जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

लोकतंत्र से खिलवाड़ का हक किसे है

              
       
   महाराज सियार दरबार-ए-खास में खास चर्चा का चरखा चलाने-चलवाने में मशगूल हैं । उनके सामने कई विभागों के मंत्री अपनी-अपनी कुर्सियों पर चिपके हुए हैं । बड़बड़ विभाग के मंत्री बड़बोला खान और नगाड़ा विभाग के मंत्री खास तौर से उपस्थित हैं । संभव है कि लोक इन विभागों के बारे में अनभिज्ञ हो । अत: इनके बड़प्पन की बड़ाई निहायत ही जरूरी है ।
   बड़बड़ विभाग का काम ऊल-जलूल बकते रहना है । इस काम में बड़बोला खान ने ऐसी लकीर खींच दी है, जिसके पार जाना किसी भी अन्य के लिए लगभग असंभव है । बड़बड़ करने का फायदा यह होता है कि लोक का ध्यान सदा विपक्षी की गिरेबां में अँटका रहता है और अपने पास मनमानी करने का मौका-ही-मौका होता है । नगाड़ा विभाग का काम सदा नगाड़ा बजाते रहना है, सरकार के हर उस काम के लिए, जो उसने कभी किया ही नहीं । अगर गलती से कोई काम हो गया हो, तो उसके लिए इतना नगाड़ा बजाना है कि लोक झेलते-झेलते बहरा हो जाए ।
   खैर, चर्चा का विषय राजभवन है । बड़बोला खान के अनुसार राजभवन का मुखिया लोकतंत्र से खिलवाड़ नहीं कर सकता । ऐसा करने के लिए राजभवन को किसी भी खेत से मूली सप्लाई नहीं होती । खिलवाड़ करने का एकमात्र अधिकार राजमहल को है । वोट के लिए राजा को लोक के दर पर नाक रगड़ने पड़ते हैं । अत: उसे नाकों चने चबवाने का हक सिर्फ राजा को है । इसके अलावा लोकतंत्र से खिलवाड़ करने के लिए कुछ संसाधन अत्यन्त आवश्यक होते हैं । लोक को धमकाने के लिए कर्मठ समाजसेवियों की पूरी फौज चाहिए होती है और महाराज के लकड़बग्घे इस काम के लिए सदा तैयार बैठे रहते हैं । मुर्गे की दावत हो, देशी-विदेशी की टकराहट हो, पैसे की खनक हो, अनाजों-कपड़ों-सामानों का लालच हो-इन सभी के लिए दो-नंबरी कमाई की जरूरत होती है ।
   ठीक फरमाया आपने-नगाड़ा मंत्री बात को आगे बढ़ाते हैं, अपने महाराज एक नंबर पर डटे हुए हैं, क्योंकि उनके पास दो नंबर की कमाई है । राजमहल का मुकाबला राजभवन कदापि नहीं कर सकता । मसूर की दाल खाने वाला मुँह महाराज से गलजोरी करने चला है, यह तो हद ही हो गई हुजूर !
   एक चीज और है-इस बार महाराज की वाणी गूँजती है,परंपरा भी हमारे ही साथ है । हमारे पूर्वज भी लोकतंत्र से खिलवाड़ किया करते थे । अत: यह साबित होता है कि लोकतंत्र से खिलवाड़ का विशेष  अधिकार हमारे पास है ।

   वाह हुजूर, वाह, क्या कह दिया आपने! सभी महाराज की प्रशंसा में कसीदे पढ़ते हैं और चर्चा यहीं समाप्त होती है ।

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