उनके योग्य
मंत्रियों ने उन्हें सलाह दी है कि कुछ ऐसा लगातार करते रहा जाए, जिससे जनता को सब
कुछ हरा-ही-हरा दिखाई दे । गाए अपने मियां मल्हार वाले दादुर-रटन्त से उनके कान
बहरे कर दिए जाएं तथा हरी-हरी, रसभरी विकास की गगरी दिखा-दिखाकर हरा-हरा सत्ता का
चश्मा पहना दिया जाए । वैसे भी सूखे के मारों को सपना भी हरा-हरा ही दिखाई देता है
।
सत्ता में पुन: आने का जाप महाराज सियार और उनके मंत्री अभी शुरू करते ही
हैं कि तभी खबरी खरगोश दनदनाता हुआ दरबार में प्रवेश करता है और घुटनों तक झुकते
हुए- महाराज की जय हो । हुजूर, पूरा धुंधेलखण्ड का इलाका जबर्दस्त सूखे की चपेट में
है । जनता पानी को तरस रही है और आपको कोस रही है ।
नगाड़ा मंत्री,
आपका विभाग कर क्या रहा है ? नगाड़े क्यों
नहीं बजे अभी तक उन इलाकों में ? महाराज की भौंहें तन जाती हैं ।
महाराज, नगाड़े
तो बहुत पहले से बज रहे हैं । विज्ञापनों की राहत सामग्री भी भेज दी गई है । अब तक
तो कई खेपें पहुँच चुकी होंगी वहाँ ।
विज्ञापन और राहत सामग्री ! मैं कुछ समझा
नहीं ।-खबरी खरगोश आश्चर्य में पड़ जाता है ।
हमने बताया है
विज्ञापनों में कि सैकड़ों नहरें निकाली गई हैं, हजारों तालाब खोदे गये हैं, मुफ्त
बिजली दी गई है किसानें को । सरकार ने क्या नहीं किया है उनके लिए ।
पर असल में ये सब
चीजें कहाँ हैं ?
जनता को जमीन पर
दिखाई नहीं देता, इसीलिए हम विज्ञापनों में उसे दिखा रहे हैं । महाराज अत्यन्त
कोमलता से जवाब देते हैं ।
साथ ही इनमें
पसरी हरियाली उनके सूखे मन को राहत प्रदान करेगी ।-कहते हुए नगाड़ा मंत्री सचमुच
राहत की अनुभूति करते हैं ।
खबरी खरगोश नहीं
समझ पाता कि आखिर राहत की अनुभूति उसे क्यों नहीं हुई, पर अगली खबर के
लिए वह बाहर निकल जाता है ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की १५५ वीं जंयती - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
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