आँखों
में है स्याही कैसी
कैसी
मदिरा और साकी है,
अभी
सांझ होने वाली है
पूरी
रात अभी बाकी है ।
आँखों
में जादू उतरा है
तन
जैसे मय का प्याला,
कितनी
अब तक पी चुके
यह
खिंची हुई हाला ।
सच बतलाओ-कैसी मदिरा है
किस
धरती पर खिंची हुई,
अब
तक जो भी देखी मैंने
केवल
मयखानों में सजी हुई ।
पर
जग को मरते देखा है
तुममे
तेज कहाँ से आया,
एक
अग्नि जलाती जग को
दूजी आग कहाँ से पाया ।
जारी...
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
शुक्रिया...
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जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है
एक नज़र मेरे पोस्ट्स पर भी डालिएगा उम्मीद है आपको पसंद आएँगी
merealfaaz18.blogspot.com
शुक्रिया । जरूर आपके पोस्ट को भी देखेंगे ।
हटाएंwaah ... bahut lajawab likha hai ... kamaal ...
जवाब देंहटाएंआपको पसंद आया, यह जानकर अच्छा लगा । धन्यवाद...
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