसे ही सम्बन्ध बनाना चाहते हैं । पहले के समय में और आज भी कुछ वन-प्रान्तों में गाँव का मुखिया अन्य प्राणियों के साथ खाट पर बैठकर संवाद स्थापित करता है । अन्य प्राणियों को मुखिया अपना ही जानवर प्रतीत होता है, क्योंकि वह उनके साथ खाट पर बैठा होता है । भले ही पीठ-पीछे वह प्राणियों का सारा हक मार जाता हो । किसी चुनावी सलाहकार ने यह अच्छी सलाह दी है युवराज को कि प्राणियों की इस मनोवैज्ञानिक कमजोरी का फायदा उठाकर सत्ता को हथियाया जा सकता है । तभी से युवराज खाट-सभाएँ किए जा रहे हैं ।
   अगली खाट-सभा के लिए दरबार में मंथन चल रहा है । एक तरफ युवराज और उनके सलाहकार की टीम है, तो दूसरी तरफ कार्यकर्ताओँ की भारी भीड़ । युवराज कुछ गुस्से में दिखाई देते हैं । पिछली खाट-सभा में उनके मन-मुताबिक व्यवस्था नहीं हो पाई थी । खाटों में खटमल डालने के उनके निर्देश का पालन सम्बन्धित भावी मंत्री ने नहीं किया था ।
   ‘मैं पूछता हूँ खटमल आखिर अभी तक क्यों नहीं आए?’ युवराज के मुँह से गुस्सा बाहर निकलता है । वह चीखते हुए पूछते हैं, ‘किस बैलगाड़ी से आ रही है खटमलों की खेप? इस तरह चलता रहा, तो एक दिन हमारी ही खटिया खड़ी हो जाएगी ।’
   ‘खटिया खड़ी है युवराज, तभी तो हम उसे बिछा रहे हैं ।’ एक भावी मंत्री का मुँह खुलता है । वह नजरों को झुकाते हुए बोलता है, ‘हुजूर माफ करें, तो एक बात पूछने की इच्छा है । खाट तो ठीक है, पर यह खटमल का खटराग...बात कुछ भेजे में नहीं गई अपने ।’
   ‘बात भेजे में चली जाती, तो आज हम सत्ता से बेदखल नहीं हुए होते ।’ युवराज का गुस्सा तनिक और बढ़ जाता है । वह अपनी आस्तीनें चढ़ाते हुए बोलते हैं, ‘खाट में खटमल...क्या आपको नहीं लगता कि हलचल मचा देगा । दोतरफा लाभ है इससे । मामला खुलते ही विरोधियों पर इसकी साजिश का आरोप मढ़ देंगे । जनता उनपर खटमल की तरह टूट पड़ेगी । वैसे जनता भी खटमल ही होती है । इसी ने हमारी सुख की नींद को हराम कर रखा है । अच्छा होगा...खटमल इनका भी खून चूसेंगे । हमें त्रस्त करने वाले मस्त नहीं रह सकते ।’
   ‘वाह युवराज वाह, इसीलिए तो आप युवराज हैं ।’ पूरा दरबार खुशी के अतिरेक के साथ गुंजायमान हो उठता है । शांत होते ही एक दरबारी की जिज्ञासा उबाल मारती है । वह घुटनों के बल झुकते हुए पूछता है, ‘मगर खाट-सभा ही क्यों...?’
   ‘तो क्या पलंग-सभाएँ करें...डनलप के गद्दों के साथ?’ युवराज पूरी सभा पर दो-तीन बार अपनी नजरों को दौड़ाते हैं, फिर कहना शुरु करते हैं, ‘जिसकी जितनी औकात होती है, उसे उतनी और वैसी ही चीज दी जाती है । अधिक देने पर दिमाग को झटका लगने का डर बना रहता है ।’
   ‘पर जनता खाटों को लूटकर भाग रही है ।’ एक और दरबारी खड़ा होकर अपनी बात को दरबार में रखता है ।
   यह सुनते ही युवराज के चेहरे पर रहस्य-भरी मुस्कान बिखर जाती है । मुस्कुराहट को गाढ़ा बनाते हुए वह बोलते हैं, ‘यह तो हमारे लिए खुशी की बात है । जनता पहली बार अपने राज्य में खाट लूट रही है । इससे पहले ऐसी लूट कभी नहीं मची । मतलब साफ है कि जब से विरोधी ने सरकार बनाई है, जनता गरीब से और गरीब हो गई है । चरित्र इतना गिर गया है कि खाट तक लूटने लगी है । हमारे पुरखों के जमाने में तो अन्न भी नहीं लूट पाती थी वह ।’
   फिर एक बार दरबार तालियों से गूँज उठता है । तभी सलाहकार टीम का मुखिया दरबार से मुखातिब होता है, ‘घबराइए नहीं आप लोग । अपनी खाट से हम विरोधियों की खटिया तो खड़ी करेंगे ही, जनता की भी खाट खड़ी हो जाएगी । चीनी मॉडल की खटिया कुछ ही दिनों में खाट खड़ी करने के लिए उन्हें मजबूर कर देगी । हम एक तीर से दो निशाने लगाना चाहते हैं ।’

   युवराज कुछ खास लोगों के कानों में कुछ कहते हैं । खटमलों को तत्काल कहीं से भी मंगाने का आदेश जारी होता है । खाटों को भी बनवाने का आदेश निकलता है । अगली खाट-सभा में कोई कसर न रहे, इसके लिए युवराज के खास जानवरों को मोर्चा सम्भालने की जिम्मेदारी मिलती है । सभी अपनी खाट बिछाने और दूसरों की खड़ी करने को निकल पड़ते हैं ।

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