जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

मास्टरस्ट्रोक पर राजमाता की चिंता

              
   भूतपूर्व राजमाता लोमड़ी चिंता-शिविर में विराजमान हैं । अध्यक्षा की कुर्सी सुशोभित है उनसे । उनके पद-पंकज के एक तरफ युवराज बैठे हुए हैं । वे लगातार अपने कुर्ते की आस्तीन को चढ़ाए जा रहे हैं । दूसरी तरफ अ-भूतपूर्व प्रधानमंत्री सियार सदा की भाँति समाधि की मुद्रा में हैं । उनके एक-एक सफेद बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं । वे चाशनी में ईमानदारी के पगकर इस उज्ज्वल रूप को प्राप्त हुए हैं । उनकी ईमानदारी इतनी थी कि उनके शासन-काल में घोटालों के सभी रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए । समाधि इतनी जबर्दस्त रही कि वह कभी नहीं टूटी । इन दोनों के अलावा बहुत से पूँछ हिलाने वाले प्राणी मौजूद हैं ।
   चिंता इस बात को लेकर है कि इस वन का वर्तमान प्रधानमंत्री दीमो नामक प्राणी क्रिकेट की क्रीज पर अड़ियल भाव से डटा हुआ है और स्ट्रोक-पे-स्ट्रोक मारे जा रहा है । अभी हाल ही में उसने वो मास्टरस्ट्रोक मारा है कि बॉल सीधे पाक वन में जाकर गिरी है । बॉल वहाँ गिरी है और स्ट्रोक का आघात राजमाता की छाती में आकर लगा है । उसकी जय-जयकार के नाद दिल में आह्लाद पैदा नहीं कर रहे ।
   तभी खबरी खरगोश शिविर में प्रवेश करता है । राजमाता की चरण-वन्दना के बाद खुश होकर कहता है-माता, यह हमारे वन के लिए गर्व की बात है कि हमारी तरफ से जबर्दस्त स्ट्रोक खेला गया ।
   काश, यह स्ट्रोक खेलने वाले हमारे युवराज होते, पर हम उसके स्ट्रोक की सराहना नहीं कर सकते । यह हमारे अस्तित्व का सवाल है ।
   पर...पंचशील का सहअस्तित्व हमारी ही विचारधारा है माता । हम उससे...। राजमाता बीच में ही बोल पड़ती हैं-वह थीन वन के लिए था । उसने हमारी जो जमीन कब्जे में ले ली, वह उसके पास रहे । उसकी जो जमीन हम कब्जा नहीं कर सके, वह हमारे पास रहे । सहअस्तित्व के कारण इस सच्चाई को पचाना हमारे लिए आसान हो गया । परन्तु यहाँ पर उस दीमो प्राणी के अस्तित्व को स्वीकार करना...माने अपने अस्तित्व को नकारना ।
   खबरी खरगोश को यह बात हजम नहीं होती । वह कह उठता है-पर जानकार लोगों का मानना है कि इससे अपने वन का कद ऊँचा हुआ है । हम और मजबूत होकर उभरे हैं ।
   यही तो दुख की बात है कि वह आउट नहीं हो रहा...छक्के-पे-छक्का लगाए जा रहा है । पर उसने यह छक्का लगाने से पहले हमसे कोई राय-मशविरा नहीं किया । यह सरासर वन के प्राणियों का अपमान है ।
   परन्तु राजमाता, वह इस वन का स्वाधीन प्रधानमंत्री है । वह हर बात में...
   लेना ही होगा । इस वन की आजादी हमारी वजह से है । हम हैं, तभी वन है । उसके हर अच्छे काम का विरोध करना ही होगा ।

   सभी अपनी कमर सीधी करते हुए राजमाता की हाँ में हाँ मिलाते हैं । खबरी खरगोश खबरों की खाक छानने के लिए बाहर प्रस्थान करता है । 

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