साधो, अवसरवाद उस वाद को कहते हैं, जिसमें
बन्दा सही अवसर को ताड़कर अपना उल्लू सीधा कर ले । इसमें अवसर का उतना ही महत्व
है, जितना बन्दे की उस प्रतिभा का, जो अवसर को झट पहचान ले ।...मतलब अवसरवादी इस
अर्थ में अवश्य प्रतिभावान होना चाहिए । अवसरवाद हर देश-काल में रहा है । अवसरवादी
ने कहाँ और कब लाभ नहीं उठाया है ? हानि उठाने वाला
अवसरवादी नहीं हो सकता ।
पहले अवसरवाद शर्म का विषय हुआ करता था । अत: अवसरवादी लोगों
की आँखें बचाकर इस वाद को अमलीजामा पहनाया करता था । मगर अब यह शर्म की चीज नहीं
रही । हमें शुक्रगुजार होना चाहिए उन लोगों का, जिन्होंने इसे गर्व की चीज में
तब्दील कर दिया है । आप बेधड़क अवसरवादिता दिखाइए और गर्व के एवरेस्ट पर चढ़कर
फख्र महसूस कीजिए ।
अवसरवाद एक उच्च कोटि का विज्ञान है । इसमें एक
व्यवस्थित योजना पर काम किया जाता है । सतत एवं व्यापक निगरानी की जाती है । लाभ
के बिन्दुओं को एकत्रित किया जाता है और हानि पहुँचाने वाले तत्वों को डस्टबिन में
डाल दिया जाता है, ताकि हानि की गुंजाइश न रहे । सारे लाभ के तत्वों से बना यह
यौगिक ही अवसरवाद होता है । यह एटम बम की तरह धमाका भी कर सकता है, पर अपने साधक
को यह तनिक भी नुकसान नहीं पहुँचाता ।
विद्वान लोग इसे कला भी मानते हैं । कला में
सृजन का तत्व निहित होता है, इसमें भी है । जिस तरह एक कलाकार पत्थर का विध्वंस
करके प्रतिमा का सृजन कर देता है, उसी तरह अवसरवादी भी स्वहित की प्रतिमा का सृजन
करता है । अब यह अलग बात है कि काट-छाँट के रूप में यदि समाज व देशहित भी निकालना
पड़े, तो उसे संकोच नहीं होता ।
इस वाद को साधना इतना आसान भी नहीं है । साधक
में बौद्धिकता के कीटाणु मौजूद होने चाहिएं तथा टाइमिंग में उसे महारत हासिल हो ।
टाइमिंग बहुत बड़ी चीज होती है । सटीक समय को जानने वाला ही सच्चा अवसरवादी होता
है ।
अवसरवाद कभी बड़े पैमाने पर संगठित नहीं हुआ ।
उसके पीछे किसी संगठन का हाथ नहीं रहा, पर आज वह संगठित है । उसके पीछे कई संगठनों
का हाथ स्पष्ट दिखाई दे रहा है । एक अवसरवादी दूसरे अवसरवादी को फूटी आँखों नहीं सुहाता,
किन्तु आज ये गलबहियाँ किए खड़े हैं । इनकी एकजुटता अभूतपूर्व है । ये सारी चीजें
इस बात का सबूत हैं कि अवसरवाद का स्वर्णकाल या तो आ चुका है या सन्निकट है ।
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