महाराज नीले सियार आज प्रफुल्लित मुद्रा में हैं । अब जाकर राजसिंहासन का
पूरा लुत्फ आने लगा है । राज-सत्ता का जब तक पूरा उपयोग न हो, तब तक कैसा लुत्फ ! अभी मखमली खयालों में न जाने कब तक खोए
रहते कि प्रधानमंत्री मंकी दरबार में नमूदार होते हैं । घुटनों तक झुकते हुए, ‘महाराज का इकबाल बुलंद हो । महाराज आज
इतने प्रसन्न..कहीं दखल तो नहीं दे दिया हमनें ?’ इतना कहकर प्रधानमंत्री बैठ जाते हैं ।
‘ऐसी
कोई बात नहीं मंकी जी’, महाराज अब भी प्रसन्न हैं । वे आगे कहते हैं, ‘बताइए, प्रजा सियारों का क्या हाल है ?’
‘प्रजा
अब भी आपके पीछे पागल है महाराज, पर वे तीनों नीले सियार...’
‘अपनी
आदत से बाज नहीं आ रहे,’ महाराज बीच में ही टोकते हैं, ‘शरम आनी चाहिए उन्हें । आम आदमी होकर
सत्ता के लिए इतने लालायित !’
‘यही
आरोप वे हम पर लगा रहे हैं ।’
प्रधानमंत्री बात को आगे बढ़ाते हैं, ‘आश्चर्य है कि उन्हें
इतना तक नहीं पता कि अब हम आम आदमी नहीं रहे । सत्ता-प्राप्त व्यक्ति खास हो जाता
है ।’
‘शाबाश प्रधानमंत्री जी, आपने
मेरे मुँह की बात छीन ली ।’ वे थोड़ी देर रुककर पुन: कहते हैं, ‘हमें याद आता है भ्रष्टाचार के विरुद्ध
वह आंदोलन, जिसका नेतृत्व गुरु अन्ना कर रहे थे । कलयुग में शिष्य का ही यह
दायित्व है कि गुरु को गुड़ मिले न मिले, पर शिष्य चीनी को अवश्य प्राप्त हो जाए ।
गुरु जी ने तो आश्रम पकड़ ली, पर हम आम आदमी को कैसे छोड़ देते !’
तभी खबरी खरगोश दरबार में प्रवेश करता है । ‘महाराज की जय हो,’ वह घुटनों तक झुकता है और आगे
कहता है, ‘हुजूर, आम आदमी का कोई भरोसा नहीं । कुछ प्रजा जन
आपके खिलाफ बोलने लगे हैं । उधर वे तीनों विद्रोही डटे हुए हैं मैदान में । कहते
हैं कि आप एक जोकपाल का सृजन करने जा रहे हैं ।’
‘खबरी, हमारा यह दायित्व है कि हम प्रजा का मनोरंजन करते रहें । साथ ही हम इतने मूर्ख
भी नहीं कि महिषासुर का सृजन कर दें, जो हमीं को भस्मीभूत करने
के लिए दौड़ पड़े ।’
‘क्या खूब कहा हुजूर आपने ।’ खबरी गद्गद् हो उठता है । उधर प्रधानमंत्री भी इसी अवस्था में आकर पूछते
हैं, ‘आगे के लिए क्या आदेश है महाराज ?’
‘उन विद्रोही
सियारों को चिल्लाने दीजिए, पर प्रजा सियारों से थोड़ी दूरी बनाकर रखा जाए । यह
सत्ता का तकाजा है । सत्ता अपनी जगह रहे और आम आदमी अपनी जगह ।’
प्रधानमंत्री राजाज्ञा-पालन के
लिए उठते हैं और खबरी खरगोश अगली खुफिया जानकारी के लिए बाहर निकलता है ।
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