चूहों की सालाना आम बैठक आहूत की गई थी । तमाम
पदाधिकारी और सिविल सोसायटी के चूहे अपने-अपने तर्कों-कुतर्कों के साथ अपने लिए
निर्धारित सीटों पर ठसक और कसक के साथ शोभा को प्राप्त हो रहे थे । ठसक इस बात का...कि
वे हाई प्रोफाइल चूहे हैं और उनके बैठने के लिए सजी-धजी कुर्सियों की कतार है । आम
चूहों को देखिए । वे इस वक्त जमीन पर धूल-धूसरित हुए पड़े हैं । कसक इस बात को
लेकर...कि उनके पास अब पहले वाली इज्जत-लिज्जत नहीं रही । आम जन इज्जत सौंपता था
तथा हुकूमत की तरफ से मलाई वाले पद सौंपे जाते थे । अब तो ये सारी चीजें सपना बन
गई लगती हैं । गिले-शिकवे चाहे जो भी हों, इस वक्त हर तरफ एक-जुटता का ही आलम था ।
मनुष्यों की तरफ से कुछ डराने वाली खबरें आ रही हैं । चूहों के अस्तित्व पर ही
प्रश्नचिह्न की तलवार लटक गई है ।
सरदार के आते ही बैठक को आगे बढ़ाने की हरी
बत्ती स्वतः जल उठी । गणेश-वंदना के बाद सरदार बोला, ‘हाँ तो जासूस-प्रमुख जी,
क्या खबर है आपके पास? क्या कुछ नया-नवीन घटित हुआ है पिछले दिनों?’
‘नया तो बहुत कुछ घटा है सरदार, पर एक चीज
हमारे लिए चिंता की वजह बन सकती है ।’ जासूस-प्रमुख के चेहरे से सामान्यता गायब थी
।
‘क्यों ऐसी क्या बात हो गई? कहीं सिविल
सोसायटी के चूहे असहिष्णुता वाला गेम तो नहीं खेलने लगे? या फिर आम चूहों ने बगावत
कर दिया है?’ पूछते हुए सरदार के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें खिंच गईं ।
‘असहिष्णुता वाला गेम खेलना चूहों के बस के बाहर
है सरदार ।’ इस बार सिविल सोसायटी का एक प्रतिनिधि चूहा उठते हुए बोला, ‘यह तो
मनुष्यों का पसंदीदा गेम है । वे तो अक्सर अपनी जरूरत और लाभ-हानि के मुताबिक इसे
खेलते रहते हैं ।’
‘मगर उनके खेलने से हमें क्या परेशानी है?’ सरदार
ने कुछ झुँझलाते हुए कहा ।
‘परेशानी यह है हुजूर कि असहिष्णुता की वह
गेंद उन्होंने हमारी तरफ उछाल दी है ।’ उप सरदार ने पहली बार अपनी चुप्पी तोड़ी थी
।
‘मैं कुछ समझा नहीं ।’ सरदार की झुँझलाहट तनिक
और बढ़ गई थी । वह तेज आवाज में बोला, ‘पहेलियाँ बुझाना बंद कीजिए आप लोग और
स्पष्ट बताइए कि बात क्या है?’
‘सरदार, एक देश में एक चूहे की कीमत बीस हजार
लगाई गई है ।’ जासूस-प्रमुख ने वास्तविक बात को सरदार के सम्मुख रख दिया ।
‘यह तो खुशखबरी है हमारे लिए ।’ सरदार चहकते
हुए बोला, ‘और आप लोग हैं कि चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं । अरे, ऐसा कहिए कि
हमारा रुतबा बढ़ गया है । कीमत कोई ऐसे ही नहीं बढ़ जाती ।’
‘लेकिन यह हमको पकड़ने की कीमत है । मनुष्य ने
हमें समाप्त करने के लिए यह दाँव चला है ।’ एक आम चूहे की पीड़ा बाहर आई थी ।
‘ओ...तो ऐसी बात है । हम तो कुछ दूसरा ही समझ रहे
थे ।’ यह कहते हुए सरदार चुप हो गया । पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया । कोई कुछ
बोलने को तैयार नहीं था इस वक्त । आखिर सरदार ने ही चुप्पी को तोड़ते हुए पूछा, ‘क्या
अपने देश में भी ऐसी कोई खुसपुसाहट है?’
‘नहीं सरदार, पर बात पहुँचते देर कितनी लगती
है ।’ उप सरदार ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा ।
‘पहुँचने दीजिए बात को, लेकिन हमें यकीन है कि
वैसा कुछ नहीं होने वाला इस देश में ।’ सरदार के स्वर में आश्वस्ति के भाव थे ।
‘आप इतनी गारंटी के साथ यह बात कैसे कह सकते
हैं सरदार?’ समवेत स्वर में आम चूहों ने पूछा ।
‘वह इसलिए कि मनुष्य हम से कहीं बड़ा चूहा है
। अनधिकृत रूप से हम केवल अनाज को ही छिपाए रखते हैं, पर उसने तो न जाने किन-किन
चीजों को अपनी बिलों में छिपा रखा है । चूहों के सिर पर इनाम रखने का मतलब उसका
अपने सिर पर इनाम रखना होगा । जहाँ तक मेरी जानकारी है, उसके अनुसार मनुष्य इस
दरजे का मूर्ख तो कतई नहीं है ।’
बात की गहराई तक जाते ही सभी के चेहरों से
चिंता की लकीरें मिटती चली गई थीं । सचमुच यह तो चोर और महाचोर की बात निकली और
चोर-चोर मौसेरे भाई हमेशा से होते आए हैं ।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’ फ्लॉप शो का उल्टा-पुल्टा कलाकार - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंआप यहाँ बकाया दिशा-निर्देश दे रहे हैं। मैंने इस क्षेत्र के बारे में एक खोज की और पहचाना कि बहुत संभावना है कि बहुमत आपके वेब पेज से सहमत होगा।
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