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महाराज के सामने
खबरों की खीर अभी परोसी ही जा रही है कि तभी खबरी खरगोश का आगमन होता है । ‘महाराज
की जय हो’, कहते हुए वह घुटनों तक झुकता है और अपनी बात आगे बढ़ाता है-हुजूर,
खबरें अच्छी नहीं हैं । जान की अमान पाऊँ, तो बयान करूँ ।
बेधड़क कहो खबरी
। हम कुछ भी सुनने को तैयार बैठे हैं ।
हर तरफ अपराध-ही-अपराध है । अपराधियों के लगाम पूरी तरह टूट
चुके हैं । उनको सख्ती से लगाम...
वह तो ठीक है खरगोश, पर हम ऐसा कैसे कर सकते
हैं । आखिर अपराधी भी तो हमारे ही राज्य के नागरिक हैं ।
महाराज, आपको ऐसा करना होगा । क्या आपको पता
है कि पिछले कुछ समय से क्या हो रहा है ।
पहेलियाँ न बुझाओ खबरी । साफ-साफ बताओ कि क्या
देखकर आए हो । महाराज भौंहें तनिक टेढ़ी करते हैं ।
पुलिस पिट रही है हुजूर । अपराधी अब उनकी
नियमित धुलाई करने लगे हैं ।
क्या सचमुच, महाराज उछल पड़ते हैं । खबरी, इस
खबर में तनिक भी असत्य तो नहीं । महाराज की आवाज में उत्तेजना के साथ खुशी की
मिश्री घुलने लगती है ।
सौ टंच सही बात है हुजूर, पहले आपके
नेता-मंत्री सीख दिया करते थे, अब अपराधी ऐसा करने लगे हैं ।
महाराज अपनी अंगूठी उसकी तरफ उछाल देते हैं ।
ये लो मेरी तरफ से । तुम नहीं जानते कि तुमने कितनी बड़ी खबर दी है । अंतत: समाजवाद पूरी तरह सफल
रहा । पुलिस पीटती है, तो अपराधी को भी हक है उन्हें पीटने का । हमारा समाजवाद
सबको एक नजर से देखता है ।
खबरी खरगोश अपना सा मुँह लेकर खड़ा रह जाता है
। महाराज सियार आँखों को बंद करते प्रतीत होते हैं ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " श्रीनिवास रामानुजन - गणित के जादूगर की ९६ वीं पुण्यतिथि " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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