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वैसे लालच की प्यास बुझ गई होती, तो परम
विद्वान रावण न तो सीताजी का अपहरण करता और न ही खुद सहित अपने सम्पूर्ण वंश के
विनाश का कारण बनता । लालच उसके लिए बुरी बला साबित हुई । महाभारत की लड़ाई को कोई
जानता तक नहीं, अगर दुर्योधन ने लालच की अपनी प्यास बढ़ाई न होती । उसने लालच की
प्यास को इतना बढ़ाया कि सुई की नोंक के बराबर भी जमीन देना असहनीय हो गया । लालच
की उसकी प्यास उसे मृत्यु तक घसीट कर ले गई ।
पर आज के समय में लालच एक कला अवश्य बन गई है
। राजनीति कभी समाज की सेवा का साधन शायद रही हो, पर आज वह पैसा बनाने और देश को
दुहने की एक कला है । लालच की कला इतनी प्रभावी है कि उसने राजनीति को भी एक कला
में बदल दिया । चारा घोटाले में भैंसों को स्कूटर से ढोया जाना क्या कला की अनुपम
प्रस्तुति नहीं थी । लालच की प्यास बुझ गई होती, तो यह महान कलाकारी देखने को कैसे
मिलती ? अपना देश महान घोटालों से वंचित बना रहता और वह दुनिया की
नजरों में नहीं आ पाता, यदि लालच की प्यास न होती । घोटालों के वृहद स्वरूप ने यही
साबित किया कि लालच की प्यास आदमी को न केवल कलाकार बनाती है, बल्कि
लोमड़ी-चातुर्य का दान देकर प्रतिभावान भी बनाती है ।
सुना है कि नेताओं को यह विज्ञापन खूब भा रहा है
। उन्होंने तो शरबत पीना भी शुरू कर दिया है, ताकि लालच की
प्यास और भड़के । लकीर का फकीर होने से विकास नहीं होता । लालच अब बला नहीं, एक कला है ।
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