‘आशीर्वाद दीजिए माता कि मैं आपके चरण-चिह्नों पर बिना भटके चल लकूँ और आपके इशारों को हू-ब-हू समझते हुए उसी के अनुरूप कार्य कर सकूँ ।’ गुरूमाता लोमड़ी के चरणों में सिर रखकर भेड़ ने कहा ।
‘मेरा आशीर्वाद सदा
तुम्हारे साथ है । हमारे कार्यों की सिद्धि के लिए आज से तुम्हें मौन व्रत धारण
करना होगा । मौन से तुम्हे असीम ऊर्जा प्राप्त होगी । धरती इधर से उधर हो जाए,
ज्वालामुखी फटे, अग्नि तांडव करे, जल-प्रलय हो या आँधियां अंधी हो जाएं, पर
तुम्हारा मौन यथावत बना रहे । धर्म रहे न रहे, लेकिन मौन सदा रहना चाहिए । आगे वन
की जनता में तुम मौनी बाबा के रूप में विख्यात होगे । अब तुम जाओ और वन का कल्याण
करो ।’ कहते हुए
गुरूमाता ने आँखें मूँद लिय़ा । यह उनकी तरफ से जाने का इशारा था ।
गुरूमाता के प्रसाद-स्वरूप प्राप्त दैवीय रथ
पर सवार होकर भेड़ अपने आश्रम की तरफ बढ़ गये । आश्रम में ऐशोआराम के सारे साधन
मौजूद थे । अतः साधना के लिए ध्यान लगाने में कोई दिक्कत नहीं हुई । मौन ही तो
धारण करना था । मौन- साधना में छः माह बीत
गए । वह प्रसन्न थे कि कोई भी विघ्न-बाधा उनके निकट आने का साहस नहीं जुटा पाई थी
।
शाम का समय था और शीतल मंद वायु आत्मा तक को
शीतल किए जा रही थी । वह बाहर निकलकर आश्रम के विशाल प्रांगण में विचरने लगे थे ।
सामने पक्षियों की एक लम्बी कतार तेजी से अपने घरों की तरफ बढ़ रही थी । एक-एक
फूलों पर हाथ रखते वह आगे बढ़ रहे थे । आश्रम के आसपास के पेड़ों ने झुकना शुरू कर
दिया था । उनकी ऐश्वर्यशीलता और मौन की साधना से वे अत्यन्त प्रभावित थे ।
उन्होंने मौनी बाबा कहना शुरू क्या किया, हवाओं के थपेड़े इसे दूर-दूर तक पहुँचा
आए । मौन साधना का मुखर प्रसार-प्रचार वन के कोने-कोने तक हो गया । वह और आगे
बढ़ते कि सरसराहट की आवाज सी आई एक दिशा से । उन्होंने ध्यान से देखा, गुरूमाता का
एक खास सेवक पेड़ों की ओट में जाता दिखाई दिया । वह कई निर्दोष और निहत्थे वन-जनों
को एक गड्ढे में दफन कर रहा था । आँखें बंद होती चली गईं उनकी । वक्त की नजाकत को
उनकी आँखों से बेहतर भला और कौन समझ सकता था !
कुछ और आगे बढ़ने पर एक और नजारा दिखाई दिया ।
गुरुमाता के चार-पाँच सेवक वन की कुछ स्त्रियों का खुल्लमखुल्ला चीरहरण कर रहे थे
। उन्हें एकबारगी लगा कि यह ठीक नहीं है, पर दूसरे ही पल उनकी आत्मा जाग गई । यह
आमजन बनाम खासजन का मामला था । आमजन के बनने में कोई पहाड़ नहीं तोड़ना पड़ता, पर
खासजन तो हजारों पापड़ बेलने के बाद बनते हैं । जब खासजन से आमजन का धर्म टकराए,
तो खासजन के धर्म की रक्षा हर हाल में की जानी चाहिए । एक बार फिर आँखें मूँदना उन्हें
सर्वथा उचित लगा ।
उन्हें संतोष था कि यह सब देखकर भी उनका मौन
भंग नहीं हुआ था, अन्यथा लज्जा का आईना उन्हें गुरुमाता की नजरों से दूर कर देता ।
फिर भी कोई उधेड़बुन थी, जो मन को मथे जा रही थी । रात अपने तीसरे प्रहर में
प्रवेश कर गई थी, पर नींद के रथ का दूर-दूर तक नामों-निशान नहीं था । वह धीरे-धीरे
आता हुआ भी दिखाई नहीं दिया । पर सन्नाटे को बेधती आवाजें तेजी-से आने लगी थीं ।
कहीं कुत्तों की आवाज, तो कहीं सियारों का सियापा । एक तरफ चमगादड़ों की फड़फड़ाने
की आवाज, तो दूसरी तरफ पंचम सुर में झींगुरों की झिनझिनाहट ।
वह बाहर निकल कर देखना चाहते थे रात की बढ़ती
जाती विक्षुब्धता को । कौन है जो शांत पड़ चुके जल में पत्थर फेंके जा रहा है । वह
उठे ही थे बाहर निकलने को कि कोई अंदर आता दिखाई दिया था । वह एक साथ कई बोरों को
घसीट रहा था । अंदर आते ही सीएफएल की रोशनी में बोरों की पहचान उजागर हो गई थी ।
नोटों से भरे बोरों पर कोयले की उजास,
पानी की कालिमा, संचार की सच्चाई... लिखा हुआ था । लाने वाला मंत्री व
गुरुमाता का अपना आदमी था । वह फुसफुसाते हुए बोला, ‘गुरुमाता की
आज्ञा है । अतः इन्हें यहीं रखना है । अफ्रीकी वनों में भेजने से पूर्व एक निरापद
जगह की तलाश थी । आपकी ईमानदारी की छाया साया बनकर इसकी रक्षा करेगी ।’ और यह कहते हुए वह जिस
तेजी से आया था, उसी तेजी से निकल गया ।
उन्हें समझते देर नहीं लगी थी कि घोटाले के
ताले ही लगे हुए हैं बोरों में । घोटालों और ईमानदारी का क्या मेल ! पर उनकी ईमानदारी आज
घोटालों के काम आ रही है, इस सोच ने उन्हें तृप्ति प्रदान की थी । उन्हें इस बात
का भी अभिमान हो आया कि उनकी ईमानदारी अब भी य़थावत है । इस बार आँखें मूँदते ही
उन्हें यमदूत दिखाई दिए थे । यमदूतों को देखते ही उनका मौन भंग हो गया । ‘तुम लोग मुझे
घसीटते हुए नहीं ले जा सकते । मेरी मौन साधना और ईमानदारी क्या दिखाई नहीं देती
तुम लोगों को?’
‘ईमानदारी जब अत्याचार, अनाचार को देखकर आँखें मूँद लेती है, तो उसका मौन उसके
लिए मौत बन जाता है । इसीलिए हम तुम्हें लेने आए हैं । तुम्हारी ईमानदारी गई तेल
लेने, अब तुम अपने बेल की तैयारी करो । महाराज यमराज ने आज्ञा दी है कि तुम जैसे
ढोंगी को कांटों पर घसीटते हुए लाया जाए ।’ अगले ही पल वे
उन्हें कांटों पर घसीटने लगे थे । मौनी बाबा के कलपते कंठ गुरुमाता की पुकार करने
लगे थे, पर किसी ने उनकी आवाज को नहीं सुना था । समूचा वन-प्रांत शांत पड़ा हुआ था
।
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