इधर का इलाका एकदम चकाचक है । किसी और इलाके
में सूखे का कोप भले ही बरस रहा हो, इधर तो होप-ही-होप है । प्रकृति तनिक रूठती है,
तो नेतागण इतने घड़ियाली आँसू गिराते हैं कि भरपाई हो जाती है । उनकी संवेदनशीलता
पानी के लिए बहुत अधिक है । पानी की उपलब्धता दो तरह की है इधर । सादा पानी, जो अब
ज्यादातर हैंडपंपों से ही निकलता है तथा रंगीन पानी, जो गन्नों को निचोड़कर
फैक्टरियों में बनाया जाता है । सादा पानी कम हो, तो चलता है, पर रंगीन पानी के
प्रवाह में बाधा नेताओं की संवेदना को निचोड़ने लगती है ।
किसी भी जगह हाट-बाजार का विकास करना हो, तो
सबसे पहले एक रंगीन पानी की दुकान खोल दीजिए । देखते-देखते चना-चबेना, चाट,
पकौड़े-समोसे, भेलपूरी-पानीपूरी तथा अनगिनत प्रकार की नमकीनों की दुकानें खुल
जाएंगी । इस बढ़ते सह-अस्तित्व व भाईचारे को और बढ़ाने के लिए बगल में सरकार तुरंत
एक पुलिस चौकी को ला बिठाएगी । इस तरह बाजार के बनने में देर नहीं लगती । सादा
पानी ऐसा कमाल करने में सर्वथा अक्षम है । चूँकि इधर बाजारों की संख्या कमाल की
है, अतः रंगीन पानी की आपूर्ति भी कमाल की है ।
आपूर्ति की अधिकता निर्यात के रास्ते खोलती है
। प्राकृतिक या कृत्रिम प्रयास से सूखे इलाके व्यापार की असीम संभावनाओं को जन्म
देते हैं । बौद्ध-इलाका अहिंसा के लिए रंगीन पानी पर रोक लगाता है और इधर का
अ-बौद्ध इलाका उनके प्रयास की प्रशंसा में उधर जमकर पानी भेजता है । रंगीन पानी पर
कोई आँच न आवे, इसके लिए सरकार एक टांग पर खड़ी रहती है । आखिर गन्ना-किसानों का
महाकल्याण जो ठहरा ! किसानों के हित में रंगीन पानी का निर्माण होना ही चाहिए ।
सरकार ने फैसला किया है कि रंगीन पानी की
आपूर्ति अबाध गति से बनी रहेगी । अपने नाम के अनुरूप उत्तमता को बनाए रखने के लिए
पानी तो होना ही चाहिए । रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून-इसलिए पानी को बनाकर
रखा जा रहा है । वैसे भी अपना ही एक हिस्सा भयंकर सूखे की चपेट में है । सादा न
सही, रंगीन पानी तो उन्हें उपलब्ध होगा ।
पता नहीं क्यों, कुछ नकचढ़े लोग कह रहे हैं कि
सरकार की आँखों का पानी कम हो रहा है । जबकि हकीकत यह है कि घड़ियाली आँसुओं से
सारे सूखे पोखर-तालाब लबालब भरे पड़े हैं । शायद इसकी एक वजह यह हो सकती है कि वह
अब आजाद नहीं रहा । आँखों में कम पानी दिखाई दे रहा है, क्योंकि वह तेजी से बोतलों
में कैद होता जा रहा है ।
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