जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

विपदा में दोनों मिले-माया और...

                
   साधो, विपदा आने पर बहुत से लोग दुख के भँवर में डूब जाते हैं । कुछ ऐसे महान लोग भी होते हैं, जो विपदा आने पर खुशी के मारे झूमने लगते हैं । दुख में डूबने वाले लोग भाग्यवादी किस्म के होते हैं । विपदा आने पर भाग्य को कोसना ही उनका एकमात्र काम होता है । खुशी से झूमने वाले लोग कर्मयोगी टाइप के होते हैं । विपदा के समय अपनी कर्म- साधना से योग को प्राप्त होते हैं । यह योग राम से नहीं, बल्कि राम की माया से होता है । माया से योग कुछ खास कर्म के बलबूते होता है ।
   दुख से पीड़ित लोग विपदा के समय राम से निकटता की अनुभूति करने लगते हैं । इस घड़ी में उनके अलावा कोई और मानसिक आश्रय दिखाई नहीं देता । केवल मन में स्मरण मात्र से एक अजीब उर्जा का संचार होता है । कई मानवीय दिशा-निर्देशों की भी प्राप्ति होती है । पड़ोसी-धर्म जाग उठता है । आज तक जो पड़ोसी फूटी आँखों नहीं सुहाता था, उसके प्रति दया की भावना उमड़ने लगती है । उसका दुख अपना दुख नजर आता है । उसे हर तरह से सहायता पहुँचाने की बेसब्री मन में घुमड़ने लगती है ।
   उसे प्रकृति की सत्ता का एहसास होता है । यह भी एहसास होता है उसे कि प्रकृति से ऊपर कोई नहीं । वह कितना भी दावा करे प्रकृति को वश में करने का, मगर खोखले दावे तो खोखले ही होते हैं । मानव की शक्ति की एक सीमा है, वहीं प्रकृति की शक्ति अपार है । इसी समय उसे सरकार की घोषित-अघोषित शक्ति का भी पता चलता है । जनता से वह कितनी जुड़ी हुई है-इसका भी भांडा फूटता है ।
   जाति, धर्म और अन्य मानव-निर्मित दीवारें स्वत: चकनाचूर हो जाती हैं । बाहर विपदा की गंदगी होती है, तो मन के अंदर साफ-सफाई हो जाती है । सभी अपने नजर आने लगते हैं । विपदा के बावजूद मानव संपदा पर भरोसा और गौरव बढ़ जाता है । इसी समय कर्मयोगियों का भरोसा भी सेंसेक्स की तरह उछाल मारता है । जैसे-जैसे सरकारी व अन्य राहत में तेजी आती जाती है, उनके राहत का सेंसेक्स भी उँचाईयाँ छूने लगता है । कर्मयोग जितना प्रबल होता है, राहत उतनी ही प्रबल होती है ।

   राम और माया की प्राप्ति विपदा के समय न हो, तो उसे विपदा कदापि नहीं मान सकते । भाग्यवादी लोगों को राम-नाम की प्राप्ति होती है और कर्मवादी माया को प्राप्त करते हैं । माया मिली न राम वाली कहावत विपदा के समय चरितार्थ नहीं होती, क्योंकि राम का भी आभास होता है और माया तो साक्षात दर्शन देती है । अभी चेन्नई की विपदा ने इस बात को साबित नहीं किया ?

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