जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 10 मई 2016

स्वप्न-राग की पावन बेला

                

   दरबार-ए-खास में आज काफी गहमागहमी है । महाराज सियार उन्नींदी अवस्था में अवश्य हैं, पर चेहरे पर सम्पूर्ण जोश का जाम बिखरा हुआ है । दरबार में सभी बड़भागी और बड़बोले मंत्री उपस्थित हैं । चुनाव रुपी वसन्त का आगमन होने वाला है । वह अपने लिए खुशियाँ अपार लेकर आए, इसके लिए महाराज की इच्छा है कि उसे प्रसन्न करने के लिए स्वप्न-राग का महोत्सव आयोजित किया जाए । वसन्त-आगमन की पूर्व-संध्या से अच्छी बेला भला और क्या हो सकती है ।
   स्वप्न-राग का विचार आपके मन में आया भी कैसे महाराज ?’-प्रधानमंत्री शेर से जानने की उत्सुकता रोके नहीं रुकती ।
   ‘स्वप्न-राग बड़े काम की चीज होती है’, महाराज प्रमुदित हो जवाब देते हैं-‘स्वप्न-राग छिड़ने पर भोली-भाली जनता स्वप्न के मायालोक में विचरण करने लगती है । इस स्थिति में उसे वही दिखता है, जो उसे दिखाया जाता है ।’
   ‘पर हुजूर, अखबार में विज्ञापनों पर इतना खर्च क्यों ?’ इस बार नगाड़ा मंत्री की आवाज गूँजती है ।
   नगाड़े की तरह आप बस बजना जानते हैं मंत्री जी, महाराज तनिक उखड़ते हुए कहते हैं-‘क्या आप इतना भी नहीं जानते कि अखबारी विज्ञापन उस मायालोक को रचने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं ?’
   ‘गुस्ताखी माफ हो हुजूर ।’ तभी एक कोने में खड़ा खबरी खरगोश घुटने तक झुकते हुए बोलता है,‘सच्ची खबर है कि राज्य के गरीबों के पेट खाली हैं । भूख क्या उन्हें सपनों में उतरने देगी ?’
   ‘भूख ही तो सपनों के लिए विवश करती है । वैसे भी गरीबों का पेट भरा, किसने देखा ! पर अखबारों के भरे हुए पेट सभी देखते हैं । हमने जो किया, अच्छी तरह उसे हम भी नहीं जानते । जो नहीं किया, उसे जनता किया हुआ माने- इसी के लिए स्वप्न-राग की झंकृत प्रस्तुति की दरकार होती है ।’
   पर इस सम्पूर्ण महोत्सव के लिए पैसे की व्यवस्था...?’ खबरी खरगोश डरते-डरते पूछता है ।
   खबरी, इतने सालों से राज-दरबार से जुड़े होने के बावजूद तुम्हारी बुद्धि छोटी-की-छोटी बनी रही । राजकोष मतलब राजा का कोष । उस पर राजा का ही सम्पूर्ण अधिकार है ।’ इस बार प्रधानमंत्री डपटते हुए जवाब देते हैं खबरी खरगोश को ।
  ‘वैसे भी लैफई महोत्सव हर साल हम जनता के लिए ही करते हैं । स्वप्न-लोक से कलाकार बुलाए ही इसलिए जाते हैं, ताकि जनता को सपना दिखाया जा सके । क्या तुमने वहाँ पानी की तरह पैसे को बहते हुए नहीं देखा ।’ यह तथ्य सामने रखकर नगाड़ा मंत्री महाराज की तरफ देखते हैं ।

   इसके बाद गंभीर मंथन होता है । सभी को समुचित जिम्मेदारी सौंपकर महाराज रूखसत होते हैं ।

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