साधो, संसद में बाबा को झपकी क्या आई, चमक-सी
आ गई मीडिया के चेहरे पर और उसके फ्लैश चमकने लगे । सोता हुआ कैमरामैन जाग उठा ।
मछली बाजार की तरह संसद के भयानक कोलाहल के बीच भी जिसे गहरी निद्रा आ गई थी, उसे
बाबा की निद्रा ने जगा दिया । चारों तरफ शोर मच गया । दलित-चिंतन के दौरान बाबा
सोते हुए पकड़े गए । शोर ऐसा मचा, मानो किसी के घर में सेंध लगाते वक्त उन्हें
पकड़ लिया गया हो, वह भी रंगे हाथों । मगर किसी ने यह नहीं सोचा कि मीडिया आखिर कर
क्या रही थी । जानकार लोगों का कहना है कि कुछेक कैमरामैन संसद की कार्रवाई के
बजाए कैमरे को बाबा पर फोकस करके इत्मीनान से निद्रा की गोद में चले गए थे ।
उन्हें पक्का यकीन था कि संसद की उबाऊ कार्रवाई से कहीं बड़ा मसाला बाबा से हासिल
हो जाएगा ।
झपकी लेना जब बुरी बात नहीं है, तब इतना हंगामा-सा
क्यों बरप गया ! सभी जानते हैं कि जागरण में क्या होता है । जागरण का मतलब खुद
जागना और दूसरों को जगाना होता है । संसद का जमावड़ा भी इसी उद्देश्य की पूर्ति के
लिए होता है । खैर, जागरण में जागने के लिए अपने मुँह के सुरों और ढोलक-झाँझ-मजीरे
की आवाजों को इतनी बुलंदी तक पहुँचाया जाता है कि निकट और दूर के सोए हुए
सौभाग्यशाली भी निद्रा का परित्याग करके जागृति को प्राप्त हो जाएं तथा सुख के
अतिरेक में आँखों को लाल कर लें, दाँत पीसने लगें और मुठ्ठियों को भींचने लगें ।
जगाने की इतनी कोशिश के बावजूद कुछेक जागरण-वीर ऐसे अवश्य होते हैं, जो निद्रा-लोक
की सैर पर निकल लेते हैं । वे उस सत्य के अनुगामी होते हैं, जिसके अनुसार सोने के
बाद ही जागरण घटित होता है । जिसने सोना नहीं सीखा, वह क्या जागेगा !
सोना सचमुच सोना होता है । इस बात की तस्दीक
के लिए सरकारी दफ्तरों से बेहतर जगह भला और क्या हो सकती है । कई पहुँचे हुए
बाबुओं को यह अच्छी तरह ज्ञात होता है कि झपकी लेने का क्या महत्व है दफ्तरों में
। वे पूरी निष्ठा से झपकी लेते रहते हैं । काम करवाने के लिए आया व्यक्ति अतिरिक्त
मुद्रा का ट्रांसफर करता है अपनी जेब से बाबू की जेब में । तब जाकर वह जागरण को
प्राप्त होता है । जागना भी इसी को कहते हैं । सोने का महत्व यहाँ इतना है कि सोने
से जागने पर सोने की उपलब्धि होती है । सोने वाले बाबू न होते, तो सरकारी दफ्तरों
की प्रतिष्ठा इतनी बुलंदी तक कभी न पहुँची होती । काम करने से कोई ऊँचाई तक नहीं
पहुँचता । जिसे भी ऊँचाई तक पहुँचने का जुनून है, उसे काम न करने और झपकी लेने की
कला में निष्णात बाबुओं से दीक्षा ग्रहण करनी चाहिए ।
अपने को विशेषज्ञ कहने वाले लोग भी बताते हैं
कि झपकी लेने से तन-मन को राहत पहुँचती है । काम के दौरान झपकी के कुछेक डोज काम
के प्रति अपनेपन व उत्साह को बढ़ाते हैं । बाबा अपने उत्साह को बढ़ाना चाहते थे,
ताकि दलित-चिंतन को एक नया आयाम दे सकें । अतः उनका झपकी लेना निहायत ही जरूरी था
। झपकी लेने से उनका उत्साह इस विकट रूप से बढ़ा कि वह दौड़ते हुए गुजरात पहुँच गए
दलितों के बीच ।
एक और लाभ दिखा झपकी लेने का । उन्हें नींद
में गाफिल देखकर उनके संसद-बाँकुरे सैनिकों ने समझा कि वह समाधि लगाकर कोई
दिव्यास्त्र लाने वाले हैं, अतः महाजोश के अतिरेक में फँसकर उन्होंने पूरे सदन को
अपने सिर पर उठा लिया । कोलाहल के बीच एकाग्रता और झपकी के तीर कोई निद्रा-वीर या
पहुँचा हुआ फकीर ही छोड़ सकता है ।
झपकी लेना हर तरह से फायदे का सौदा है, अतः
कायदे से इसे कीजिए । आराम से झपकी लीजिए और दूसरों को भी लेने दीजिए । बाबा पर
मीडिया की इस तरह की कुचेष्टा ठीक नहीं है ।
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