महाराज सियार दरबार-ए-खास में खास चर्चा का
चरखा चलाने-चलवाने में मशगूल हैं । उनके सामने कई विभागों के मंत्री अपनी-अपनी
कुर्सियों पर चिपके हुए हैं । बड़बड़ विभाग के मंत्री बड़बोला खान और नगाड़ा विभाग
के मंत्री खास तौर से उपस्थित हैं । संभव है कि लोक इन विभागों के बारे में
अनभिज्ञ हो । अत: इनके बड़प्पन की बड़ाई निहायत ही जरूरी है ।
बड़बड़ विभाग का काम ऊल-जलूल बकते रहना है ।
इस काम में बड़बोला खान ने ऐसी लकीर खींच दी है, जिसके पार जाना किसी भी अन्य के
लिए लगभग असंभव है । बड़बड़ करने का फायदा यह होता है कि लोक का ध्यान सदा विपक्षी
की गिरेबां में अँटका रहता है और अपने पास मनमानी करने का मौका-ही-मौका होता है ।
नगाड़ा विभाग का काम सदा नगाड़ा बजाते रहना है, सरकार के हर उस काम के लिए, जो
उसने कभी किया ही नहीं । अगर गलती से कोई काम हो गया हो, तो उसके लिए इतना नगाड़ा
बजाना है कि लोक झेलते-झेलते बहरा हो जाए ।
खैर, चर्चा का विषय राजभवन है । बड़बोला खान
के अनुसार राजभवन का मुखिया लोकतंत्र से खिलवाड़ नहीं कर सकता । ऐसा करने के लिए
राजभवन को किसी भी खेत से मूली सप्लाई नहीं होती । खिलवाड़ करने का एकमात्र अधिकार
राजमहल को है । वोट के लिए राजा को लोक के दर पर नाक रगड़ने पड़ते हैं । अत: उसे नाकों चने चबवाने का
हक सिर्फ राजा को है । इसके अलावा लोकतंत्र से खिलवाड़ करने के लिए कुछ संसाधन
अत्यन्त आवश्यक होते हैं । लोक को धमकाने के लिए कर्मठ समाजसेवियों की पूरी फौज
चाहिए होती है और महाराज के लकड़बग्घे इस काम के लिए सदा तैयार बैठे रहते हैं । मुर्गे
की दावत हो, देशी-विदेशी की टकराहट हो, पैसे की खनक हो, अनाजों-कपड़ों-सामानों का
लालच हो-इन सभी के लिए दो-नंबरी कमाई की जरूरत होती है ।
ठीक फरमाया आपने-नगाड़ा मंत्री बात को आगे
बढ़ाते हैं, अपने महाराज एक नंबर पर डटे हुए हैं, क्योंकि उनके पास दो नंबर की
कमाई है । राजमहल का मुकाबला राजभवन कदापि नहीं कर सकता । मसूर की दाल खाने वाला
मुँह महाराज से गलजोरी करने चला है, यह तो हद ही हो गई हुजूर !
एक चीज और है-इस बार महाराज की वाणी गूँजती
है,परंपरा भी हमारे ही साथ है । हमारे पूर्वज भी लोकतंत्र से खिलवाड़ किया करते थे
। अत: यह साबित होता है कि लोकतंत्र से खिलवाड़ का विशेष अधिकार हमारे पास है ।
वाह हुजूर, वाह, क्या कह दिया आपने! सभी महाराज की प्रशंसा
में कसीदे पढ़ते हैं और चर्चा यहीं समाप्त होती है ।
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