इस वक्त देश के
कई हिस्सों में सूखे की स्थिति है । उस राज्य में भी सूखा मुँह बाए खड़ा है । इधर
के सूखे को किसी बरसात का इंतजार है । उधर के सूखे के लिए बरसात कोई सांत्वना लेकर
नहीं आती । मतलब उसका गला तर करने के लिए बरसात बेमानी है । इधर का सूखा मौसम की
बेईमानी का फल है । उधर का सूखा सरकार की ईमानदारी का ईनाम है । एक को मौसम की नजर
लग गई है, तो उस वाले को सरकार की नजर । नजर भले ही इसका-उसका लगा हो, मगर पीड़ित
दोनों तरफ समान हैं ।
इधर का सूखा तो
राम-भरोसे है । इसे राम के भरोसे ही छोड़ते हैं । हमारी चिंता तो उधर के सूखे को
लेकर अधिक है । सरकार ने कृत्रिम सूखा उत्पन्न कर दिया है । वह कोई मौसम तो नहीं,
जो प्राकृतिक सूखा पैदा करे । वह पीड़ित-जनों के धैर्य और उनके बटुवे की गहराई की
थाह लेना चाह रही है । साथ ही उनकी कर्मठता, जुझारुपन और जुगाड़ की प्रवृत्ति की
भी परीक्षा होनी है । सूखे की मार झेलने के लिए पीठ में दम होना चाहिए । मरियल कोई
इसीलिए बनता है, क्योंकि उसमें ये सारे गुण नहीं होते । गला तर करने में तो
बड़े-बड़ों के पसीने छूट जाते हैं ।
जब वहाँ
अति-वृष्टि हो रही थी, तो अड़ोसी-पड़ोसी काफी हैरान-परेशान थे । उधर की बाढ़
अतिक्रमण करते हुए इधर आ जाती थी । सामान्य-जन से लेकर सरकार तक, पैसे से लेकर
प्रतिष्ठा तक डूबने-उतराने लगते थे । बाढ़ के साथ गाद भी आती थी, जो इधर की
लहलहाने की हसरत सँजोते फसलों को दबाकर मार डालती थी । पर इतने के अलावा अनगिनत
प्रमुदित जन भी थे, जिनका गला मानो तरावट का तालाब बन जाया करता था । एक से बढ़कर
एक तरावट के तराने-खजाने । गले को तर तो तब करने की तरकीब लगानी पड़ती है, जब सूखे
की सवारी सीना ठोंककर निकल पड़ती है ।
अब उधर अनावृष्टि
का सामना है । अ़ड़ोसियों-पड़ोसियों के यहाँ खुशी के कई द्वीप पनपने लगे हैं । इधर
का गुणवत्ताहीन और त्याज्य जल भी उनके लिए तपते रेगिस्तान में टपकते अमृत-बूँदों
के समान है । वे गला तर करना चाहते हैं । उनका सूखा इनके सुख में बदल रहा है ।
वैसे सूखा हर किसी के लिए नुकसानदेह नहीं होता । सूखे में भी बहुत से लोगों को
बरसात का ही फील होता है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें