बाबा आजकल अज्ञातवास में हैं । इसके लिए
उन्हें विदेश की शरण लेनी पड़ी । अपने देश में मीडिया का खतरा था । खोज निकालते तो
! महाभारत वाले जमाने में पांडवों को मजबूरी में अज्ञातवास
में जाना पड़ा था, किन्तु बाबा अपने शौक से शुभ-मुहुर्त्त निकालकर अज्ञातवास में
चले जाते हैं । यह उनका अपना स्टाइल है । पांडवों को एक बार ऐसा करना पड़ा था, पर
बाबा अक्सर ऐसा करते रहते हैं । पूरे अज्ञातवास के दौरान पांडव भयभीत बने रहे ।
उन्हें अपने लाइट में आने का डर था । बाबा के सामने भय हमेशा अवकाश पर रहता है ।
लाइट में बने रहने के लिए ही बाबा ऐसा करते हैं ।
बाबा का
अज्ञातवास में जाना तथा नेवले और साँप की कहानी का मन में आना एक संयोग मात्र है ।
नेवले और साँप की लड़ाई में नेवला कुछ-कुछ समयान्तराल पर अपने बिल की ओर भागता है
। ऐसा माना जाता है कि वह वहाँ पर जाकर कुछ जड़ी-बूटियों को सूँघता है या उनका
रसास्वादन करता है । इससे उस पर साँप के जहर का प्रभाव कम होता है तथा साथ ही साथ
वह वहाँ बैठकर चिंतन–मनन करता है । हमला करने की आगे की रणनीति पर विचार करता है ।
विपक्षी पर कौन-कौन से शस्त्रास्त्र प्रयोग किए जाएँ-–इसका निर्णय लेता है । कौन
से दाँव आजमाएँ जाएँ–-इस पर त्वरित फैसला करता है । साथ ही साथ वह अपनी ऊर्जा की,
देसी भाषा में बोले तो, पुनर्प्राप्ति कर रहा होता है ।
विदेशी
अज्ञातवास में जाने के पीछे बाबा का मकसद भी बहुत कुछ इससे मिलता-जुलता है । गुड़
खाने वाला ही गुड़ का मजा जानता है । अज्ञातवास का मजा बाबा के अलावा और कौन जान
सकता है । बिना मजा के वे अज्ञातवास में बार-बार क्यों जाते ! अज्ञातवास में जाने के लिए गुप्त और सुरक्षित ठिकानों की दरकार होती है ।
ठिकाना मनमाफिक न हो तो आपके बाबा होने का क्या फायदा ! दूसरी बात ये है कि बाबा अज्ञातवास
में सचमुच चिंतन-मनन के लिए ही जाते हैं । वे वहाँ पर देसी समस्याओं पर विदेशी
विशेषज्ञों से राय लेते हैं । विपक्षियों से निपटने के लिए विदेशी किताबों में
उपाय ढूँढते हैं । दाँव-पेंच को स्मरण करने के लिए विदेशी भोजन का अनिच्छित प्रयोग
करते हैं तथा विभिन्न विदेशी जगहों की खाक छानते हैं । साथ ही साथ वह अपनी एनर्जी
को, अंग्रेजी भाषा में बोले तो, रीगेन कर रहे होते हैं ।
अज्ञातवास का
सबसे बड़ा इफेक्ट ये
पड़ता है कि क्या
पक्षवाले और क्या विपक्षवाले–सभी
भौंचक रह जाते हैं
। बाबा रणक्षेत्र से
ऐन प्राइम टाईम में
ही निकल जाते हैं
। इसका साइड इफेक्ट
ये होता है कि
अज्ञातवास में निकल जाने
के बाद भी विपक्ष
मौखिक रूप से हमलावर
रहता है और निरन्तर
अपनी ऊर्जा का क्षय
कर रहा होता है
। आज भी यही
स्थिति है । विपक्ष
उन्हें ढूँढ रहा है
और बाबा की चुनौती
उस डिटर्जेन्ट टिकिया
की तरह अपनी जगह
बनी हुई है-–पैरों
के दाग ( निशान ) ढूँढते
रह जाओगे !
यह मायने रखता है कि अपने सामने कौन है और वह कितना ताकतवर है.. कमजोर हो तो करो मनमानी अपनी , कौन होगा रोकने टोकने ..
जवाब देंहटाएंबाबाओं के जय जयकार करना भी हमारी पुरातन संस्कृति का हिस्सा है ..जय बाबा की
टिप्पणी के लिए धन्यवाद...
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