साधो, सुना है कि अमेरिका में प्रतिभा की बड़ी पूछ है । हमारे देश में भी
प्रतिभा की ही पूछ होती है । समाजवादी लोग तो इसके अलावा किसी और चीज को घास तक
नहीं डालते । प्रतिभा-निर्धारण का अमेरिकी मानदंड अति संकीर्ण है । सुव्यवस्थित,
स्व-अनुशासन और स्व-परिश्रम से पढ़े-लिखे लोगों को ही वह योग्य और प्रतिभावान
मानता है । इस तरह से प्राप्त योग्यता को छोड़कर अन्य सारी चीजें हमारे यहाँ
प्रतिभा की श्रेणी में आती हैं । अत: इस देश का प्रतिभा-निर्धारण का मानदंड
वास्तव में बहुत व्यापक है ।
शिक्षा का क्षेत्र, जहाँ योग्यता और प्रतिभा की सख्त जरूरत होती है, हम
केवल प्रतिभाशाली लोगों का ही चयन करते हैं । यह तो स्पष्ट ही है कि हमारे अपने
व्यापक मानदंड हैं । एक शिक्षक के लिए सबसे पहली योग्यता यह है कि वह उच्च कोटि का
नकलनवीस हो । नकल करके पास हुआ हो, नकल करने की सूक्ष्म-से-सूक्ष्म तकनीक को जानता
हो, नकल में इनोवेशन को सदैव प्रयासरत हो तथा नकल के क्षेत्र में हो रही खोजों से
अपने को अपडेट रखता हो । हमारे यहाँ यूँ ही नहीं कहा गया है कि नकल के लिए अकल की
जरूरत होती है । एक नकलनवीस शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों में नकल की प्रतिभा की बुनियाद
रख सकता है ।
एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति शिक्षक बनने के अयोग्य होता है, क्योंकि वह
उचित-अनुचित, ईमानदार-भ्रष्ट, विश्वास-धोखा आदि के बीच भेद करने लगता है । समाजवाद
इन भेदों को स्वीकार नहीं करता । वह सभी को एक नजर से देखता है । इस देश को
समाजवाद की जरूरत है, इसलिए पढ़े-लिखे व्यक्ति अयोग्य साबित होते हैं ।
जुगाड़ और सेवा-भाव में पारंगत होना एक अन्य योग्यता है । पहले शिक्षकों की
नियुक्ति प्रबंधक या स्थानीय नेताओं के हाथ में हुआ करती थी । सेवा-भाव से समर्पित
या जुगाड़ का धनी व्यक्ति मेवा की मलाई मार लेता था । नियुक्त करते समय यह नहीं
देखा जाता था कि बंदा पढ़ा-लिखा भी है या नहीं । अगर देख लिया जाता, तो समाज में
प्रचलित उस कहावत का क्या होता कि शिक्षक बनने के लिए पढ़ने-लिखने की जरूरत नहीं
होती है । अब नियुक्ति के तरीके बदल गये हैं । मेरिट देखा जाता है या परीक्षा होती
है । यह परीक्षा वास्तव में इस बात की जाँच के लिए होती है कि सामने वाला जुगाड़
में कितना ‘मेरिटवान’
है ।
अब अगर इतनी योग्यता न रखने वाला व्यक्ति प्रतिभा-पूछक अमेरिका में चला
जाए, तो इसमें अपने देश का क्या कसूर है ?
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