जीवन व समाज की विद्रुपताओं, विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी नजर । यही तीखी नजर हास्य-व्यंग्य रचनाओं के रूप में परिणत हो जाती है । यथा नाम तथा काम की कोशिश की गई है । ये रचनाएं गुदगुदाएंगी भी और मर्म पर चोट कर बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी करेंगी ।

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

महाभारत के चक्रव्यूह में भारत

             
   हमारी मान्यता है कि भारत में कभी महाभारत हुआ था । वैसे कुछ लोग महाभारत से महान भारत का अर्थ निकालते हैं । महान वही होता है जो महाभारत पैदा कर दे । भारत ने महाभारत की सौगात इस धरती को दी, अत: महान कहलाने का हक उससे कोई नहीं छीन सकता । महानता का क्षरण न हो, इसलिए महाभारत का चलते रहना आवश्यक है । इस मंत्र-वाक्य को भारत के राजनीतिज्ञों ने पूर्ण आस्था के साथ आत्मसात कर लिया है और महाभारत चालू आहे का नया दृश्य निरंतर मंचित किया जा रहा है ।
   वह वाला महाभारत कुरूक्षेत्र में लड़ा गया था । यह वाला महाभारत इन्द्रप्रस्थ में जारी है । इन्द्रप्रस्थ पांडवों के राज्य की राजधानी थी, मगर आज के इन्द्रप्रस्थ में पांडव नहीं हैं । वह वाला महाभारत कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया था । यह वाला कौरवों और कौरवों के बीच लड़ा जा रहा है । उस वाले महाभारत के लिए कुरूक्षेत्र का खुला मैदान था । इस वाले के लिए संसद का बंद मैदान है ।
   जब वह महाभारत लड़ा जा रहा था, तो कौरवों की तरफ से धृतराष्ट्र भी हुआ करते थे । वे आँख से अंधे अवश्य थे, पर उनके कान सही-सलामत थे । वे हमेशा अनुचित बात ही नहीं सुना करते थे । कई बार उन कानों ने उचित बातों को भी सुना । उनके मुँह से पांडवों के लिए कटु बचन ही नहीं निकले, वरन मीठे बोलों के झरने भी फूटे । आज के धृतराष्ट्र न केवल आँखों से अंधे हैं, बल्कि कानों से भी बहरे हैं । इसलिए कुछ देखने और सुनने का सवाल ही नहीं उठता । उनके पास मुँह है, जो सुरसा की तरह खुला रहता है । सब कुछ खाए जाओ और कुछ भी बोले जाओ ।
   एक विदुर भी थे कौरवों की तरफ से उस समय । समय कैसा भी आया, पर उन्होंने अनुचित को उचित नहीं कहा । सत्य के अपने धर्म की सदैव रक्षा करते रहे । इस बात ने कौरवों पर कम प्रभावी ही सही, एक तरह का अंकुश लगाए रखा । दुर्योधन भी एक था उस काल में । उसकी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं थीं । आज के महाभारत में विदुर कहीं दिखाई नहीं देते और दुर्योधनों की संख्या हजारों में है । उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की तलहटी में आर्थिक महत्वाकांक्षाओं की कोरल बस्ती फैली हुई है ।
   चक्रव्यूह की रचना महाभारत का अनिवार्य अंग है । उस वाले महाभारत में अर्जुन की अनुपस्थिति में शेष पांडवों को फँसाने के लिए ऐसा किया गया था, किन्तु इस वाले में जो चक्रव्यूह रचा गया है, उसमें एक अकेले निहत्थे अभिमन्यु की जगह करोड़ों निहत्थे आम जन फँसे हुए हैं । बेशर्मी-रूपी-विष बुझे तीरों की बौछार जारी है । चक्रव्यूह-भेदन का कोई मंत्र हो, तो कृपया जरूर बताइए । 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

लोकप्रिय पोस्ट