साधो, कई राज्यों में चुनाव सिर पर हैं, मगर कहीं से भी असहिष्णुता-राग के
छिड़ने की ध्वनि कानों में रस नहीं घोल रही थी । मन उदास हो चला था कि किसी तानसेन
ने तान छेड़ दी । इस बार शुरुआत हैदराबाद घराने से हुई है । यह राग कोई ऐसा-वैसा
राग नहीं है, जिसे हमेशा गाया जाए । यह एक खास राग है, जिसे खास मौकों पर ही गाया
जाता है । जिस तरह बहुत से मेढक सम्मिलित भाव से टर्र-टर्र करते हुए बरसाती-राग
गाते हैं, उसी तरह असहिष्णुता-राग में भी बहुत से लोगों का सम्मिलन इसे परिणाम की
दृष्टि से अति प्रभावी बना देता है ।
असहिष्णुता-राग छेड़ने की प्राथमिक जिम्मेदारी सत्ता या सत्ता के सपने से
दूर कर दिए गए राजनेताओं तथा सत्ता की निकटता का सुख भोगने वाले, किन्तु अब वंचित
कर दिए गए बुद्धिजीवियों की है । असहिष्णुता से सबसे अधिक पीड़ित यही दो
जीव-प्रजातियाँ हैं । जो प्रजाति वर्षों तक सत्ता पर सवार रही या सत्ता रुपी ड्रीम
गर्ल के लिएकहीं तो मिलेगी, कभी तो मिलेगी...आज नहीं तो कल गाती रही, अचानक
वह बेदखल कर दी गई । बेदखल करने वाली सत्ताधारी जीव-प्रजाति की तरफ से यह
असहिष्णुता नहीं, तो और क्या है ? इससे पीड़ित जीव यह राग नहीं गाएगा, तो क्या भांगड़ा करेगा ।
इधर बुद्धिजीवी की बुद्धि पर लोग शक करने लगे हैं । उन्हें लगने लगा है कि
इनके पास बुद्धि नहीं है । ये तो केवल रिमोट से ऑपरेट होने वाले जीव हैं । क्या
सचमुच ऐसा ही है ? कदापि नहीं । जुगाड़ तकनीक में इन्हें महारत हासिल है । किताबों की
सरकारी खरीद से लेकर सत्ता की निकटता के लाभ से होते हुए पुरस्कारों की बंदरबाँट
तक जुगाड़ का उपयोग होता है । जुगाड़ के लिए एकमात्र संसाधन बुद्धि ही होती है ।
दुख की बात है कि इस जीव-प्रजाति के मौज-मजे के दिन लद गए हैं, जो बिना बुद्धि के
भी समझने-देखने पर असहिष्णुता ही दिखाते हैं ।
मीडिया भी इस राग का आंशिक तानसेन होता है । सुर में सुर मिलाकर उसे बेसुरा
बनाना उसी का दायित्व है । शोर और हंगामें ही आजकल आमजन को कर्णप्रिय लगते हैं ।
इन के अलावा माहौल बनाने की जिम्मेदारी इन पर कान धरने वाले लोगों तथा घटनाओं की
भी है । मरने-मारने की घटनाएं तेजी से घटित हों । इतने बड़े देश में असहिष्णुता-राग
के सहयोग में दस-बीस मर ही गए, तो कौन सी आफत आ जाएगी । कृपया सहयोग करें । कहीं
इसमें बहुत देर न हो जाए ।
आपकी लेखनी को सदर नमन.
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