साधो, लोग उसे समाजवादी कहते हैं । वह भी अपने को समाजवादी ही मानता है ।
उसका मानना है कि समाजवाद के लक्षण अपने अंदर वह तभी से महसूस करने लगा था, जब वह
पहली बार भैंस पर बैठा था । भैंस की पीठ से ही उसे गरीब-गुरबा की गुरबत और
दुख-दर्द के दर्शन होने लगे थे । तभी से उसने ठान लिया कि पूरे समाजवाद को अपने
अंदर उतारकर ही दम लेगा ।
मन-वचन-कर्म से समाजवादी बनने के लिए गरीब-गुरबा की आसक्ति को छोड़कर सत्ता
रुपी समाधि की शरण में जाना एक अनिवार्य विधान है । जब आप खुद ही गरीब-गुरबा बने
रहेंगे, तो गरीब-गुरबों की सेवा क्या खाक करेंगे ! समाजवादी वही होता है, जो तन-मन-धन से
गरीबों की सेवा करे । तन-मन तो अपनी जगह है ही । जरूरत धन को अपनी जगह लाने की
होती है । धन सत्ता के गोमुख से स्वत: नि:सृत होने लगता है । चारों तरफ चारागाह
ही चारागाह बनने लगते हैं । अत: उसने गरीब-गुरबों के लिए अपनी गरीबी का बलिदान कर दिया तथा
एड़ी-चोटी का जोर लगाकर सत्ता-सिंहासन का काँटों भरा ताज पहन लिया । उनके लिए
घोटाले तक किए । घोटाला करते वक्त भी वह भैंस को नहीं भूला । सच्चा समाजवादी अपनी
जड़ों से कभी नहीं उखड़ता ।
आधी आबादी का ध्यान रखना भी समाजवाद का ही काम है । वह सदियों से दबाई गई
है । अधिकार-विहीनता तथा वर्जनाओं का बोझ न जाने कब से ढो रही है । इनके उत्थान के
लिए समाजवाद आगे आया...मतलब वह आगे आया । उसने अपने बाद अपनी पत्नी को राजसिंहासन
पर बिठा दिया । एक योग्य व्यक्ति को तो कोई भी सिंहासन पर बिठा सकता है, किन्तु एक
अयोग्य को राजगद्दी सौंपने का काम सच्चा समाजवादी ही कर सकता है, क्योंकि
योग्य-अयोग्य, ईमानदार-भ्रष्ट, सुशासन-कुशासन—सब उसकी नजर में एक समान हैं । अपनी
पत्नी को राजा बनाकर उसने समूची स्त्री जाति का महिमामंडन तथा सशक्तिकरण कर डाला ।
इतना सबकुछ करने के बाद अब लोकतंत्र का फर्ज बनता है कि वह उसके पुत्रों को
सिर झुकाकर अंगीकार करे । बाल की खाल कदापि न निकाले । इन पुत्रों के माध्यम से यह
समूचे युवाओं का सम्मान है । बूढ़ों के बाद युवाओं को स्थान देना समाजवाद का तकाजा
है । इन पुत्रों को अवतरित करके उसने समाजवाद को और मजबूत किया है । दसेक वर्षों
से उसके राज्य में समाजवाद पर छाया धुंध अब मिटने लगा है ।
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