महाराज सियार इस वक्त चिंता के भँवर में हैं । पिछले कुछ दिनों से
अजीब-अजीब खबरें आ रही हैं । आरोप-दर-आरोप लग रहे हैं और कुछ उसी अनुपात में
प्रत्यारोप भी गुंजित हो रहे हैं । राजसिंहासन पर महाराज के पहलू बदलते ही
प्रधानमंत्री शेर अलर्ट हो जाते हैं और राज-वाणी की प्रतीक्षा करते हैं ।
‘
कुछ पता चला प्रधानमंत्री जी ? आखिर ये वापसी-कांड है क्या ?’ महाराज प्रधानमंत्री की ओर मुखातिब
होते हैं ।
‘हाँ,
महाराज,’ सिर
झुकाते हुए, ‘बहुत
कुछ पता चला है । अभी तक तेरह उल्लूओं, पच्चीस कौवों और सात लोमड़ियों ने
अपने-अपने सम्मान वापस किए हैं ।’
‘मगर
क्यों ?’
कौन सा गुनाह किया था उन्होंने कि सम्मान वापस करना पड़ा ?’ महाराज की जानने की इच्छा और प्रबल हो
उठती है ।
‘दो
बातें हैं महाराज । एक, उन्हें अचानक लगने लगा है कि वे उस सम्मान के पात्र नहीं
हैं । अतीत ने शायद उन्हें कुछ ज्यादा ही सम्मान दे दिया था । दो, कोई असहिष्णुता
है, जो उनके कान फूँक रही है ।’
‘यही
तो...मैंने पहले भी कहा था कि असली कारण को मेरे सामने हाजिर किया जाए ।’ महाराज का चेहरा तनिक लाल हो उठता है
।
‘खबरी
खरगोश उसे लाता ही होगा । मैंने इशारा कर दिया है ।’ प्रधानमंत्री महाराज को आश्वस्त करते
हुए कहते हैं ।
तभी खबरी खरगोश दरबार-ए-खास में प्रवेश करता है और घुटनों तक झुकते हुए, ‘हुजूर की जय हो । असहिष्णुता नहीं मिली
महाराज ।’
‘मगर
यह तुम्हारे पीछे कौन खड़ी है ?’ पीछे खड़ी महिला को देखते हुए महाराज का
प्रश्न उभरता है ।
‘यह
सहिष्णुता है महाराज’, खबरी खरगोश जवाब देता है, ‘हर गली-हर कूचा, क्या गाँव-क्या शहर—बस
यही और यही दिखाई दी मुझे । असहिष्णुता इसी की सौतेली बहन है । अत: इसे ही पकड़ लाया ।’
‘सच-सच बता, कहाँ है असहिष्णुता ?’ महाराज की आवाज कठोर हो उठती है ।
‘महाराज,
सच्चाई यह है कि उसके और मेरे बीच छत्तीस का आँकड़ा है । जो वह करती है, वह मैं
नहीं करती और जो मैं करती हूँ, वह तो वह कदापि नहीं करती । अत: वह कहीं भी हो, मेरी बला से ।’ सहिष्णुता
अभी इतना ही कह पाती है कि महाराज बीच में ही बोल उठते हैं, ‘मगर वह कहीं तो होगी !’
‘अवश्य होगी महाराज, वह तो केवल
उन लोगों के दिमाग में रहती है, जिन्हें या तो खुराफात करना है या अपना कोई
हित-साधन करना है ।’
अजीब ठिकाना है उसका । वे
असहिष्णुता से निपटने के लिए प्रधानमंत्री को आवश्यक बैठक बुलाने का
निर्देश देते हैं ।
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